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Saroj Verma

Romance

4  

Saroj Verma

Romance

संयोग...

संयोग...

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"चलो भाई,जल्दी जल्दी हाथ चलाओ,बारात बस दुल्हन को लेकर पहुंचने ही वाली होगी,"रमा बोली।

"अरे, भाभी आप बहुत ही उतावली हो रही है,बहु के आने पर,अभी खुश हो लो फिर पता नहीं,बहु कैसी निकले,ननद ने भाभी की चुटकी लेते हुए कहा।

"ऐसा ना कहो, दीदी!! मेरी बहु तो बहुत ही अच्छी है अपने पापा की इकलौती लड़की है, मां नहीं है बेचारी के,जब मैं पहली बार मिली थी तभी उसके संस्कारों का पता चल गया था",रमा बोली।

"देखते हैं भाभी," फिर से सुजाता बोल पड़ी।

रमा भी बोली,"देख लेंगे दीदी।"

तभी बाराती बहु को लेकर आ पहुंचे।रमा अपनी मां से बोली," मां लो आ गई बारात अब देख लेना अपने नाती की बहु कि कैसी है।"

तभी श्यामली देवी जो कि रमा की मां है उन्होंने कहा,"क्यो ना देखूंगी अपनी नतबहु को कब से इंतजार कर रही हूं तुझे याद है ना जिस साल तेरे सूर्यान्श का जन्म हुआ था उसी समय तेरे बाबूजी गुजरे थे, मुझे तो लगता है कि उन्होंने ही सूर्यान्श के रूप में पुनर्जन्म लिया है हुबहु वहीं चेहरा वही आंखें, वैसे ही हाव-भाव।"

"हां... हां... मां सब याद है और कितने बार यही कहानी सुनाओगी,अब बहु का गृहप्रवेश करवाओगी की नहीं, तुम्हें मैंने इसलिए तो यहां खासतौर पर बुलवाया था कि मेरी सासू मां नहीं, बड़े बुजुर्ग का रहना बहुत जरूरी होता है शादी ब्याह जैसे माहौल में ताकि सारे नेगचार ठीक तरीके से हो सके।"

"हां..जाती हूं...जाती हूं.". श्यामली देवी बोली___

बहु जैसे ही दरवाजे की चौखट पर आई, राधिका ने द्वारछिकाई की रस्म की और भइया भाभी ने भी खुश होकर मुंहमांगा दाम दे दिया फिर रमा ने श्यामली देवी से पूछा___

"अब बताओ मां कैसे गृह प्रवेश करवाना है,श्यामली देवी जैसे जैसे बताती गई रमा वैसे ही करवाती गई।अब बहु की मुंह दिखाई रस्म की बारी थी,बहु को अंदर बैठाया गया__तभी श्यामली देवी बोली पहले बहु को उसके कमरे में थोड़ी देर के लिए आराम करने दो, थोड़ा हाथ पैर सीधे कर लें फिर अगली रस्म करवाना, बेचारी थक गई होगी और थोड़ा खाना पीना भी खिला देना,सब पूछ लेना अभी उसके लिए नया घर है ना तो संकोचवश कुछ ना कह पाए तो हमें समझना होगा।तभी रमा बोली,"चल राधिका भाभी को उनके कमरे में ले जा,और हां वहीं रहना, अकेले मत छोड़ना,नई बहु को अकेले नहीं छोड़ जाता" फिर से श्यामली देवी बोल पड़ी।

थोड़ी देर बाद नई बहू आरामकरके आ गई,अब मुंह दिखाई की रस्म शुरू होनी थी।तभी रमा ने श्यामली देवी से कहा,चलो मां तुम ही शुरू करो क्योंकि तुम ही सबसे बड़ी हो।श्यामली ने जैसे ही नई बहु अलका का घूंघट उठाया,वो आश्चर्य चकित रह गई उसका माथा घूम गया और वो चक्कर खा कर गिर पड़ी।जल्दी जल्दी श्यामली को उठाया गया और डाक्टर को बुलाया गया, डाक्टर ने देखा और बोले ज्यादा कुछ नहीं है बस थकावट से चक्कर आ गया होगा,आराम करेंगी तो ठीक हो जाएगी।लेकिन असली बात तो सिर्फ श्यामली देवी को ही पता थी और उन्हें उलझन हो रही थीं,वे ज्यादा देर तक इस बात को अपने तक सीमित नहीं रखना चाहती थी,वो अब मौका ढूंढ रही थी अपनी बात बताने के लिए।तभी रमा ने उनके चेहरे के भाव पढ़ लिए और पास जाकर बोली, "मां क्या बात है? तुम बहु को देखकर इतनी परेशान क्यो हो गई।"

श्यामली देवी बोली,बताती हूं थोड़ा भीड़ तो कम होने दे और जब तक सबसे कहूंगी नहीं,मन में बहुत बड़ा बोझ रहेगा।

मुंह दिखाई की रस्म पूरी हो चुकी थीं,सारे मेहमान जा चुके थे तभी रमा की ननद सुजाता बोल पड़ी, भाभी आज दूल्हा-दुल्हन का कमरा भी तो सजवाना पड़ेगा।रमा बोली,"आज रात नही,कल हम अपने गांव जाएंगे,जब तक दूल्हा-दुल्हन कुल देवी के दर्शन नहीं कर सकते तब तक दोनों अलग-अलग ही रहेंगे, गांव से वापस आने पर कमरे की सजावट होगी।"

"हां, भाभी आज अगर मां होती तो वो भी यही कहती," सुजाता बोली।

"तभी रमा बोली, पहले ये जानना है कि मां अलका बहु को देखकर इतनी हैरान क्यो रह गई, पहले सब खाना खा लो फिर बैठक में ही मां से सारी बातें पूछते हैं।"

सुजाता बोली, "ठीक है भाभी मैं खाना लगवाती हूं, वैसे भी सुबह से सब थक गये होंगे,अब सब खाना खाकर आराम करेंगे कल भी तो बहुत काम होंगे,गांव जो जाना है।"

रमा बोली, हां दीदी...

हल्की सर्दी थी, कमरे में तसले में आग भी जला रखी थी तापने के लिए काफी रात हो रही थी,सब खाना खाकर एक साथ बैठक में पहुंच गए,श्यामली देवी की बात सुनने के लिए, किसी ने शाल ओढा था तो कोई कम्बल ओढ़कर बैठ गया।लेकिन अच्छा माहौल था सब एक साथ थे।श्यामली देवी बोली,घर के सारे सदस्य आ गये,सब बोले हां__

नानी !!अब शुरू भी कीजिए कि ऐसी क्या बात है जो आप हम सब से कहना चाहती थी, राधिका बोली।

"हां..बताती हूं और श्यामली देवी ने बताना शुरू किया___

बहुत समय पहले की बात है तेरे नानाजी उदय प्रताप सिंह अपने माता-पिता और छोटे भाई बहनों के साथ रहते थे,आज से लगभग साठ साल पहले की बात है,उस जमाने में आज की तरह ज्यादा विकास नहीं हुआ था, तुम्हारे नाना जी के पिता जी बहुत बड़े जमींदार हुआ करते थे, बहुत बड़ी हवेली थी उनकी और बड़ी जमीन के मालिक थे वो।

उनके खेतों में एक काका काम करते थे, उनके बेटे और बहू बहुत पहले ही हैजे की चपेट में आकर इस दुनिया को अलविदा कह गये थे लेकिन उनकी एक बेटी थी वहीं बूढ़े काका का सहारा थी, बहुत ही प्यारी सी बच्ची थी जिससे भी बात करती वो ही उसकी बातों से मोहित हो जाता, काका सिर्फ उसके लिए ही जी रहे थे, दिनभर खेतों में काम करते और शाम को चूल्हा जलाकर जो भी रूखा-सूखा बनता दादा और पोती खाकर सो जाते।

आज से पैसठ साल पहले गांव का जीवन भी तो बहुत कठिन होता था खासकर गरीबों के लिए,कच्चे घर होते थे खपरैल वाले,रात में बिजली नहीं, पानी भी कोसों दूर कुंए से लाना पड़ता था, सर्दियों में तो तन ढकने के लिए ढंग से कपड़े भी नहीं होते थे और गर्मियों में तो बस पेड़ों की छांव ही हुआ करती थी या तो पेड़ों की हवा हुआ करती थी जो शीतलता पहुंचाती थी।

बरसात में तो और भी बुरा हाल होता था,कच्ची सड़कें,वो भी कीचड़ से लथपथ,आधे आधे पैर समा जाते थे,तीन महीने लगातार बारिश होती थीं,सूरज भगवान के दर्शन ही नहीं होते थे।

 हां तो जो काका थे वो जमींदार साहब के खेतों में काम करते थे,एक दिन वो चक्कर खाकर गिर पड़े,उनकी चार साल की पोती सुखिया रोने लगी, वहीं खेतों में काम कर रहे लोगों ने उन्हें उठाया, जमींदार साहब तक खबर पहुंची, जमींदार साहब इतने भी बुरे नहीं थे, उन्होंने कहा रामदीन अब तुम बूढ़े हो गए हो तो तुम अब खेतों में काम मत करो।

रामदीन काका बोले, हुजूर! फिर खाएंगे क्या?ये नन्ही सी बच्ची है इसका पेट कैसे पालूँगा।

जमींदार साहब बोले, ऐसा करो तुम यहीं हवेली पर आ जाया करो, सामने वाले बाड़े में बहुत से जानवर है उनकी देखभाल कर दिया करो और वहीं खाना भी खा लिया करो।

रामदीन काका बोले, ठीक है मालिक लेकिन ये बच्ची भी मेरे साथ आएगी क्योंकि इसे मैं खेतों में भी ले जाता था।

जमींदार साहब बोले, ठीक है।दूसरे दिन रामदीन काका सुखिया के साथ हवेली पहुंच गये, सुखिया जैसे ही हवेली के बाड़े में पहुंची,एक गेंद आई और उसके सर पर लग गई।तभी गेंद को ढूंढते हुए तुम्हारे नाना जी उदय प्रताप सिंह आ पहुंचे। उन्होंने सुखिया से गेंद मांगी लेकिन सुखिया ने गेंद वापस करने से इन्कार कर दिया।सुखिया बोली,मैं गेंद नहीं दूंगी!!

उदय बोला, लेकिन क्यो?

मेरे सर पर गेंद लगी है और चोट लग गई इसलिए, सुखिया बोली।तभी उदय ने अपने दोनों कान पकड़े और माफी मांगते हुए कहा कि आगे से फिर कभी ऐसा नहीं होगा।और सुखिया ने भी मुस्कुराकर उदय की गेंद वापस कर दी।

इसी तरह धीरे धीरे सुखिया और उदय में गहरी दोस्ती हो गई, चूंकि रामदीन के साथ सुखिया भी रोज हवेली जाती तो दिनभर दोनों साथ में खेलते, कभी कभी तो उदय अपने हिस्से का खाना भी चुपके से सुखिया को दे जाता,अब उदय ने अपने और भी बाकी दोस्तों के साथ खेलना छोड़ दिया था वो दिनभर सुखिया के साथ ही खेलता।ये सब उदय की मां को पसंद नहीं था कि किसी गरीब मजदूर की लड़की उनके बेटे के साथ घुले मिले, उन्होंने उदय के पिता जी से कहा तो वो बोले, बच्चे हैं खेलने दो, अभी नासमझ है और यह कहकर उन्होंने बात टाल दी।दोनों बच्चों को अब एक दूसरे के साथ की आदत पड़ चुकी थी

एक बार रामदीन बीमार पड़ गया दो तीन दिन हो गए, हवेली ना जा सका,उधर उदय को भी सुक्खी के बिना अच्छा नहीं लग रहा था, सुखिया को वो प्यार से सुक्खी कहने लगा था और सुखिया उदय को छोटे ठाकुर ही कहती थी,बस फिर क्या था उदय गांव की ओर निकल पड़ा सुखिया से मिलने, रामदीन काका के घर।गांव का कच्चा और धूल भरा रास्ता, लोगों से पूछते पूछते पहुंच गया रामदीन काका के घर, देखा तो एक छोटा सा बाड़ा है बगल में घना नीम का पेड़,नीम के पेड़ के नीचे एक बैलगाड़ी खड़ी है लेकिन वहां कोई बैल नहीं बंधे हैं,बगल में एक नांद बनी थी,शायद बहुत पुरानी थी लेकिन अभी तो जगह जगह से टूट चुकी थी,कच्ची मिट्टी की जो बनी थीं,कच्चा घर था खपरैल छाया हुआ।

उदय घर के दरवाज़े के पास पहुंचा और सांकल खटखटाई, सुखिया ने दरवाजा खोला तो बहुत ही खुश हुई__

अरे! छोटे ठाकुर तुम!!, हमारे घर आ गये, सुखिया बोली।

हां दो तीन से तुम हवेली नहीं आई तो चला आया तुम से मिलने,

हां,दादा की तबियत खराब है तो वो काम नहीं कर सकते इसलिए नहीं आ पाए,हम दोनों, सुखिया बोली।

तभी अंदर से रामदीन ने आवाज दी किससे बतिया रही है सुखिया?

अरे,दादा छोटे ठाकुर आए,हमलोगो से मिलने, सुखिया खुश होकर बोली।

अच्छा!! छोटे ठाकुर आए हैं तो पगली बाहर ही क्यो खड़ा रखा है उन्हें जरा अंदर बुला ले, रामदीन बोला।

आओ छोटे ठाकुर आओ और कैसे आना हुआ,रामदीन ने उदय से पूछा।

वो कई दिन हो गए आप लोग हवेली पर नहीं आए थे तो मैं आज चुपके से बिना किसी को बताए आप लोगों से मिलने चला आया,उदय बोला।

ये तुमने अच्छा नहीं किया छोटे ठाकुर, किसी को बिना बताए ही चले आए।

तभी दरवाज़े पर फिर किसी ने सांकल खटखटाई, सुखिया भागकर दरवाजे पर गई और अंदर आते हुए बोली, पड़ोस वाली काकी थी,दादा की तबियत खराब है और मुझे खाना बनाना नहीं आता तो खाना देने आई थी।

खाना!उदय चिल्ला कर बोला, मुझे भी बहुत जोर की भूख लगी है, पता है आप लोग के घर का पता पूछते पूछते भूख भी लग आई और प्यास भी।

सुखिया बोली, हां... हां...लो तुम भी खाना खा लो छोटे ठाकुर।‌

और सुखिया ने सबके लिए मटके से अलग अलग लोटा भर दिया और अलग अलग थाली ले आई फिर सुखिया ने खाना खोला देखा तो आलू-टमाटर की तरी वाली ढेर सारी हरा धनिया डालकर सब्जी थी,प्याज की चटनी,एक लोटे में बघार वाली छाज और चूल्हे की मोटी मोटी ज्वार वाली घी में सराबोर रोटियां थीं।

अरे, इतना अच्छा खाना, मेरे मुंह में तो पानी आ रहा है जरा जल्दी जल्दी तो परोसो,उदय खाने को ललचाई नजरों से देखते हुए बोला।

हां.. हां.. परोसती हूं. .. परोसती हूं... थोड़ा सबर रखो छोटे ठाकुर, सुखिया बोली।फिर सबने साथ मिलकर खाना खाया, खाना कम पड़ गया, सुखिया थोड़ा सा खाकर उठ गई,वो चाहती थी कि उदय भरपेट खाना खा ले,वो सुबह का बचा हुआ दलिया ले आई एक लोटे से दूध निकाल कर दलिए में मिलाया और खाने लगी।अब उदय बोला,चल कुछ खेलते हैं __सुखिया अपने सारे मिट्टी के बर्तन लेकर बैठ गई, चूल्हा,चकला,बेलन,हांडी, और ना जाने क्या क्या?

मैं लड़का हूं, मैं क्या करूंगा तेरे चूल्हे चौके का, मैं ऐसे खेल नहीं खेलता,चल कुछ बाहर चल कर खेलते हैं,उदय बोला।तभी रामदीन बोला, छोटे ठाकुर अब तुम हवेली जाओ ऐसा ना हो कि सब तुम्हें ढूंढ रहे हो।

उदय अनमने मन से बोला, ठीक है मैं जाता हूं।और सुखिया, उदय को दरवाजे तक छोड़ने आई और तब तक उसे निहारती रही जब कि वो गली के आखिरी छोर मे ओछल ना हो गया।

अब धीरे धीरे दोनों बड़े हो रहे थे फिर भी साथ साथ खेलते कभी हरे हरे खेतों में तो कभी तालाब के किनारे अब दोनों ही दस साल के हो चुके थे,उदय की मां को उनका साथ साथ रहना बहुत खटकता था, उसने जमींदार साहब से कहा तो उन्होंने उदय को शहर के स्कूल में डलवा दिया और वो वहीं हास्टल में रहने लगा।

इधर सुखिया भी अपने घर के सारे काम करने लगी थी,दादा के साथ जानवरों को सम्भालती थी हर गाय और बछड़ा उसे पहचानने लगा था, कभी कभी ज्यादा पैसों के लिए खेतों में कटाई कर लेती जिससे आमदनी हो जाती, उसे अपनी खुद की गाय खरीदने की धुन सवार हो गई थी और फिर अब उदय भी नहीं था तो किससे बतियाती इसलिए अपने आप को काम में ब्यस्त रखती।

जीवन ऐसे ही चल रहा था अब सुखिया ने हवेली जाना बंद कर दिया था क्योंकि उसने भी एकाध गाय और कुछ बकरियां पाल ली थीं दिनभर उसी में ब्यस्त रहती , उसने सोचा था कि थोड़ा थोड़ा दूध बेचकर और बकरियों के बच्चे बेचकर थोड़ी बहुत बचत करके कुछ पैसे इकट्ठे करेंगी और खुद की जमीन खरीदकर खेती करेगी, तभी उसके बगल वाले काका जो काकी उन्हें खाना दे जाती थी उनके पति, उन्हें सांप ने काट लिया और वे नहीं रहें।

काकी के कोई भी अपना नहीं था एक छोटा सा बेटा था वो भी गोद में और कोई बचत भी नहीं थी और ना कोई जीविका का साधन, तभी सुखिया बोली,घबराओ नहीं काकी मैं हूं ना और दादा भी है तुम्हारे पास जो थोड़ी सी जमीन है उसमें मिलकर काम करेंगे, बिल्कुल भी चिंता ना करो, तुमने भी तो हमारे बुरे समय में मदद की है, आखिर एक-दूसरे के अब काम नहीं आएंगे तो कब काम आएंगे।

सुखिया की बात सुनकर मनकी काकी की आंखों में आंसू आ गए, बोली हमेशा खुश रह मेरी बच्ची, भगवान तेरी हर मुराद पूरी करें।

अब सुखिया और मनकी खेतों में काम करती,जो भी बचत होती, सुखिया सारी मनकी के हाथ में रख देती,मनकी भी उस में से आधी सुखिया को दे देती, बोलती तू भी आधी की हकदार हैं।

उधर उदय भी शहर से एकाध दो दिन के लिए गांव आता,कभी कभार सुखिया से भी मिलने उनके घर आ जाता लेकिन अब सुखिया पहले की तरह उदय से बातें ना करती और ना उसके पास बैठती,बस उसकी पसंद का खाना पूछकर बनाकर खिला देती,अब उसके चेहरे पर उदय को देखकर लज्जा के भाव आने लगे थे, उसे अब उदय से बात करने में संकोच होता था।

उदय ने एक बार पूछा भी कि सुक्खी क्या हुआ अब तुम पहले जैसे बातें क्यो नही करती, मुझसे हमेशा दूर भागती हो......

सुक्खी शरमाते हुए बोली,बस ऐसे ही.....

इसी बीच कुछ दिनों बाद मनकी काकी बहुत बीमार पड़ गई,हालत इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि फिर कभी भी उठ ना सकी अब उनके बच्चे की और खेत की जिम्मेदारी सुखिया पर आ गई, सुखिया ने मनकी काकी के बेटे गोविंद को गोद ले लिया और उसकी जसोदा मैया बनकर उसे पालने लगी।

अब खेत में उसे अकेले काम करना पड़ता फिर गोविंद को भी सम्भालती , रामदीन की हालत भी अब जर्जर हो चुकी थी वो भी आए दिन बीमार रहने लगा था, गोविंद भी अब बड़ा हो रहा था और सुखिया जवान, गोविंद भी सुखिया को मां ही बुलाता।

उधर अब सुखिया सोलह साल की हो चुकी थीं,अब रामदीन को उसके ब्याह की चिंता हो रही थी लेकिन सुखिया यह कहकर मना कर देती कि जो भी गोविंद को अपनाएगा उसी से ब्याह करेंगी लेकिन मन के किसी कोने में तो उदय बसा था।उधर उदय भी अब जवान हो चला था उसके मन से भी अभी सुखिया दूर नहीं हुई थीं,जब कभी उदय गांव आता तो रामदीन और सुखिया से मिलने जरूर आता।

कुछ दिनों बाद रामदीन भी भगवान को प्यारे हो गए,अब सुखिया के सर पर किसी भी हाथ का सहारा ना बचा था लेकिन उसे जीना था क्योंकि अब गोविंद उसकी जिम्मेदारी थी,इसी तरह एक दो साल और बीत गए अब सुखिया अठारह की हो चुकी थी।

एक दिन उदय गांव आया सीधा सुखिया के घर पहुंचा लेकिन सुखिया तो खेत में थी वो खेत की ओर चल पड़ा, सुखिया ने उदय को देखा और बोली छोटे ठाकुर तुम इधर ना आया करो,लोग तरह तरह की बातें बनाते हैं।

उदय बोला, ठीक है क्या तुम मुझसे ब्याह करोगी।

नहीं छोटे ठाकुर इस जनम में तो ये नहीं हो सकेगा, कहां तुम और कहां मै!! सुखिया ने जवाब दिया।

मैं तुमसे हर हाल में ब्याह करने के लिए तैयार हूं अगर तुम कहो कि तुम मुझसे प्यार करती हो,उदय बोला।

बोलों!बोलो ना..... मुझे चाहती हो,उदय ने फिर पूछा।

जब से होश संभाला है छोटे ठाकुर तुम्हारे लिए ही जीती आई हूं, तुम्हारी एक झलक पाने के लिए भगवान से प्रार्थना करती हूं अगर तुम मुझे अपनाओगे तो मेरे लिए इससे बड़ा और कोई उपकार ना होगा, सुखिया बोली।उदय ये सुनकर बहुत खुश हुआ और बोला आज ही बाबूजी और मां से बात करता हूं।

सच!! छोटे ठाकुर हमारा ब्याह होगा, सुखिया ने खुश होकर पूछा।

हां, होगा जरूर होगा,अब तो मुझसे बात करने और बोलने में कोई परेशानी नहीं है,उदय ने पूछा।

सुखिया ने शरमाते हुए ना मे सर हिलाया___

तो मैं अब हवेली जाकर अभी और इसी वक्त बात करता हूं और इतना कहकर उदय चला गया।

बहुत दिन हो गए ना तो उदय सुखिया से मिलने आया और ना ही कोई खबर आई, सुखिया ने भी सोचा कि उदय वापस शहर लौट गया होगा इसी तरह दो महीने बीत गए फिर एक दिन सुखिया अपने बाड़े में जानवरों के लिए सानी बना रही थी तभी हवेली से एक आदमी संदेशा लेकर आया।

उसने पूछा रामदीन का घर यही है!!

सुखिया बोली, हां!!

उसने कहा, मुझे ठाकुर साहब ने भेजा है न्यौता देने के लिए।

किस बात का न्यौता? सुखिया ने पूछा।

वो बोला,ये लो न्यौता, कल छोटे ठाकुर का ब्याह है, ठाकुर साहब के कोई पुराने दोस्त हैं उनकी बेटी के साथ,उसी का न्यौता है और इतना कहकर वो चला गया।

सुखिया हाथ में न्यौता लेकर वही धम्म से नीचे ही बैठ गई और उसके आंसुओं से वो निमंत्रण पत्र गीला हो गया।

इतने में कहानी सुनाते सुनाते श्यामली देवी भी रो पड़ी___

राधिका बोली, नानी क्या हुआ? सुनाओ ना कहानी फिर आगे क्या हुआ,उदय की शादी उस लड़की से हुई.......

श्यामली देवी बोली, हां हुई ना शादी और वो लड़की मैं थी, मैंने ही उन दोनों को एक-दूसरे से अलग कर दिया।शादी के बाद तुम्हारे नाना जी ने मुझसे साफ़ साफ़ कह दिया कि ये शादी मेरी मर्जी से नहीं हुई मैं किसी और को पसंद करता हूं, घरवालों ने मेरे ऊपर दबाव डाला कि अगर मैं उस गरीब से शादी कर लूंगा तो मेरी छोटी बहनें कवांरी बैठी रहेगी मुझसे कसम ली गई कि मैं फिर उससे दुबारा ना मिलू।अब मैं भी बहुत परेशान हो गई,ये सुनकर, श्यामली देवी बोली।

फिर आपने क्या किया नानी, राधिका ने पूछा।फिर मैंने तेरे नानाजी से उस लड़की का पता ठिकाना पूछा और एक रात एक नौकरानी के साथ शाल ओढ़कर उससे मिलने पहुंच गई।वो मुझे देख कर बोली,कौन हो तुम?

मैंने कहा कि छोटे ठाकुर की घरवाली!!

वो बोली,अरे तुम अंदर आओ बहन और उसने मुझे एक मोतियों की माला भेंट में दी और बोली बहन इसके सिवा मेरे पास और कुछ नहीं है तुम्हें देने के लिए।

मैंने कहा, है ना।

उसने पूछा क्या?

मैंने कहा, मुझे मेरे छोटे ठाकुर वापस कर दो जीवन भर तुम्हारा उपकार नहीं भूलूंगी फिर मैंने बताया कि उन्होंने किन मजबूरियों में ये ब्याह किया, उनकी कोई ग़लती नहीं है।

सुखिया की आंखों से आंसुओं की धार बह चली, उसने मुझे भरोसा दिलाया और कहा कि बहन अब तुम निश्चिन्त हो जाओ, छोटे ठाकुर तुम्हारे है और तुम्हारे ही रहेंगे लेकिन सिर्फ इस जनम में अगले जनम में मैं किसी को भी उनका नहीं होने दूंगी।

और फिर पता नहीं सुखिया ने ऐसा क्या जादू किया कि फिर तुम्हारे नाना जी ने कभी भी सुखिया का नाम नहीं लिया।

फिर सुखिया का क्या हुआ, उसने शादी की, राधिका ने फिर से श्यामली देवी से प्रश्न पूछा।

नहीं, सुखिया ने शादी नहीं की, गोविंद को ही पालने पोसने में सारी जिंदगी लगा दी,बहु भी आ गई थी और पोता भी हो गया था उसके।फिर तुम्हारे नाना जी बहुत बीमार पडे, मरने से एक दिन पहले उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ मांगूंगा तो मेरी इच्छा पूरी करोगी।

मैंने कहा, हां।

वो बोले,एक बार मरने से पहले सुखिया से मिलना चाहता हूं।मैंने उनकी इच्छा का मान रखा और सुखिया को बुलवाया।

 सुखिया को देखकर तुम्हारे नाना जी बहुत खुश हुए और बोले अब तो तुम बूढ़ी हो गई हो।सुखिया बोली, छोटे ठाकुर,तुम भी कौन से जवान रह गए हो।

दोनों ने उस दिन सालों बाद दिल खोलकर बातें की और खूब हंसे फिर सुखिया चली गई लेकिन पता चला कि रात को ही सुखिया भगवान के पास चली गई उस दिन वो संतुष्ट हो चुकी थीं शायद और दूसरे दिन सुबह तुम्हारे नाना जी भी स्वर्ग सिधार गए, दोनों का सच्चा प्रेम था और दोनों की उम्र चालीस साल थी।और रमा के बाबूजी यानि कि छोटे ठाकुर बीमार हुए थे तो हमने रमा की शादी सोलह साल में ही कर दी अठारह साल में सूर्यांश पैदा हो गया था रमा को और सूर्यांश उसी दिन पैदा हुआ था जिस दिन छोटे ठाकुर साहब का देहांत हुआ था तभी सूर्यांश के हाव भाव और शक्ल उनसे मिलती है।रमा बोली ये तो ठीक है लेकिन तुम अलका बहु को देखकर क्यो आश्चर्य में पड़ी।

श्यामली बोली,ये अल्का बहु नहीं सुखिया हैं, मेरे पास सुखिया का कोई फोटो नहीं है लेकिन इस जनम में सुखिया ने अलका के रूप में जन्म लिया है वो सूर्यांश ही उदय है दोनों का मिलन फिर से हो गया।श्यामली देवी ने कहा बहुत बड़ा बोझ उतर गया मेरे मन से


पाठकों अभी कहानी खत्म नहीं हुई है___

                  

अलका और सूर्यांश पिछले जनम में उदय और सुखिया थे पिछले जनम में तो नहीं लेकिन इस जनम में दोनों ही एक-दूसरे के हो गए थे,इस बात की सबसे ज्यादा खुशी श्यामली देवी को हो रही थी।श्यामली बोली,अब सुन लिया सबने की मैं अलका को देखकर आश्चर्यचकित क्यो हुई थी, बहुत बड़ा संजोग है ये मेरे लिए और सबसे ज़्यादा खुशी की बात कि जो मेरी वजह से पहले नहीं मिल पाए वो अब मिल गये,अब मैं आराम से मर सकूंगी, बहुत बड़ा बोझ था मन में अब वो हट गया है और चलो अब सब सो जाओ कल सूर्यांश और अलका कुल देवी के दर्शन के लिए जाएंगे।तभी रमा बोली,सुबह-सुबह सबको तैयार होना है और जितनी भी औरतें सुबह सब उठकर,सब्जी पूड़ी बना लेगी क्योंकि गांव में कुछ नहीं मिलता खाने के लिए और जबसे हम लोगों ने गांव का घर छोड़ दिया है उसकी हालत भी बहुत जर्जर हो गई,बस अभी सुरक्षित है तो आंगन में लगा हुआ अमरूद का पेड़ और कुआं, अभी पिछली बार गांव गये थे तो पड़ोसियों को कुछ रूपए दे आए थे आंगन में नया बाथरूम बनवाने के लिए और एक नया हैंडपंप भी लगवाया है,मोटर और टंकी भी लगवाई हैं।

बच्चों के लिए ये सब इंतजाम करवा दिया है अब वहां एकाध दो दिन रह सकते हैं, बाकी वहां पहुंच कर लेंगे।

और सुबह सुबह सब तैयार होकर गांव की ओर रवाना हो गए,घर के ही लोगों की दो तीन कार थी तो कोई परेशानी भी नहीं हुई।

सब गांव पहुंचे और थोड़ी दूर पैदल जाकर ही कुल देवी का मंदिर था, बड़े बरगद के पेड़ के नीचे ,गांव वाले कहते थे कि वो मंदिर अंग्रेजों के समय के और पहले का है,

दूल्हा दुल्हन की गांठ जोड़कर पूजा के लिए ले जाया जा रहा था, दूल्हे ने सर पर शादी वाली पगड़ी भी पहनी थी,वो जैसे ही बरगद के पेड़ के नीचे पहुंचे, वहां नब्बे -बयानवे साल का एक बूढ़ा बैठा था।उसने जैसे ही सूर्यान्श को देखा तो बोला तुम आ गए बलवीर !!मैं कितने सालों से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं इसलिए तो अब तक जिंदा था एक आस बाकी थी कि एक ना एक दिन तुम और कुशमा जरूर आओगे और साथ में कुशमा भी आई है!!

सूर्यांश ने ये सुना और बोला नहीं मैं बलवीर नहीं हूं सूर्यांश हूं।

उस बूढ़े ने कहा, हां... हां...नाम बदल जाने से कुछ नहीं होता सूरत तो वहीं हैं,मैं तुम्हें नहीं पहचानूंगा भला!!तुम ही मेरे दोस्त बलवीर हो और घूंघट में कुशमा ही होगी मुझे सब मालूम है।

सब में सुनकर आश्चर्य में पड़ गये कि आखिर ये बूढ़ा कौन है ?

तब सूर्यान्श के पापा बोले,ये बाबा तो ना जाने कब से इस पेड़ के नीचे रहते हैं, मैंने हमेशा इनको यहीं रहते हुए देखा है कोई खाने को दे जाता है तो खा लेते हैं, हमेशा से इन्हें कहते सुना है कि अभी मैं नहीं मरूंगा, बहुत बड़ा पाप हुआ था मुझसे उसका प्रायश्चित अभी बाकी है।

आखिर ऐसी क्या बात है, सबने पूछा।

सूर्यांश के पापा बोले इन्होंने कभी बताया नहीं लेकिन लोग कहते हैं कि इनका कोई दोस्त था जिसको इन्होंने मार दिया था, फिर ये जेल भी चले गए और जब से जेल से आए हैं इसी पेड़ के नीचे रहते हैं,पुराना पेड़ गिर चुका था लेकिन इन्होंने ही नया पेड़ फिर से लगाया।

कुल देवी की पूजा करके सब चले आए लेकिन सूर्यान्श को मन ही मन कुछ खटक रहा था उसके मन में आया कि वो उन बाबा से फिर से मिलकर सारी बात पूछेगा,उधर श्यामली देवी को भी लगा हो ना हो कोई बात जरूर है तभी वो बूढ़ा ऐसा कह रहा था।

शाम को गांव के खेतों से कुछ ताज़ी ताज़ी सब्जिया खरीदी गई और पन्सारी से राशन का सामान लेकर घर की औरतों ने आंगन में ही ईंटों का चूल्हा बनाकर, सब मिलकर खाना बनाने लगी, सबसे पहले पुरुषों को खाना खिलाया गया फिर महिलाएं खाना खाकर चूल्हे के पास आग तापने बैठ गई साथ में बातें भी होती जा रही थी।

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई,रमा ने सूर्यान्श के पापा से कहा, सुनिए दरवाजे पर कोई है?

सूर्यांश के पापा ने दरवाजा खोला, देखा तो वहीं बाबा थे।

उन्होंने पूछा, बाबा !इतनी रात गए कहिए कुछ काम है।

हां, मुझे बलवीर से मिलना है उससे माफी मांगकर चला जाऊंगा, अभी तक इसलिए जिंदा हूं कि एक ना एक दिन मेरा दोस्त आएगा और मैं उससे माफ़ी मांगकर इस शरीर से मुक्त हो जाऊंगा।

सूर्यांश के पापा बोले, यहां कोई बलवीर नहीं है।

बाबा बोले है!! जो दूल्हा बनकर मंदिर में आया था वहीं मेरा दोस्त है और साथ में कुशमा भी थी,तुम उसे बुलाओ और साथ में कुशमा को भी फिर मैं सारी कहानी सुनाता हूं।

अब सब लोग आंगन में आग जलाकर बैठ गये बाबा की बात सुनने के लिए___

बाबा ने बताना शुरू किया__

बहुत समय पहले की बात है,तब अंग्रेजों का राज्य था, हमारे पूर्वज नील की खेती किया करते,जबरन उनसे अंग्रेज नील की खेती करवाते थे, उसमें कोई मुनाफा नहीं था,जमीन भी खराब होती थी ना करने पर अंग्रेज सरकार मनमाना लगान वसूलती थी और कोड़ों की मार भी देती थी।

बाद में कई सारे आन्दोलनो के बाद नील की खेती तो बंद हो गई लेकिन की हालत तो जस की तस थी,कभी बाढ़ तो कभी सूखा,जानवर भी नहीं होते थे जुताई के लिए,हम किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ था।

 हम लोग भूखों मरते थे लेकिन अंग्रेजी सरकार को कोई भी दया नहीं थी,ना तन पर कपड़े होते थे और ना इलाज के लिए पैसे।

तब हमें भरपेट खाने के लिए भी नहीं मिलता था फिर मैं छोटी मोटी चोरियां करने लगा,अब थोड़ा बहुत खाने को मिल जाता था कम से कम भूखे पेट नहीं सोना पड़ता था, घरवालों को भी पता नहीं था कि मैं चोरी करने लगा हूं।फिर एक बार मैंने सोचा कि किसी अंग्रेज अफसर के यहां बड़ी चोरी करता हूं छोटी मोटी चोरी करके तंग आ चुका था, ऐसा ही एक मौका मेरे हाथ लग गया एक अंग्रेज अफसर के घर से मैंने चोरी तो कर ली, घरवालों को पैसे दिए और कहा कि मैंने इस बार बड़ी चोरी की है, पिता जी बहुत डर गए उन्होंने सोचा अगर मैं पैसों के साथ पकड़ा गया तो पुलिस मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगी।

फिर पिताजी ने मुझे पैसों के साथ रातों-रात घर से भाग जाने को कहा और मैं घर छोड़कर चला आया, मैं कई दिनों तक इधर उधर भटकता रहा,इस गांव से उस गांव लेकिन कहीं भी सर ढकने के लिए जगह ना मिली फिर एक दिन मेरी मुलाकात बलवीर से हुई वो अनाथ था उसके मां बाप नहीं थे मामा के पास रहता था तो मामी ने घर से निकाल दिया था।एक पेड़ के नीचे भूखा प्यासा बैठा था, मेरी नज़र उस पर पड़ी, मैंने कुछ खरीद कर खा रहा था मैंने उसे भी खाने को पूछ लिया उसने अपनी सारी आपबीती सुना डाली और मैंने भी उससे सब कह दिया।अब हम पक्के दोस्त हो गए थे, उसे भी मैंने छोटी मोटी चोरी करना सिखा दिया हम चोरियां करते और मजे से रहते अब उस गांव में भी लोग हम पर शक करने लगे थे कि हम चोर हैं तो हमने वो गांव भी छोड़ दिया।अपनी अपनी पोटली और डंडा लेकर रहने का ठिकाना ढूंढ रहे थे, बलवीर अठारह साल का था और मैं बीस साल का, ऐसे ही किसी गांव से गुजरते हुए चले जा रहे थे।

बहुत ही सुंदर गांव था वो,हरा भरा,हमें प्यास भी लग रही थी एक कुएं पर पनिहारियां पानी भर रही थी,हम कुंए पर गए और पानी मांगा ,वहां हमारी मुलाकात कुशमा नाम की लड़की से हुई उसने हमें पानी पिलाया, मुझे कुशमा एक ही नजर में भा गई थी इसलिए मैंने उस गांव में रूकने का मन बना लिया।

मैंने बलवीर से कहा,भाई अब कुछ दिनों के लिए इसी गांव को हम अपना ठिकाना बनाते हैं, बलवीर ठीक है मुझे क्या परेशानी हो सकती है,चलो यही डेरा डाल लेते हैं।

हम उस गांव में रहने लगे,एक छोटा सा माता का मंदिर था बरगद के पेड़ के नीचे, वहीं कुआं भी था,आस पास छोटी छोटी झोपड़ियां थी, गांव से थोड़ी दूर पर एक नदी बहती थी जिसके आस पास लोग खेती किया करते थे।

हमने सोचा,हम भी किसी के खेतों में काम करके गुजारा कर ही लेंगे,हम दोनों का अब गांव में मन लग गया था बलवीर का तो पता नहीं लेकिन मेरा मन तो कुशमा पर आ गया था,उसकी मासूमियत ने मेरे दिल में जगह बना ली थी।

मैंने कई बार ये बात कुशमा से कहनी चाही लेकिन हिम्मत ना हुई, मैंने सोचा कह दूंगा,जब कुशमा मुझसे बात करने लगेंगी लेकिन कुशमा कभी भी मुझसे बात ना करती।

कुशमा की सिर्फ दादी थी और दादी के अलावा उसका और कोई अपना नहीं था।

फिर मैंने एक बार कुशमा और बलवीर को साथ साथ खेतों में देख लिया, मैंने छुपकर दोनों की बातें भी सुनी तब मुझे पता चला कि दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं, मैं गुस्से से उबल पड़ा उस समय तो मैंने कुछ नहीं कहा लेकिन जब बलवीर शाम को झोपड़ी में आया तो मैंने उसकी पोटली बाहर फेंक दी और उससे कहा कि अब वो उसके साथ नहीं रह सकता,अपना और कोई इंतजाम कर लो और वो बिना अपना कसूर पूछे चुपचाप अपनी पोटली उठाकर चला गया।

कुशमा की दादी को इस बात का पता चला तो उन्होंने गांव वालों से कहा कि वो बलवीर का ब्याह कुशमा से करना चाहती है गांव वालों को भी कोई एतराज़ नहीं हुआ क्योंकि अब हमने चोरी करना छोड दिया था और शरीफ इंसान बनकर उस गांव में रहने लगे थे।

बलवीर ने अब अपने लिए एक नई झोपड़ी बना ली और उसमें रहने लगा,अब मुझे तो किसी भी हाल में कुशमा चाहिए थी तो मैंने एक रात मंदिर में चोरी की माता के गहने और दानपात्र से सब चुरा लिया और बलवीर की झोपड़ी में जाकर उसकी पोटली में रख दिया।

सुबह हल्ला हुआ कि मंदिर में चोरी हो गई है,अब सबकी तलाशी हुई, मैंने कहा कल रात मैंने बलवीर को मंदिर के पास जाते देखा था यही चोर है,उसकी झोपड़ी में सब गए और पोटली से सब बरामद हो गया।

मैंने कहा,देखा यही चोर है।उसे गुस्सा आया और उसने मुझे थप्पड़ मारते हुए कहा, मैं चोर नहीं हूं।मेरे मुट्ठी में चाकू था, मुझे पहले से ही गुस्सा भरा था और वो चाकू मैंने बलवीर को भोंक दिया, बलवीर ने दम तोड लिया तभी ये देखकर कुशमा नदी की ओर भागी और नदी में कूद पड़ी उसे तैरना नहीं आता था,जब तक सबने ढूंढा उसके प्राण जा चुके थे।फिर पुलिस मुझे पकड़ कर ले गई,बीस साल की सख्त सजा हुई, मेरे अच्छे व्यवहार से एक दो साल पहले ही पुलिस ने मुझे रिहा कर दिया,तब से मैं इसी पेड़ के नीचे रहने लगा कि काश एक दिन बलवीर और कुशमा आएंगे मुझे माफ़ करने।मेरी वजह से मासूम प्रेमियों की जान चली गई तब से मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्कार रही है, मुझे कहीं भी चैन नहीं मिला,आज मैं दोनों को देखकर बहुत खुश हूं,तुम दोनों मेरे पास आओ....

बाबा ने दोनों को अपने पास बुलाकर एक दूसरे के हाथ में हाथ रखा फिर चले गए।फिर सब लोग खड़े खड़े सोच रहे थे ये कैसा संयोग है इन दोनों के पिछले जन्मों में ये लोग मिल नहीं लेकिन इस जनम में इनका सच्चा प्यार देखकर भगवान को इन्हें मिलाना ही पड़ा।

फिर दूसरे दिन सुबह पता चला कि बाबा नहीं रहें उनका मृत शरीर पेड़ के नीचे पाया गया।

   

  

 



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