सपना अधुरा ही रह गया !

सपना अधुरा ही रह गया !

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पूनम कि रात थी चंद्रमा अपने प्रकाशमान धरती पर खुश होकर अपनी सहेलियों से गपशप में मग्न था !

मगर कुछ देर बाद जो दृश्य देखने को मिला वह हैरान करने वाला था !

गांधी के पूतले के पास दो मुस्टँडन्डे आ खड़े हुए और जोर से हँसने लगे और एक पूतले के तरफ बढ़ते हुए बोला- अबे बुड्ढे तू है क्या चीज हैं रे।

मरने बाद भी हमे चैन से जीने नहीं देता ! दूसरे ने तुरंत आगे बढ़कर उनका चश्मा खींचा और लाठी छीनते हुए लड़खड़ाया देखकर गांधी बोले- आराम से बेटा संभलकर ...मुझे ख़ुशी हैं कि मैं मरने के बाद भी किसी के काम आ सका ! आप ही भारतवर्ष भाग्य विधाता तारणहार हो !

अबे चूप बुढे तेरा जादू हम पर नही चलेगा ! हमे मालूम हैं तू कितना चालाक हैं ! तेरा जादू हम पर नहीं असर कर सकता ! हम तो हिटलर के वारिस हैं ! बहुत सर पे चढ़ा रखा हैं तुझे लोगों ने, तेरा यहाँ क्या काम ?

बोलके दोनों मुस्टँडन्डे पूतले को खींचने लगे ! इतने में पुलिस की गाडडी का सायरन बजा ! दोनों मुस्टँडन्डे भागने लगे ..उनके पीछे गाड़ी, इतने में मेरी नींद खुली और वह भयावह सपना अधुरा ही रह गया ! अच्छा हुआ यह सिर्फ सपना था ! मैं मन ही मन मुस्कुराया !



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