सॉरी....मां....
सॉरी....मां....
सॉरी ...मम्मा ......
दिल्ली शहर की दिसम्बर महीने की कुहासे से भरी शाम, 6 बजते ही लोग अपने घरों में दुबक जाया करते हैं लेकिन वसुधा जी परी के इंतजार में बाहर बैठीं हुईं थीं, इस समय 8 बजने वाले थे, आज स्कूल में एनुअल फंक्शन का ड्रेस रिहर्सल था, 7 बजे तक आने को बोली थी ..... उसका फोन बंद आ रहा था ....उनका चिंतित मन अपनी मजबूरी पर रोने रोने का हो रहा था ....14 वर्ष की परी को संभालना उनके लिये अब मुश्किल होता जा रहा था ...वह उद्दंड और जिद्दी होती जा रही है। जब से जमुना काम छोड़ कर अपने गांव चली गईं है, परी के मन में यह बात घर कर गई है कि उन्होंने ही उसे जानबूझकर हटा दिया है, जब कि उन्होंने उसे रोकने की बहुत कोशिश की थी लेकिन कोरोना के खौफ से घबरा कर, उसने उनकी एक नहीं सुनी थी ।
उन्होंने परेशान होकर वन्या की फ्रेंड लवी की मां को फोन करके पूछा तो उन्होंने बताया कि वह ऑटो में वन्या को अपने साथ लेकर पहुंचाने आ रही हैं । वह चैन की सांस ले पातीं, तभी आंधी तूफान की तरह गरजती बरसती सी वन्या आई और उन पर बरस पड़ी थी .... क्या सोचती हैं कि वह लौट कर ही नहीं आयेगी, आपने फोन क्यों किया ... सब मेरा मजाक बनाया करते हैं ....तेरी ग्रैनी का फोन आ गया.....
उसने बकते झकते हुये अपने कमरे के दरवाजे को जोर से बंद कर लिया था ।
वह भी यूं ही भूखी प्यासी बिस्तर पर लेट कर करवटें बदलती रहीं थीं, पता नहीं कब उनकी आंख लग गई थी, न्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे अवनी आकर कह रही है मां जी, आप क्यों परेशान हो .... मैं अपनी वन्या को संभाल लूंगी ... आप बिल्कुल भी चिंता न करें ....वह सपनों में खोई हुई थीं, चौंक कर अपने चारों तरफ देखने लगी थीं .... कहते है कि सुबह के सपने सच होते हैं ....क्या अवनी सच में आयेगी ...
उनकी आंखों के सामने पिछले कुछ वर्ष चलचित्र की तरह सजीव हो उठे थे ..... बेटे माधव की शादी और अवनी जैसी बहू पाकर वह अपने भाग्य को सराह ही रहीं थीं कि प्रोजेक्ट के सिलसिले में माधव को अमेरिका जाने का अवसर मिल गया ....वह ढंग से बहू का लाड़ भी नहीं कर पाईं थीं ……यहां तक कि एयरपोर्ट पर अवनी उनके कंधे पर सिर रख कर सिसक पड़ी थी .... प्रोजेक्ट बढ़ता गया और अवनी वहीं पर नन्हीं परी की मां बन गई थी ... वह व्हाट्सऐप और स्काइप पर नन्ही परी को देख देख कर खुश होती रहतीं थीं ...माधव ने अपने इंडिया आने की खबर दी ...तो वह और ब्रज बेटे बहू की स्वागत की तैयारियों में जुट गये थे ...
“ मॉम, सरप्राइज मैं एक घंटे में घर पहुंच रहा हूं.. मेरे मुंह में आपके हाथ की अदरख वाली चाय और पकौड़ों स्वाद आ रहा है .....”
लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था .... बात होते होते ही जबरदस्त धमाके की आवाज उनके कानों में पड़ी ... वह हेलो हेलो करती रहीं और मोबाइल उनके हाथ से छूट कर जमीन पर गिर पड़ा था, अनिष्ट की आशंका से घबराकर वह कुर्सी पर धम से बैठ गईं ....
क्या हुआ....पता नहीं .... जोर के धमाके की आवाज सुनाई पड़ी ....
तुम्हारे तो कान बजते रहते हैं .... अब वह खुद ही घबरा कर फोन मिलाने लगे थे ....चंद मिनटों में किसी अपरिचित ने उन्हें सिटी हॉस्पिटल तुरंत पहुंचने को कहा ।.. सीरियस एक्सीडेंट हुआ है ... दोनों की हालत गंभीर है ...
एक क्षण में ही सब कुछ बदल चुका था, सारी खुशियां गम में तिरोहित हो चुकी थीं ... अवनी दुनिया से विदा हो गई थी और माधव को मल्टीपिल फ्रैक्चर के साथ साथ हाथ बुरी तरह से कुचल गया था ....
नन्ही परी किसी अपरिचित की गोद में हाथ में बिस्किट पकड़ी हुई किलक रही थी, गालों पर सूखे हुये आंसुओं के निशान थे .... परंतु वह मासूम अब भी हंस रही थी .....लोगों ने बताया कि नन्ही परी अवनी के आंचल में उसी तरह से सुरक्षित थी जैसे पक्षी अपने अंडों को अपने पंखों के नीचे सुरक्षित रखता है .... क्षण भर में हंसता खेलता परिवार उजड़ चुका था ...अवनी की मौत का सदमा और माधव की बार बार की सर्जरी ने परिवार को परेशानी और मुसीबतों में डाल दिया था परंतु उस दुख की घड़ी में भी परी की किलकारियों के कारण मुस्कुराने का बहाना मिल जाता था परंतु अब उनका शरीर भी शिथिल होता जा रहा था गठिया का दर्द उन्हें धीरे धीरे मजबूर बनाता जा रहा था.... वह बेटे से बार बार कहती रहीं कि तुम शादी कर लो तो वन्या सही रास्ते पर आ जायेगी लेकिन माधव बेटी को कभी नानी के यहां तो कभी हॉस्टल भेज कर प्रयोग करते रहे....
तभी माधव आ गये थे मां की मुखमुद्रा से समझ गये थे कि आज भी वन्या ने कुछ तमाशा खड़ा किया है ... यदि वह कुछ बोलते हैं तो वह उनको भी कंकड़ पत्थर की तरह चार बातें सुना दिया करती है ...रोज रोज की चिक चिक से वह भी परेशान हो चुके थे .... जाने कितना जहर भरा है इस लड़की के मन में....
वह मां के पास बैठ गये थे, अम्मा क्या बात है ...”वह रो पड़ी थी ....अब मैं थक गई हूं ... मुझसे अब नहीं संभलता .... माधव की आंखें छलछला उठीं थीं ...वसुधा जी दिनों दिन चारपाई से लगती जा रही थीं, उनकी देखभाल के लिये भी घर का कोई ऐसा होना जरूरी हो गया था, जो उन्हें समय पर दवा वगैरह देता रहे .. एक तरफ माधव मां के लिये परेशान थे तो दूसरी तरफ बेटी की नाजुक उम्र .... जब घर में किसी स्त्री का रहना आवश्यक होता है....
उन्होंने अपनी मां को इतना मजबूर और लाचार कभी नहीं देखा....आज वह अपने और भव्या के रिश्ते के विषय में सोचने को मजबूर हो गये थे ....उससे उनका परिचय बरसों पुराना है, वह उनके परिवार और वन्या के बारे में सब कुछ जानती है । लेकिन वह कभी भी उसे अपने घर के अंदर लेकर नहीं आये थे कि वन्या जाने कैसी प्रतिक्रिया करे.... सच तो यह था कि बेटी से वह भी मन ही मन डरते थे ....उन्होंने उसे संभालने के लिये जो भी उपक्रम किये सब व्यर्थ हो गये थे ... वन्या यहां वहां भटकती रही ... कभी नानी के यहां तो कभी हॉस्टल और अब अपनी ग्रैनी के साथ उसका रोज का वाक् युद्ध .......
अब वह भव्या के साथ शादी करके अपनी बेटी को सुधरने के लिये नया प्रयोग करने जा रहे थे ....
...अपनी बेटी के भविष्य के लिये वह सब कुछ करेंगे ....
उन्होंने भव्या को फोन किया और उससे जल्द से जल्द शादी कर लेने का अनुरोध किया ... वह तो कब से इस घड़ी का इंतजार कर रही थी क्योंकि वह माधव को प्यार करती थी और मन ही मन वन्या को अपने लाड़ प्यार से सुधारने का चैलेंज लेने को तैयार थी ....
दो दिन बीते थे, माधव ने अपने कमरे को नया रूप दे दिया था ...... नई बेडशीट, नये कर्टेन, नई टॉवेल आदि .... आखिर आज वह एक नई पारी खेलने जा रहा है, जहां खुशियां और नई आशायें उम्मीदें थीं ...
38 वर्षीय भव्या और वह कालेज के समय से एक दूसरे को प्यार करते थे परंतु पिता के जिद के आगे उनकी एक नहीं चली थी और अवनी से उन्हें शादी करनी पड़ी थी ...उन दोनों ने आर्य समाज मंदिर में एक दूसरे को माला पहना कर शादी कर ली थी .... भव्या की मां इस शादी से नाराज थीं इसलिये शामिल नहीं हुईं थी ...
जब माधव और भव्या ने घर आकर वसुधा जी का पैर छुआ तो उनके चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित खुशी छा गई ....मेरा सपना सच हो गया ... देखना अब बिटिया सुधर जायेगी ...
“माया ...माया ... बिटिया को बुला लाओ “....लेकिन माधव ने इशारे से मना किया और भव्या को लेकर सीधा बेटी के कमरे की तरफ चल पड़ा .... वन्या के कान में एयरफोन लगा हुआ था, वह अपने बेड पर उल्टी लेटी हुई शायद किसी से फोन पर बात कर रही थी .... “वन्या ... वन्या.....इनसे मिलो, तुम्हारी नई मां ...”
वह नाराज होकर बोली, “नई मां माई फुट”......घर आते ही माधव को भव्या का अपमान सहन नहीं हो पाया था ... उन्होंने गुस्से में अपना हाथ उठा लिया ....” बद्तमीज लड़की यही मैनर है “ भव्या ने उनका हाथ पकड़ लिया और उन्हें वहां से बाहर जाने का इशारा किया था ... तब तक वन्या खड़ी हो गई थी ...”ओह पापा, आप मुझे कहते तो मैं इनकी चरण वंदना भी कर लेती पर डोंट से नई मां ....”
13-14 साल की प्यारी लड़की, परिस्थितियों ने उसे ऐसा बना दिया है ... उन्हें उसकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक लगी थी ... परंतु मन ही मन वन्या को अपना बनाने की योजना बनाने लगी थी ...अभी वह इस नई जगह की दिनचर्या को समझने की कोशिश कर रही थी...
कैलाश काका और माया इस घर के सारे काम किया करते थे …. वन्या ने जोर से आवाज लगाई, ”मेरा नाश्ता यहीं दे जाओ”
माधव डांट कर बोले, “यह क्या बदतमीजी है....”वह अपने कमरे से तेजी से निकली और सीधी स्कूटी स्टार्ट करके कॉलेज चली गई …..माधव पुकारते रह गये थे ....
“ग्रैनी प्लीज, पापा से कह दो .... मेरे बीच में न बोला करें “.... “परी घर से भूखे पेट नहीं निकलते हैं ...” मैं कैंटीन में खा लूंगी ...
भव्या ने माधव को कमरे में ले जाकर उन्हें समझाया कि आप मेरे सामने वन्या को मेरे लिये या किसी वजह से भी डांटेंगे नहीं ...उन्हें भव्या की बात समझ में आई थी और अपनी गलती का एहसास भी हुआ ... और वह अपने ऑफिस चले गये थे । कैलाश काका सामान लेने बाजार गये, माया साफ सफाई में लगी थी .... वह वन्या के कमरे में गई तो बिखरी किताबें, सिकुड़ी सी चादर, गंदे पर्दे , लैपटॉप खुला हुआ, टेबिल पर धूल की मोटी पर्त देख, कमरे का काया कल्प करने में जुट गईं .... माया ने उनसे कहा भी था .... बेबी नाराज होगी .... लेकिन उन्होंने सब सामान करीने से लगा कर, पर्दे बेडशीट बदल कर फ्लावरपॉट में ताजे फूल लगा दिये थे ......
अब वह उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही थी ....... शाम को वन्या ने जब साफ सुथरे कमरे को देखा तो बोली, “थैंक्स “बट… मेरी मां बनने की कोशिश मत करिये “ वह चेतावनी देती हुई बोली थी ... 3-4 दिन तक वह शांत रहीं फिर एक दिन फिर वह उसके लिये ऑमलेट बनाकर उसके कमरे में लेकर गईं तो फिर वन्या नाराज हो उठी ....” आप क्यों मेरी लाइफ में घुसने की कोशिश कर रहीं है... “मेरा काम करने के लिये कैलाश और माया हैं आप मुझसे दूर रहा करिये .... “आपने मेरे लिये क्यों नाश्ता बनाया …”
“बिटिया रानी, तुम्हारे पापा मुझे ब्याह करके लाये हैं और मुख्य रूप से तुम्हारे लिये...इसलिये मुझसे दोस्ती कर लो ....” पापा को मेरी फिक्र कब से हो गई ?... “वह तो मुझे कभी यहां तो कभी वहां फेंकते रहे हैं ... “ना...मेरे बच्चे ऐसा नहीं है ... “ “आदमी बहुत अंतर्मुखी होते हैं वह अपनी फीलिंग्स व्यक्त नहीं कर पाते ...” उन्होंने मुझे कब समझा ...पहले नानी के यहां भेज दिया ...वहां मामी ने सुना सुना कर मेरा जीना मुश्किल कर दिया था।
फिर पापा ने मुझे हॉस्टल भेज दिया ... मैं ग्रैनी के साथ रहना चाहती थी ...लेकिन .... उन्हें तो हर समय वही करना होता है, जो उनका मन होता है ...
“मेरी एक बात को सुनना पड़ेगा और मानना भी पड़ेगा “बोलिये .... हर जगह का कुछ नियम या डिसिप्लिन होता है ... तुम्हें उसे मानना होगा .... “
“तुम्हें यदि कॉलेज से देर से आना है तो तुम्हें बताना होगा कि कहां जा रही हो और कितनी देर में आओगी .... “और कुछ ...”
“ जब तुम्हारी चिंता कोई करता है तो वह तुम पर शक नहीं करता वरन् वह तुम्हारी फिक्र कर रहा है, इसलिये तुम्हें नाराज होने की जरूरत नहीं होती बल्कि खुश होने की बात है कि घर पर तुम्हारी चिंता करने वाला कोई है .....”
लेकिन मैं किसी भी नियम में बंध कर नहीं रहती “...” मानना तो पड़ेगा “ कह कर वह कमरे से बाहर निकल आई थी ....
एक हफ्ते से वसुधा जी तेज बुखार था, उनको पहले भी मेजर हार्ट अटैक पड़ चुका था ... इस समय उनका कोलेस्ट्राल काफी बढ़ा हुआ था और वह पूरी तरह से बेड पर आ गईं थीं ।
भव्या के लिये मुश्किल समय था ... एक ओर वसुधा जी तो दूसरी ओर वन्या को अपना बनाना.....2
उसने 2-3 दिनों के बाद उन्होंने फिर से सांभर बड़ा, जो वन्या का फेवरेट था, बना कर लाई थी परंतु आज फिर वन्या ने प्लेट की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा था ... माया के सामने वैसी की वैसी प्लेट लेकर जाने में उन्हें शर्म महसूस हो रही थी परंतु वह जानती थी कि यह उसकी परीक्षा की घड़ी है, उन्हें हार नहीं माननी है ।
भव्या अपने कमरे में लेट कर वन्या और अपने संबंध को लेकर सोच रही थी कि जाने कब उसकी आंख लग गई थी, तभी माया चीखती हुई आई, ”भाभी जल्दी चलो, माता जी जाने कैसी हो रही हैं.... क्या हो गया “वह रो रही थी .... भव्या एकदम से भागती हुई गई ...’ वसुधा जी ने उसका हाथ पकड़ कर उम्मीद भरी नजरों से उसकी ओर देखा और उनकी आंखें खुली रह गई” मौत को इतनी नजदीक से देखने का उनके जीवन का पहला अवसर था वह किंकर्तव्यविमूढ़ थी ... कैलाश काका ने उस समय बुजुर्गों की तरह इस परिस्थिति को संभाला था ....
वन्या रो रो कर बेहाल थी, माधव तो शांत थे .... उसकी आंखों के आंसू तो जैसे सूख ही गये थे । रिश्तेदारों से घर भर गया था, सबकी नजरें उसी पर केंद्रित थीं । माहौल गमगीन था .....वन्या ने उनसे दूरी बना ली थी, एक दिन जब सुबह वह अपने कमरे से काफी देर तक नहीं निकली तो वह हिम्मत करके उसके लिये दूध और नमकीन मखाने लेकर गई , वह बुखार से तप रही थी, उन्होंने प्यार से उसके माथे को हल्के हाथ से दबाया, उसके बालों को सहलाया ... तो उसकी आंखों से आंसू बह निकले, उन्होंने प्यार से उसके माथे को चूम लिया था ... वह जाने कब से इस तरह के लाड़ प्यार की भूखी थी .... 2-3 दिनों में वह ठीक हो गई थी शायद उसके मन का कलुष आंसुओं की राह बह निकला था ... भव्या को ऐसा महसूस हुआ था .....
वसुधा जी को दुनिया से विदा हुये लगभग 2 महीने हो चुके थे ....
वन्या का बर्थ डे था, उन्होंने गुप चुप उसके लिये तैयारी कर ली, उसके लिये प्यारी ड्रेस ले आई, केक बनाया, घर को खूब सजाया था, उसके फ्रेंड्स को चुपचाप इनवाइट कर दिया था ...लेकिन वह फिर से उन पर बरस पड़ी ...बहुत नाराज हुई ....न केक काटा और न ही ड्रेस पहनी....अपनी फ्रेंड्स को मना करके खूब रोई धोई .....उनका भी मूड खराब हो गया था, वह मन ही मन हार मानने लगी थी.....जब भी वह कोचिंग से लेट आती तो उनका कलेजा मुंह को आ जाता ... यदि वह जरा भी पूछताछ करती तो उन पर नाराज होकर कमरा बंद करके बैठ जाती ... खाना नहीं खाती ....और न ही जल्दी दरवाजा खोलती ... घर का माहौल तनाव पूर्ण हो जाता.....
अब वह देखती कि वन्या का पढ़ने में मन नहीं लगता, वह प्रोजेक्ट कर रही हूं, कह कर मोबाइल या लैपटॉप पर गेम खेलती .... इंग्लिश मूवी देखा करती ... उन्होंने लैपटॉप वहां से हटा कर अपने कमरे में रख दिया था और उसे समझाने की कोशिश कर रही थी, तो वह नाराज होकर बोली, “’यू स्टेप मदर, मेरा हर काम आपको गलत लगता है .... बस पढ़ाई करो ... यू आर इम्पॉसिबिल ....लीव मी एलोन ....उस दिन तो उसने हद कर दी थी, सामान फेंकना और जोर जोर से रोना शुरू कर दिया था ।..... कैलाश काका और माया बाहर कोने में खड़े होकर आपस में खुसुर पुसुर कर रहे थे ..... उस दिन सच में उन्हें बहुत निराशा महसूस हुई थी और मन ही मन उन्होंने हार मान ली थी .... वह फिर से अपनी मां के पास जाकर सर्विस पर लौटने का इरादा पक्का कर चुकी थी .......
वैसे वह वन्या में अब काफी परिवर्तन देख रहीं थी ... कॉलेज से समय से आना ....कहीं जाना हो तो चिट पर आने का समय लिख जाना या फिर कैलाश या माया से बता कर जाना, अपना कमरा अच्छी तरह रखना आदि आदि ...छोटी छोटी चीजों पर वह गौर कर रही थी । वह डाइनिंग टेबिल पर सबके साथ खाना खाने लगी थी ......
जब बात किया करती थी तब एक दिन उनसे बोली थी आप कैलाश काका क्यों कहती हैं .... “वह हम लोगों से उम्र में इतने बड़े हैं इसलिये ....” ओह मुझे किसी ने क्यों नहीं कहा ...अब वह भी काका ही कहा करती थी
माधव व्यंग से बोले, ‘”बस इतनी जल्दी जंग में हार मान ली “नह़ीं” ... “उसे समय चाहिये .... मेरी जल्दबाजी के कारण वह नाराज हो गई थी ....मुझे समझना चाहिये था अभी उसकी ग्रैनी का अचानक उसका साथ छूटा है ..... आखिर वह अभी छोटी सी बच्ची ही है, जो हमेशा से प्यार दुलार को तरसती रही है .......” फिर तुम क्यों जल्दबाजी कर रही हो .... इंतजार करो एक दिन वह तुम्हें स्वीकार कर लेगी ........”
माधव के चेहरे पर निराशा और उदासी छाई देख वह भी उदास हो उठी थी ....मां के कटु व्यंग वाण और उनकी हिकारत भरी नजरों को याद कर वह एक क्षण को सिहर उठी थी, माधव की पनीली आंखें दिन रात उनका पीछा करती, वन्या का उन्हें स्वीकार ना करने के कारण ही वह अब हार मान कर अपनी पुरानी जिंदगी में लौट जाने के लिये वह अपने को मन ही मन तैयार कर रही थी परंतु माधव की मजबूत बांहों का सहारा, उनका निष्कलुष आत्मसमर्पण ....अपने प्यार का सान्निध्य उनके मन को संपूर्णता और आत्मिक संतुष्टि प्रदान कर रहा था .... सच तो यह था कि माधव का प्यार , कैलाश काका का आदर सम्मान उनके पैरों की बेड़ी बना हुआ था ...लगभग दो हफ्ता बीत चुका था, वन्या और उनमें बोलचाल बंद थी ... एक दिन वह कॉलेज से लौट कर आई तो उसके चेहरे पर मुस्कान थी, मानो वह अब उनसे समझौता करना चाहती है .... वह तो सदा से बाहें पसारे उसके स्वागत के लिये तैयार खड़ी थीं ... उन्होंने भी मुस्कुराकर पॉजिटिव उत्तर दे दिया था ......
अब वह उसकी पहल का इंतजार कर रहीं थीं ... आज वह ट्रे में चाय के दो कप लेकर उनके कमरे में आई और धीमी आवाज में सॉरी कह कर पलट कर भाग गई थी .... आज माधव भी मुस्कुरा पड़े ....वह कहीं काम से चले गये थे तब वह बाहर आकर बोली, “थैंक्यू माई डियर ....चाय बहुत अच्छी थी, तुम्हारे पापा कह रहे थे .....”
“आज रात में सुहाना के यहां पायजामा पार्टी है ... वहां मैं जाऊंगी ..मैंने अपना फैसला सुना दिया .... “
“यह पायजामा पार्टी क्या होती है ... “ कुछ खास नहीं ...जैसे दिन में पार्टियां होती हैं.......यह रात में इन्फार्मल पार्टी है ... कुछ खाना पीना, कुछ नाच गाना ......मस्ती मजाक और क्या ......आज आर्यन के मम्मी पापा बाहर गये हुये हैं ...इसलिये उसके घर में हम सब इकट्ठे होंगे ...’’
“तुम अपने पापा से परमिशन लो .....मेरी तरफ से तो ना है .... बड़ी वाली .....” कह कर वह अपने काम में लग गई थी ....
रात के 10 बजे थे .... रोज की तरह भव्या अपने कमरे में जाकर सो गई थी ....कैलाश काका गांव गये थे और माया अपनी रिश्तेदार की शादी में गई थी ...
माधव ने गेट पर ताला लगाया और आकर सो गये .... लगभग 2 बजे भव्या की नींद खुली तो वह पानी पीने के लिये किचेन में गई तो बाहर की लाइट जली देख वह ड्राइंगरूम में आईं तो वहां एक लेटर रखा था ...”मैं पार्टी में जा रही हूं ......मैं सुबह आ जाऊंगी ...” अब तो उनके हाथ के तोते उड़ गये थे ... आधी रात को यहां वहां फोन करने से तमाशा खड़ा हो जाता और माधव भी आज की लापरवाही के लिये शायद उन्हें ही दोषी ठहरा सकते थे ......
आखिर जब उसने उनसे पूछा था तो यदि वह माधव से बता देती तो..... अपनी जिम्मेदारियों से बच सकती थी ...अब तो वह अपराधी है ....... वह सिर पर हाथ रख कर बेचैनी से वहां पर चहलकदमी कर रही थी...वह मन ही मन में बहुत नर्वस हो रही थी .......... यदि माधव को आधी रात में जगाती हैं तो हंगामा होना स्वाभाविक है ... वह नाजुक कली कहां पर भटक रही थी ....उनकी आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे .... अंगुलियां मोबाइल पर लगातार चल रहीं थीं ...... उसका फोन बराबर बिजी आ रहा था ... वह समझ नहीं पा रहीं थीं कि क्या करे ..... आखिर में उसने माधव को जगा कर सारी बातें बताना जरूरी समझा ... तभी अपने पीछे माधव को खड़े हुये देखा तो उन्होंने उनके हाथ में उसकी चिट्ठी पकड़ा दी और वह उनके कंधे पर सिर रख कर फूट फूट कर रो पड़ी थी .... माधव तो वन्या के फ्रेंड्स के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते थे ....पहले वन्या ग्रैनी के नजदीक थी फिर भव्या के आने के बाद तो लड़की ने बिल्कुल उनसे दूरी बना ली थी....
भव्या के पास जितने नंबर थे, सारे मिला डाले थे लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला था ....
माधव का भी होश उड़ा हुआ था ...... तभी घर के गेट पर पुलिस की जीप आकर खड़ी हो गई और उसमें से उतर कर वन्या तेजी से भागती हुई आई और भव्या के गले से लग कर फूट फूट कर रो पड़ी
‘सॉरी मम्मा मुझे माफ कर दो ......”वह उस समय नन्हे कपोत की तरह उनकी गोद में समाई हुई थी। भव्या उस समय वन्या को लाड़ दुलार से बार बार उसके माथे को चूमती चली जा रही थी ........
मम्मा जब आप और पापा दोनों सो गये तो मैंने आर्यन को फोन किया तो वह बाइक लेकर आ गया था और वह मुझे लेकर तेजी से अनजान राहों पर भगाने लगा तो वह जोर चिल्लाने लगी और अपने नाखून उसके गर्दन पर चुभा दिये थे .... वह दर्द से बिलबिला उठा था .....
तभी एक पुलिस की जीप दिख गई और मम्मा उन लोगों ने मुझे बचा लिया ... कह कर वह वह फिर से सिसक पड़ी ...
“सर, मैं आपको जानता था, इसलिये बिटिया को लेकर यहां आ गया, ताकि उसकी बदनामी न हो .....”
“सॉरी मम्मा पापा .........”
