स्पंदन

स्पंदन

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यहाँ मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों को रखा जाता था। कोई कुछ भी नहीं बोलता था। सभी अपने आप में खोए हुए सिर्फ शून्य में ताकते रहते थे। लोगों का मानना था कि इन्होंने ऐसे भयानक दुःख झेले हैं कि अब पत्थर बन चुके हैं।

इसी मानसिक रुग्णालय में शामली रहने आई। वह करीब सात माह की गर्भवती थी। परिवार ने त्याग दिया था। सड़कों पर भटकते हुए वह भी मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गई थी। अतः उसे यहाँ भेज दिया गया।

दो एक दिन बीते कुछ नजरें उसकी तरफ उठने लगीं। उनमें यहाँ सहानुभूति की हल्की झलक दिखाई पड़ी। पचास वर्षीय कुंती अधिक आकर्षित थी।

एक दिन वह शामली के पास आई और उसके उदर पर प्यार से हाथ फेरने लगी। अब अपने खाने में से कुछ निकाल कर शामली की थाली में रख देती थी। धीरे-धीरे सभी की आँखों में ममता झलकने लगी।

दो माह बाद वहाँ खुशनुमा माहौल था। सभी आँखें नव आगंतुक पर लगी थीं। सब अपने अपने हिसाब से शिशु का स्वागत कर रहे थे।।


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