सोसाइटी रत्न - प्रसाद राव
सोसाइटी रत्न - प्रसाद राव
सोसाइटी रत्न - प्रसाद रावअभी 67 वर्ष के होने वाले हैं, श्री प्रसाद राव। आप मेरे साथ टेबल टेनिस खेलते हैं। जब अभी क्लब हॉउस बंद है तब आप प्रातःकालीन भ्रमण को निकलते हैं। आपका अलग एक मित्र समूह है किंतु आप उनका साथ छोड़, मुझे तेज वॉक करता देख, कुछ राउंड मेरे साथ घूमते हैं। आप कहते हैं, फ़ास्ट 3 राउंड चलना, स्लो 6 राउंड जितना हो जाता है। मेरा साथ करने के बाद आप अपने पुराने फ्रेंड्स में लौट जाते हैं।
आज प्रसाद राव ने मेरे साथ 3 राउंड लगाए। मेरे पूछने पर आपने, तेलुगु व्यक्ति के द्वारा कही जाने वाली हिंदी में, मुझे आपके अपने जीवन की बहुत सी बातें बताईं। उन सब बातों को मैं यहाँ लिख रहा हूँ।
प्रसाद राव का जन्म वारंगल के पास के एक तालुका जैसे गाँव में हुआ था। आप के परिवार के पास कृषि भूमि तो थी किन्तु धन-पैसा बहुत नहीं होता था। कक्षा छह तक आप ने अपने गाँव में ही शिक्षा प्राप्त की थी। फिर आप अपने नाना-नानी के गाँव आ गए थे। यहाँ आप ने कक्षा 10 तक की शिक्षा प्राप्त की थी। आप का स्कूल आपके नाना के निवास से 4 किमी दूर था। नित दिन वहाँ तक आप अपने स्कूल मित्रों के साथ पैदल जाते थे। इस रास्ते में दो नदियाँ पड़तीं थीं। एक में कम एवं एक में अधिक पानी होता था।
अधिक जल प्रवाह वाली नदी में आप एवं आपके मित्र स्कूल से वापसी में खेल किया करते और नहाया करते थे।
आपको कक्षा 10 तक पढ़ते हुए इतनी समझ आ गई थी कि अपने मामा के ऊपर आपकी अपनी निर्भरता डालना अधिक समय के लिए उचित नहीं है। तब आपने खुद कुछ कमाते हुए पढ़ाई करूँगा, इस विचार से हैदराबाद आने का निर्णय किया था। ऐसा करते हुए आपने हैदराबाद में इंटर तक की शिक्षा प्राप्त की थी।
अपने माता-पिता पर परिवार के लिए बहुत से कर्तव्य का होना देखते हुए, आपने तब खुद अधिक कमाने की दृष्टि से सरकारी जॉब की कोशिश आरंभ की थी। इंटर करते हुए कुछ अन्य तरह के सर्टीफिकेशन कर लेने से तब आपको ‘नेशनल जिओफिजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट’ में जॉब (सर्विस अवसर) मिल गया था।
आप बताते हैं कि तब हैदराबाद से वारंगल तक की बस की टिकट 1 रुपए 75 पैसे एवं वारंगल से आपके पैतृक गाँव तक 1 रुपए की हुआ करती थे। तब आपके पास खुद की साइकिल भी नहीं होती थी। 5 रुपए महीने पर आप किराये की साइकिल लेते थे।
हैदराबाद से अपने पैतृक गाँव की एक ट्रिप में आने जाने के 5 रुपए 50 पैसे बचाने के लिए आप साइकिल से जाया करते थे। हैदराबाद से वारंगल से 150 किमी की यात्रा आप शुक्रवार दोपहर 3.30 को आरंभ करके 7 घंटों में वारंगल पहुँचते और फिर अगली सुबह गाँव तक की साइकिल यात्रा करते थे। आप वहाँ से वापसी रविवार को करते थे।
इस प्रकार महीने की चार ट्रिप में आप, 22 रुपए की बचत कर लेते थे।
आज आपके दो (जुड़वाँ) बेटे एवं एक बेटी है। आप (प्रसाद राव) बताते हैं कि आप अपने भाई बहनों एवं उनके परिवार एवं कुछ करीबी रिश्तेदारों की आर्थिक मदद करते रहे हैं।
आप बताते हैं, खुद ग्रेजुएशन नहीं कर सकने के परिस्थिति में रहने के बाद, आप अपने सभी बच्चों को अच्छी एवं उच्च शिक्षा के अवसर सुनिश्चित करना चाहते थे। जब आपने अपनी आर्थिक विषमताओं में भी अपने दोनों बेटों को इंजीनियरिंग में एडमिशन कराया तब आपके कुछ मित्र एवं रिश्तेदार आप पर नाराज होते और आपसे कहते थे -
प्रसाद आर्थिक तकलीफ में हो, दोनों बेटों को महँगी इंजीनियरिंग की शिक्षा क्यों दिला रहे हो। एक को इंजीनियरिंग पढ़ाओ और एक को कमाई करने से लगाओ।
आपने इन परामर्श पर ध्यान नहीं दिया था। आज स्थिति यह है कि आपका एक बेटा सिएटल अमेरिका में है। आप का दूसरा बेटा भी अमेरिका में रहने के बाद, आप, प्रसाद राव (पिता) एवं माँ के साथ रहने के लिए अब हैदराबाद में हमारी सोसाइटी में ही निवास करता है। आप (प्रसाद राव) की बेटी-दामाद भी हैदराबाद में ही रहते हैं।
अपने विभाग एनजीआरआई में अपने कार्य के समय के प्रमुख अनुभव आपके स्मरण में अब इस प्रकार से हैं।
ड्राफ्ट्समैन के पद पर नियुक्त होने के बाद आपने जब विभाग में खेल-गतिविधियाँ देखीं तब आपने वॉलीबॉल खेलना शुरू किया। आपने 2000 किमी हर महीने साइकिल चलाई हुई थी। अतः आपका शरीर चुस्त-दुरुस्त था। इस कारण कुछ समय में ही आपका वॉलीबॉल गेम अच्छा हो गया। तब उस समय आयोजित होने वाली इंटर डिपार्टमेंट टूर्नामेंट्स में आपका चयन अपने ऑफिस की टीम कर लिया गया था। तब एक प्लेयर जो खेलता यद्यपि अच्छा था मगर उस समय प्रैक्टिस में नहीं था उसको टीम में शामिल कर लिए जाने से आप का नाम टीम से हटा दिया गया। आपको इस बात का बहुत बुरा लगा था। तब आपने अपने खेल पर ध्यान तो दिया ही साथ ही विभाग की स्पोर्ट्स बॉडी में आने की कोशिशें आरंभ कीं थीं। आपका साइंटिस्ट न होना आपके स्पोर्ट्स बॉडी प्रमुख चुने जाने में बाधक सिद्ध हुआ था। फिर भी हर वर्ष आपका विभाग की वॉलीबॉल टीम में चयन होने लगा था।
तब आप वॉलीबॉल ही नहीं, बैडमिंटन, टेबल टेनिस एवं कैरम भी अच्छा खेलने लगे। आप बताते हुए हँसते हैं कि फिर तो 1982 से 2010 तक स्पोर्ट्स बूस्टर के रूप में विभाग में आपका बोलबाला रहा था।
इस समय विभाग की युवतियाँ खेल में रूचि नहीं लेती थीं। आपको, लड़कियों/महिलाओं की खेलकूद में हिस्सेदारी न करना ठीक नहीं लगा था। तब आपने विभाग में कार्यरत युवतियों/महिलाओं को भी इसमें हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहन देना शुरू किया।
गर्व बोध से आपने यह भी बताया कि एक सहकर्मी युवती जिसे कैरम का स्ट्राइकर पकड़ना तक नहीं आता था। उसकी हिचक दूर करके उसे, आपने कैरम खेलना सिखाया था। वह सहकर्मी युवती, जम्मू में हुए एनजीआरआई स्पोर्ट्स में चैंपियन हुई थी। तब उसने वहीं से हैदराबाद फोन कर, उसकी इस जीत का श्रेय होना, आपका बताया था।
हैदराबाद लौटने पर जब स्टेज पर उसका अभिनंदन किया जा रहा था। तब डायरेक्टर ने यह कार्य आपसे करवाया था। सम्मान का शाल जब आपने चैंपियन युवती को ओढ़ाया तब चैंपियन ने झुककर आपके चरण छुए थे।
आप, चैंपियन के द्वारा ऐसे आभार प्रदर्शन एवं सम्मान से अभिभूत हुए (Overwhelmed) थे। आप याद करते हुए बताते हैं कि सेवानिवृत्त हो जाने के बाद भी, विभाग में स्पोर्ट्स प्रोमोट करने के लिए आपको बुलाया जाता है।
स्मरण करते हुए आप यह भी बताते हैं कि एक बार उनके बॉस ने उनसे कहा - प्रसाद राव मेरे हाथ बँधे हैं।
आपने तब उनसे आशंकित होकर पूछा - सर, क्या मुझसे कोई गलती हुई है?
बॉस ने कहा - नहीं प्रसाद, आपने कोई गलती नहीं की है। मैं आपकी कार्य निष्ठा एवं समर्पण से आपको प्रोमोट करना चाहता हूँ मगर आप ग्रेजुएट नहीं जो इस प्रोमोशन की अनिवार्यता है।
तब आपके डायरेक्टर ने आपको इंस्टिट्यूट में आने वाले विज़िटर्स को इंस्टिट्यूट के बारे में जानकारियाँ प्रदान करने का दायित्व सौंपा था।
हैदराबाद से अपने गृह ग्राम के लिए एक ट्रिप (आने जाने) में 500 किमी साईकिल चलाने से शुरू आपकी यात्रा अब यहाँ तक आई है कि आप अब दो बार अमेरिका घूम आए हैं। यह अलग बात है कि तब की परिस्थितियों ने आपको ग्रेजुएट भी नहीं होने दिया था।
आप पाक कला में भी प्रवीण हैं। आप आवश्यक होने पर आज भी पूरी रसोई तैयार कर सकते हैं। आपने यह भी बताया कि एक बार आपका साढ़ूभाई का बेटा आपके घर आया। जब आपने उसको अपनी बनाई टमाटर की सब्जी परोसी तो उसने बताया -
मैं टमाटर नहीं खाता हूँ। आपके जोर देने पर जब उसने टमाटर चखे, तब से वह टमाटर की सब्जी रूचि से खाने लगा है।
आप पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पीवी नरसिंह राव के प्रशंसक हैं।
आज जब मैंने प्रसाद राव से उनके बारे में पूछा था तब मेरा ऐसा कोई विचार नहीं था लेकिन जब उनके जीवन के बारे में प्रसाद राव से सुना तो इसे आज का लेखन विषय बनाना मैंने तय किया था।
मैंने प्रसाद राव को जब यह बताया तो वे शर्माए थे और कहा - राजेश जी इसमें लिखने जैसा कुछ भी तो नहीं है।
मैं हँसा था मैंने कहा एक लेखक जानता है कि किसी बात में लिखने योग्य क्या हो सकता है।
प्रसाद राव हमारे सामने एक साक्षात और जीवंत उदाहरण हैं। इनके जीवन को देखने से किसी को भी संघर्षों से नहीं घबराने की प्रेरणा मिलती है।
प्रसाद राव की जीवन उपलब्धियाँ यह भी इंगित करतीं हैं कि सफल होने के लिए उच्च शिक्षा नहीं भी ली हो तो भी इसका कोई महत्व नहीं होता है। जिस किसी में करने की लगन, समर्पण एवं सही निर्णय लेने की क्षमता होती है उसे जीवन में वह प्राप्त हो सकता है जो अनेक उच्च शिक्षितों को भी नहीं मिल पाता है।
प्रसाद राव को अपने बच्चों से भरपूर प्यार और आदर मिलता है। वे जीवन की इस अवस्था में हँसमुख, मिलनसार और संतुष्टि से जी रहे हैं।
प्रसाद राव ने सहकर्मी युवतियों में खेल के प्रति रूचि उत्पन्न की थी। यही नहीं उनमें से कुछ को चैंपियन तक बनने का मार्ग प्रशस्त किया। प्रसाद राव ने अपने जीवन में यह प्रमाण प्रस्तुत (सिद्ध किया) किया है कि उपलब्धियों एवं उन्नति के लिए उत्कंठ नारी की सहायता, एक सच्चा पुरुष भी करता है।
अब की पीढ़ी प्रसाद राव को उनके बेटों के पापा के रूप में पहचानेगी। जबकि प्रसाद राव में एक स्वयं की विशिष्ट पहचान छुपी हुई है। मैं इन्हें, सोसाइटी रत्न - प्रसाद राव लिखूँगा।
हमारे इस सोसाइटी रत्न के बारे में लिखने के बाद, प्रकाशन के अनुमोदन के लिए जब मैंने यह पोस्ट उन्हें एवं उनके (प्रसाद राव के) मित्र समूह में पढ़कर सुनाई - तब मुझे कुछ और तथ्य पता हुए हैं।
इसे सुनने के बाद आपकी प्रतिक्रिया यह थी कि - आपकी सहज कही गई बातों के प्रत्येक प्रसंग को मैंने शब्द शिल्प में ढाल दिया था। वहाँ उपस्थित उनके मित्र समूह की प्रतिक्रिया इससे भिन्न थी। उन्होंने कहा -
आपका यह प्रयास अच्छा है, मगर अभी इसमें प्रसाद राव के मददगार स्वभाव एवं उत्कृष्ट समाज व्यवहार वाली कुछ और बातें आनी शेष हैं।
उन्होंने कहा कि मैं आपसे पूछकर उन बातों को भी लिखूँ। तब ही आपका परिचय पूर्ण होगा। उन्होंने यह भी कहा कि जब यह परिचय पूर्ण होगा तब हम इसका सुंदर प्रिंट आउट लेकर, आपको भेंट करेंगे।
मैंने इस हेतु फिर प्रसाद राव से बात की एवं पूछा था। उन्होंने कुछ ऐसे प्रसंग मुझे बताए थे। जिसे मैं संक्षिप्त में यहाँ लिपिबद्ध कर रहा हूँ।
आपके एक घनिष्ट मित्र असगर अहमद थे। वे अच्छे क्रिकेटर थे। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनीं थीं कि असगर अहमद और उनकी पत्नी में अनबन हो गई थी। असगर अहमद के साले, उनके जान के दुश्मन हो गए थे। तब असगर अहमद, नए क्रिकेट खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने घर से दूर निजामाबाद में चले गए थे।
उस बीच ही असगर की पत्नी का स्वास्थ्य बिगड़ गया था। असगर ने फोन करके आप से उनकी सहायता करने का अनुरोध किया। असगर की अनुपस्थिति में आप ने उनकी पत्नी का उपचार कराया था। ठीक हो जाने के बाद भी खर्च के लिए माँगे जाने पर कुछ कुछ अंतराल में 30-35 हजार रुपए दिए थे।
असगर जब वापस घर आ गए, फिर भी ये रुपए वापस नहीं किए गए थे। आपने भी वापस करने की बात असगर से नहीं की थी।
आप यह भी बताते हैं कि असगर की बेटी का निकाह हुआ। वह दुबई चली गई थी। तबसे उसने अपने अब्बू-अम्मी से कोई संपर्क नहीं रखा था। असगर के घर में एक मुस्लिम काम करने वाली औरत आती थी। उसकी छह बेटियां थीं। जब उसको इनकी परवरिश मुश्किल हुई तो असगर ने, उनमें से एक बेटी को गोद ले लिया था।
कुछ समय बाद पुनः असगर की पत्नी बीमार हुई। इस बार वह बच नहीं सकी थी।
बहन की मौत के बाद, असगर के साले अब असगर को मार डालने पर उतारू थे। असगर छुप कर अपने भाई के घर रहता था। घर से बिलकुल नहीं निकलता था। असगर के पास कमाई का जरिया नहीं रह गया था। इस विपत्ति में असगर ने अपने भाई के फोन से पुनः आपको ही याद किया था।
आपमें दयालुता ने अपने कठिनाई में पड़े मित्र की सहायता के हार्दिक भाव पुनः उत्पन्न किए थे। आपने फिर तीस हजार रुपए असगर को दिए थे।
समय बीता था। अब आपके बेटे अमेरिका में थे। आप उनके पास अमेरिका गए हुए थे। तब कुछ दिनों उपरान्त, एक अननोन मोबाइल नं. से आपको बार बार कॉल आ रहे थे। 20 दिन बाद भी जब उस नं. से कॉल फिर आया तब कोई मुश्किल में है, सोचते हुए आपने रिप्लाई किया था।
यह कॉल असगर की गोद ली गई बेटी का था। उसने बताया - असगर की तबियत बहुत खराब होने से उनके कहने पर उसने, आपको कॉल किया था।
आपने कहा - असगर कहाँ है? उनसे बात कराओ।
असगर की बेटी ने बताया - वह 15 दिन पहले अल्लाह को प्यारे हो गए हैं। अंत समय में अब्बू सिर्फ आप से बात करना चाहते थे।
आप को बहुत बुरा लगा कि आपने कॉल रिसीव नहीं करके भूल कर दी। मित्र असगर भी हमेशा के लिए खो गया था। आपको दुःख असगर के जाने का था, उसके साथ उसको दी गई राशि जाने का नहीं था।
सहायता राशि का डूब जाना, यह बात आपको विचलित नहीं कर पाई है। आप की दयालुता का गुण अब भी जस का तस है। अब आप, अपने से 10 वर्ष कनिष्ठ सहकर्मी जो आपको अपना गुरु मानता है, की विपत्ति में काम आ रहे हैं। आपने उसके द्वारा महँगे ब्याज पर उठाया कर्ज, उसके ऑफिस से प्रदान किए गए लोन के रूप में गुप्त रूप से उपलब्ध करवा दिया है। उसके 85000 रुपए के ऐसे कर्ज से मुक्ति दिलवाई है। जबकि ऑफिस के अकाउंट में उस सहकर्मी की जमा राशि 40000 ही है।
आपको राशि वापस प्राप्त नहीं हो सकेगी, आपने यह मानते हुए ही सहायता की है।
आप कहते हैं मेरे जीवन में एक समय था जब मैं बस का किराया बचाने के लिए हजारों मील साईकिल चला रहा था। अब मेरे पास यह वैभव है, इससे मेरा सामर्थ्य हुआ है। इससे ही संघर्षरत लोगों की सहायता कर पाता हूँ।
आप स्मरण करते हुए 1996 की एक दुखद घटना बताते हैं। नेशनल जिओफिजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट (एनजीआरआई) में, आपके साथ काम करने वाले, वारंगल निवासी एम नागेश्वर राव और एक इंजीनियर, विभागीय जीप में दौरे पर गए हुए थे। दुर्भाग्य से उनकी गाड़ी, एक ब्रिज पर से नदी में गिर गई थी। इंजीनियर का गंभीर चोटें लगीं थीं। जबकि दुर्भाग्यशाली नागेश्वर राव स्पॉट पर ही मारे गए थे। नागेश्वर राव के एक बेटा एवं एक बेटी बहुत छोटे थे। रिवाज अनुसार नागेश्वर राव के पिता भी अपने बेटे के अंतिम संस्कार नहीं कर सकते थे।
ऐसे में नागेश्वर राव के साढ़ू भाई रिचुअल्स कर रहे थे। जब आप वहाँ पहुँचे तब हाल में एक व्यक्ति चिलम का सुट्टा लगा रहे थे। आपने उनसे पूछा तो आपको पता चला कि रिचुअल्स के लिए ये लोग किराए से लाए गए थे। यह सूचना आपके हृदय को झकझोर गई थी। आपने संपर्क किया और आह्वान किया कि जिस एनजीआरआई में हजारों कर्मचारी हैं, उसमें के एक कर्मचारी की मौत विभागीय कार्य के दौरान हो जाने पर भी, उसके रिचुअल्स के लिए किराए के लोग इकट्ठा करना विभाग के लिए कितना शर्मनाक है। आपके प्रयासों से तब नागेश्वर राव के अंतिम संस्कार एनजीआरआई के कर्नाटक कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष ने किए थे। संयोग से अध्यक्ष एवं नागेश्वर राव का गोत्र एक ही था।
इस अवसर पर नागेश्वर राव के पिता जी का हृदय इतना द्रवित हुआ कि वे आपके समक्ष साष्टांग प्रणाम कर रहे थे।
एम नागेश्वर राव के साथ दुखद बीती बताते हुए आपकी आँखे अब भी नम हुईं थीं। इस प्रसंग से तब आपको एक और नागेश्वर राव का स्मरण आ गया था। ये के. नागेश्वर राव भी आपके सहकर्मी थे।
यह दुखद घटना 1999 की है। तब के. नागेश्वर राव का स्वास्थ्य बिगड़ गया था। गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचाए गए नागेश्वर राव को भर्ती किया गया था। जहाँ उनके रोग के उपचार की गहन कोशिशें की गईं थीं। ऐसे कठिन समय में नागेश्वर राव का साथ, उनके नाते रिश्तेदारों ने भी छोड़ दिया था। नागेश्वर राव के साथ तब अकेले उनकी पत्नी अस्पताल में होतीं थीं। तब आपने ऑफिस के काम पर प्रमुखता, इस कार्य को दी थी। आपने पूरे समय (छह माह) में नागेश्वर राव का साथ निभाया था।
अंततः नागेश्वर राव बच नहीं सके थे। तब उनके सब नाते रिश्तेदार आ गए थे। नागेश्वर राव की शोकाकुल पत्नी ने उनसे कहा था -
"मुझे अब किसी की आवश्यकता नहीं है। जिन प्रसाद राव ने पूरे समय साथ दिया मेरे पति की अंतिम क्रिया वे ही कर देंगे।"
तब एनजीआरआई के डायरेक्टर भी वहाँ उपस्थित थे। नागेश्वर राव की पत्नी और उनके सगे सबंधियों के साथ चर्चा करने के लिए, डायरेक्टर ने अन्य सबको बाहर जाने के लिए कहा था। आप भी जब बाहर जाने लगे तो डायरेक्टर ने आपको रुकने कहा था। फिर वहाँ उपस्थित नागेश्वर राव की पत्नी एवं परिजनों को कहा था -
"मैं तो अब दस दिन ही डायरेक्टर हूँ। आगे किसी भी समय में आप प्रसाद राव पर विश्वास कर सकती हैं। प्रसाद राव उसी गोपनीयता के साथ नागेश्वर के कार्य करेंगें जैसे मैं करता रहा हूँ।"
डायरेक्टर और नागेश्वर राव की पत्नी का, आप पर ऐसा विश्वास यूँ ही नहीं हो जाता है। आप में मानवता के वे गुण हैं, जिनके कारण सब आपको चाहने एवं आदर देने लगते हैं।
आपके दोनों बेटे, सफल इंजीनियरिंग प्रोफेशनल्स हैं। ऐसे बेटों के पापा, आप चाहते तो उनके विवाह पर लाखों के दहेज की माँग कर सकते थे। कन्या के पिता भी माँगा गया दहेज, प्रसन्नता से देते भी लेकिन आपने विवाह रस्म के लिए आवश्यक “मंगलसूत्र” के अलावा उनसे कुछ नहीं चाहा था। आपके समधियों ने जो भी अपनी हैसियत या इच्छा अनुसार अपनी बेटी को दिया, उसकी तरफ आपने कभी ध्यान नहीं दिया है।
समझा जा सकता है जिस समाज में आप रहते हैं उसमें किसी जरूरतमंद की हर संभव एवं समुचित सहायता के लिए आप सदा सजग और उपस्थित रहते हैं। मानवता सुलभ ऐसे गुण किसी पाठ्यक्रम एवं उच्च शिक्षा के माध्यम से नहीं निखरते हैं। अपितु यह जीवन की पाठशाला में, किसी कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी के ही व्यक्तित्व में निखार पाते हैं।
आपको आपकी बुआ इस रूप में पहचानतीं हैं। वे समाज सेवा के कार्य में आपको याद करतीं हैं और आप, उनके अपेक्षित सहयोग में उनके साथ होते हैं।
मैंने उत्सुकता में प्रसाद राव से पूछा - "आप ब्राह्मण हैं, आप शाकाहारी होंगे।"
आप का सपाट उत्तर था - "घर में शाकाहार ही बनता है। मुझे खेल एवं कई अन्य कारणों से बाहर जाना होता था। बाहर खाने के समय में मैं ‘नॉन वेज’ ले लेता हूँ।"
मैं (लेखक) स्वयं शाकाहारी हूँ। अतः इसे लेकर मेरे पूर्वाग्रह हैं। मुझे प्रसाद राव में यह पहली बात कमी जैसी प्रतीत हुई थी।
फिर मैंने दूसरे दृष्टिकोण से इसे परखा तो मुझे दिखाई दिया कि आप में सबके बीच सामंजस्य स्थापित करने का गुण है। ऐसा करने से आप, अपने साथ के माँसाहारियों को यह बुरा बोध नहीं कराते हैं कि वे माँसाहार लेकर कोई पाप कर रहे हैं।
आप सच में वह व्यक्ति हैं जिसने शून्य से आरंभ करके अपने सही निर्णय और सुनियोजनों से जीते हुए, अपने जीवन में परिवार और बच्चों को, उनकी यथोचित शिक्षा के माध्यम से एक वैभव का जीवन सुनिश्चित किया है।
ऐसे व्यक्ति का आत्मविश्वास एवं स्वाभिमान निश्चित ही निराला होता है। ऐसे व्यक्ति को अपने लिए किसी से कुछ नहीं चाहिये होता मगर जरूरतमंद को देने का विशाल हृदय उसमें होता है। आप उनमें से ही एक महान व्यक्ति हैं।
दुनिया में कई पात्र - अपात्र को बहुत से सम्मान देने के चलन हैं। आपका स्वाभिमान - ऐसे किसी सम्मान का अभिलाषी नहीं है।
मेरी यह लेखनी आपको “सोसाइटी रत्न-प्रसाद राव” लिखते हुए धन्य होती है।
