सपनों से भरे नैना
सपनों से भरे नैना


आराध्या बहुत सुंदर और सुलझी हुई लड़की थी, बचपन से ही उसे डॉक्टर बनने का भूत सवार था पढ़ने में भी बहुत होशियार थी। हमेशा क्लास में अव्वल आती थी। उसके माता-पिता और छोटा भाई सोनू भी चाहते थे कि आराध्या अपना डॉक्टर बनने का सपना पूरा करे।
एक दिन शाम को आराध्या जब अपने कोचिंग से घर लौट रही थी तो रास्ते में उसकी स्कूटी खराब हो जाती है उसके घर और कोचिंग के बीच कच्ची बस्ती पड़ती है वहीं पर उसकी स्कूटी खराब होती है सर्दियों का मौसम था शाम के 7 बजे का वक्त था तो कोई आसपास नजर नहीं आ रहा था, इलाका काफी सुनसान था छोटी बस्तियों में अक्सर लोग सर्दी के समय दरवाज़े बंद करके ही रखते हैं आराध्या इधर उधर देखती हैं कोई भी गैराज नजर नहीं आ रहा था उसने सोचा कि वह अपने भाई को फोन करके बुला ले इतनी में कुछ लड़के उसे चारों तरफ से घेर लेते हैं, आराध्या कुछ बोल पाती उससे पहले ही उन लड़कों ने उसको बेहोश कर दिया।
उधर आराध्या के घर पर उसकी माँ बहुत परेशान हो रही होती हैं
आराध्या की मां: - इतनी देर हो गई है, अभी तक आराध्या आई क्यों नहीं? हमेशा तो इस वक्त आ जाती है।
माँ सोनू से आराध्या को फोन लगाने के लिए कहती है सोनू आराध्य को फोन लगाता है फोन की घंटी लगातार बजती जा रही थी लेकिन कोई जवाब नहीं आ रहा था। सोनू और माँ दोनों बहुत परेशान हो जाते हैं, तुरंत पापा को
फोन लगाते हैं, वो भी जल्दी घर पर लौट आते हैं और पुलिस थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाते हैं लेकिन पुलिस वाले यह कहकर टाल देते हैं कि जब तक 24 घंटे नहीं होते तब तक रिपोर्ट दर्ज नहीं हो सकती।
आराध्या का पूरा परिवार और दुखी हो जाता है सब जगह अपने रिश्तेदारों के यहां, आराध्या के दोस्तों के यहां सबके यहाँ पर पता करते हैं, पर कहीं भी आराध्या का कुछ पता नहीं लगता है।
पूरी रात यूँ इंतजार में गुजर जाती हैं, सुबह-सुबह पुलिस स्टेशन से फोन आता है, सभी पुलिस के बताए पते पर पहुंचते हैं, यह वही बस्ती होती हैं जहां से आराध्या को उठाया जाता है।
वहां का दृश्य देखकर परिवार की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं माँ की हालत तो एक बुत के समान हो जाती है मुँह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा होता उनकी आंखों के सामने उनकी लाडली आराध्या खून से लथपथ पड़ी थी। माँ तुरंत आराध्या के सर को अपने गोद में लेती हैं, आराध्या दर्द से कराह रही होती है, मुंह से एक भी शब्द नहीं बोल पा रही थी.... उसकी टूटती हुई सांसों से बस यही आखरी शब्द निकले .. "मां! मेरा सपना अधूरा रह गया, मैं डॉक्टर बनना चाहती थी, मेरे सपने नैनों में ही रह गये ।"..... इतना कह कर आराध्या सदा के लिए मौन हो जाती है ।
साथ ही वहां खड़ी हुई भीड़ भी बिल्कुल मौन थी बिल्कुल आराध्या के सपनों की तरह..... ।