सोने का हार
सोने का हार


सोनाक्षी बहुत ही सुंदर युवती थी I वह चाहती थी की वह अमीरों की तरह रहे ,परन्तु बहुत गरीब थी I उसका पति मोहन ढाबे में खाना बनाकर घर चलाता था I उसे जो कुछ पैसा मिलता था ,उससे किसी तरह उनका गुजारा चलता था I
एक दिन शाम के समय जब मोहन घर पहुँचा तब वह बहुत ही खुश नजर आ रहा था I उसने सोनाक्षी से कहा आज मैं तुम्हें जो बताऊंगा तुम उसे सुनकर खुश हो जाओगी I सोनाक्षी ने सोचा जरुर मेरे लिए कुछ जेवर लाए हैं ,सोनाक्षी मम-ही -मन मुस्कुरा रही थी I सोनाक्षी ने मोहन कहा- "दिखाओ तुम मेरे लिए क्या लाए हो "? मोहन के हाथ में एक कागज का टुकड़ा था I जिसमें खाने की सूची बनी हुई थी I लेकिन सोनाक्षी उसे देखकर खुश नहीं हुई I उसने उपेक्षा से उसे फेंकते हुए कहा ,"इसका मैं क्या करूँगी ?"
मोहन आश्चर्य से बोला ,"मैंने सोचा कि हमें किसी के घर खाना बनाने का इतना अच्छा मौका मिला है ,तुम यह जानकर खुश हो जाओगी I सोनाक्षी ने कहा ,"मैं किसी के घर काम नहीं करुँगी I तुम मेरे पति हो मुझे खुश करना तुम्हारी जिम्मेदारी है ,परन्तु जब से मैं यहाँ आई हूँ सिर्फ दुःख ही मिला है I"
मोहन निराश हो गया उसने सोनाक्षी को खुश करने के लिए कहा "चलो कोई बात नहीं मैं अकेला ही चला जाऊँगा I"
अगले दिन मोहन अकेले ही चला गया I वहां काम करने पर मालिक ने खुश होकर मोहन को उसकी मजदूरी से अधिक पैसे दिए I मोहन बहुत खुश था I वह घर पहुंचा देखता है सोनाक्षी रो रही है I
कारण पूछने पर उसने कहा ,मुझे कल अपने दोस्त की शादी में जाना है ,जिसके लिए मेरे पास अच्छे कपड़े नहीं हैं I
मोहन कहता है बस इतनी से बात ,"तो इसमें रोने की क्या बात है ?चलो,अपने लिए नए कपड़े खरीद लो I कितने पैसे चाहिए ?"
सोनाक्षी ने कहा ,मुझे ठीक -ठीक अंदाजा नहीं,लेकिन कम से कम पांच सौ तो लग ही जाएँगे इI "
यह सुनकर मोहन का चेहरा उतर गया I उसने बहुत ही मुश्किल से लगभग 700 रुपए घर की जरूरतों के लिए जमा कर रखे थे I
सोनाक्षी ने बाजार जा कर सुंदर सी एक साड़ी खरीद ली I जैसे-जैसे दोस्त की शादी का समय नजदीक आ रहा था ,सोनाक्षी परेशान होती जा रही थी I एक दिन शाम को मोहन ने सोनाक्षी से पूछा ,"क्या बात है सोनाक्षी ,आजकल तुम इतनी परेशान -सी क्यों रहती हो ?"
सोनाक्षी ने कहा ,"मेरे पास एक भी जेवर नहीं है I बिना जेवर के मैं अच्छी नहीं लगूंगी I मैं सोच रही थी कि शादी में न जाऊं I "
यह सुनकर मोहन बोला ,"अरे ,तो इसमें परेशान होने की क्या बात है ,तुम अपनी किसी सहेली से ज़ेवर मांग लो I और फिर शादी के बाद उसे वापस कर देना I"
सोनाक्षी ख़ुशी से उछल पड़ी ,"अरे यह तो मैंने सोचा ही नहीं था I"
अगले दिन सोनाक्षी अपनी सहेली मीरा के पास गई I मीरा ने सोनाक्षी को अपना ज़ेवर का डिब्बा देते हुए कहा ,"तुम्हें जो पसंद है इसमें से ले लो I"
सोनाक्षी को उसमें एक सुन्दरसोने का हार पसंद आ गया I उसने मीरा से कहा "मुझे यह हार पसंद है मैं तुम्हे कुछ दिनों में यह लौटा दूंगी I"
शाम को वह अपने पति के साथ शादी में पहुंची ,उसने वह सोने का सुंदर हार भी पहना हुआ था I सब उसकी प्रसंशा कर रहे थे I सोनाक्षी को बहुत अच्छा लग रहा था Iघर लौटने में काफी देर हो गई थी I जब सोनाक्षी ने हार निकालने के लिए हाथ बढ़ाया ,तो चौंक गई I उसके गले में हार नहीं था I हार गायब होने के भय से वह चीख उठी I उसकी चीख सुनकर मोहन घबरा गया I सोनाक्षी ने लड़खड़ाती आवाज में कहा ,"हार कहीं गिर गया "Iदोनों ने हार ढूंढा पर नहीं मिला I
मोहन ने कहा "तुम अपनी सहेली से कह दो हार टूट गया है जुड़वाँ कर कुछ दिनों में लौटा देंगे I" तब तक हमें कुछ समय मिल जाएगा सोचने का ,की किस प्रकार हार वापस किया जाए I
सोनाक्षी अगले दिन सुनार के पास गई उसने शादी में खिंची गई तस्वीर दिखाई जिसमें वह हार दिखाई दे रहा था दिखाया I सुनार ने कहा 50 हजार लगेंगे I मोहन ने कहा "ठीक है बना दो I"
मोहन ने अपना छोटा सा घर बेच दिया और झोपड़ी में रहने लगा I सोनाक्षी को बहुत ही पछतावा हो रहा था I किसी तरह कर्ज ले कर हार बनवाया गया I सोनाक्षी ने हार मीरा को वापस कर दिया I
अब सोनाक्षी बहुत ही गरीब हो गई थी I अब तो दो समय की रोटी भी मिलना मुश्किल था I
एक दिन जब मीरा की माँ ने हार देखा वह चौक गई I उसने कहा यह हार तो नकली था सोने का कैसे हो गया I मीरा सारी बातें समझ गई I वह तुरंत सोनाक्षी के घर पहुंची ,परन्तु उस घर में तो अब कोई और ही रहता था I मीरा को बहुत चिंता हुई I
मीरा ने आस-पास के लोगों से पता किया तो पता चला अब वह झोपड़ी में रहती है I मीरा सोनाक्षी के पास गई I सोनाक्षी मीरा को देखते हो फूट -फूट कर रोने लगी I मीरा ने हार नकली होने की बात सोनाक्षी को बताई और हार सोनाक्षी को वह हार और कुछ पैसे उसे देते हुए कहा ,अब उस घर में जल्दी वापस आ जाओ I"
सोनाक्षी मोहन की गोद में सर रखकर फफक फफक कर रोने लगी ,और मोहन से कहा ,"जितना है मैं उसी में संतोष करुँगी I"