Mukta Sahay

Inspirational

4.3  

Mukta Sahay

Inspirational

सफलता के हिस्सेदार

सफलता के हिस्सेदार

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आज इंजिनीयरिंग सर्विसेज़ परीक्षा का परिणाम आया था और निखिल उसमें उत्तीर्ण हो गया था। बहुत ही कठिन परीक्षा होती है इसकी और ये नौकरी भी भारी ज़िम्मेदारी वाला होता है। पूरे घर में ख़ुशी का माहौल था। निखिल के माता, पिता, दीदी, भैया और छोटी बहन सभी बहुत खुश थे। निखिल से ज़्यादा तो उसके भाई और बहन खुश थे ऐसा लग रहा था जैसे कि इन्होंने ही ये परीक्षा उत्तीर्ण की हो। 

माँ ने बड़े बेटे को मिठाई लाने को भेज दिया और बेटियों को पूजा की थाली तैयार करने को कहा। अब तक खबर फैल गई थी सो आस-पड़ोस के लोग भी घर आकर बधाई देने लगे। पड़ोस वाले चाचा ने जब निखिल को बधाई दी तो निखिल ने कहा हाँ मैंने इस परीक्षा के लिए बहुत मेहनत की थी, रात दिन एक कर दिया था। खाना-पीना भूल गया था, अपने कमरे से भी नहीं निकलता था। माँ ने देखा की निखिल में सफलता का सा दंभ आ गया है, सफलता का नशा निखिल की सर पर चढ़ रहा है।

माँ मंदिर जाने के लिए नहाने को जा रही थी, पर जाते-जाते रुक गई क्योंकि वह जानती थी की नशा चाहे किसी भी चीज़ का हो अच्छा नहीं है।

इस समय निखिल को रोकना ज़रूरी था, इसलिए वह बैठक में आकर निखिल की तरफ़ देखते हुए कहती हैं, भैया निखिल ने जो सफलता प्राप्त की है उसकी इच्छा तो हर माता-पिता को होती है। इसने तो पूरे परिवार का नाम ऊँचा किया है। इसकी मेहनत के साथ इसके भाई -बहन की तपस्या भी तो साथ थी इसलिए निखिल को सफलता तो मिलनी ही थी। हमारे घर में तीन ही कमरे हैं, फिर भी इसके भाई-बहनों ने इसे एक पूरा कमरा दे दिया था पढ़ने के लिए और स्वयं कष्ट में सोते थे, जहाँ भी जगह मिल जाए।

बड़ी बहन तो पूरी रात जागती रहती और हर दो घंटे पर जाकर निखिल के खाने-पीने की ज़रूरत पूरी करती। बड़ा भाई अपनी किताबों की ज़रूरत दोस्तों से माँग कर पूरी करता और निखिल के लिए महँगी नई किताबों ला कर देता। वह तो इसके कितने ही नौकरी के आवेदन जमा करता था दिन भर धूप, गर्मी, धूल, मिट्टी झेल कर ताकि इसकी पढ़ाई की तारम्यता नहीं टूटे। निखिल बड़ा ही क़िस्मत वाला है जो ऐसे भाई-बहन मिले हैं।

माँ की बातों से निखिल समझ गया की सफलता उसे सिर्फ़ उसकी मेहनत से नहीं मिली है बल्कि पूरे परिवार का योगदान है। निखिल माँ की बात पूरी होते ही कहता है, सच में चाचा जी मेरी सफलता का श्रेय भैया, दीदी और छोटी को जाता है जिन्होंने मेरी पढ़ाई में आने वाली हर बाधा को मेरे तक पहुँचने से पहले ही दूर कर देते थे। साथ ही माँ और पिताजी की प्रार्थना और आशीर्वाद ने मेरी मेहनत को सफलता में बदल दिया। माँ अब खुश थी की निखिल अपनी सफलता की कड़ियों को समझ रहा है। 

ऐसा बहुधा होता ही की हम अपनी ज़िंदगी में सफलता के सोपान चढ़ने में उन कड़ियों को भूल जाते हैं जिनका अमुल्या सहयोग हमें हर कदम पर मिला होता है। अगर हम पीछे पलट कर देखें तो कभी माता-पिता, कभी भाई -बहन, कभी शिक्षक-वरिष्ठ तो कभी साथी-दोस्त ने हमारी सफलता के लिए अपना योगदान दिया होगा। ये कहना ग़लत नहीं होगा की हमें ज़िंदगी के रास्ते में पीछे भी पलट कर देखना चाहिए और सभी योगदान कर्ता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। साथ ही अपनी आने वाली पीढ़ी को भी इस बात का आभास करना चाहिए।


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