संवेदनहीन लोग

संवेदनहीन लोग

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आज रिश्तों की पोटली खोली तो ढेरों रिश्ते अब तक जो साथ चले थे सब गढ़ने लगे थे कुछ कहानियाँ अपनी कुछ खट्टी कुछ मीठी कुछ बहुत तीखी और कसैली भी थी जिन्दगीं में। 

इन्हीं से तो खिचड़ी बनती है जिन्दगी की। किन्हीं से कुछ सीखते हैं, कुछ ताउम्र का ज़ख़्म दे नासूर बन आत्मा को छीजते रहते है। उनसे ना मन उबर पाता है ना ही भाग सकता है। जिन्दगी के दोराहे पर खड़ी बस जीना पड़ता है उसे।  

तभी पोटली में से निकला उसकी एक प्यारा सा रिश्ता उसकी सखी नेहा का जिसका साथ शादि के बाद टूट सा ही गया था। स्कूल साथ साथ खेले-पढ़े। हँसमुख मिलनसार नेहा। हर दिन चहकती रहती बड़ी हो बनना चाहती थी आई एस आफिसर। सपना था उसका देश के लिये कुछ करने का। लेकिन मध्यम वर्गीय परिवारों में कैरियर के स्थान पर लड़की के विवाह को आगे रखा जाता है कि कैसे भी लड़की का विवाह हो परिवार इस दायित्व से मुक्त हो यही नेहा के साथ हुआ सब पढ़ाई -लिखाई धरी रह गई और  नेहा जैसे ही ब्याह कर ससुराल आई तो खुशी से आँखें छलक गई उसकी क्यूँकि जैसे उसका स्वागत हो रहा था देख कर मन ही मन ख़ुश हो रही थी कि हाँ ऐसे ही घर का सपना देखती थी वो। 

नेहा को सबकी पसंद नापसंद का पूरा ख्याल रखती यहाँ तक कि वह खुद काम में व्यस्त होने पर वक़्त पर खाना खाना भी भूल जाती। सबको ख़ुश करने में वो खुद को जैसे भूल ही गई थी। 

नेहा का पति उससे बहुत प्यार करता था। ऐसा उसे लगता था लेकिन नेहा जब पहले बच्चे की माँ बनी तो तब सबके रगं उतरने लगें। सबका मतलबी चेहरा सामने आने लगा, सबके मुखौटे बारी -२ उतर रहे थे।कोई उसका ध्यान नही रखता। ना ही छोटे बच्चे की केयर के लिये कोई पास होता। किसी को भी नेहा की चिन्ता नही थीं वो बुखार में तप रही थी। नेहा के आँसू रूकने का नाम नही ले रहे थे कि ये वही परिवार वाले थे जिनकी सेवा में नेहा दिन -रात एक कर देती थी और आज जब उसे सबके प्यार, सहारे की आवश्यकता थी तो कोई उसके पास भी फटक नही रहा था।

नेहा ज़्यादा बुखार होने के कारण बेहोशी की हालत में पहुँच जाती है और उसका दिल दर्द के मारे तड़प उठता है और आज उसे परिवार का हर सदस्य अपरिचित लग रहा होता है और सबसे ज़्यादा उसका पति जिसका उसने हर परिस्थिति में साथ दिया था, उसने भी नेहा की परवाह नहीं की। वो आकर एक बार तो उसका हाल पूछ ले। नेहा के साथ यह व्यवहार तो तब से शुरू हो गया था जब से वो माँ बनने वाली थी क्यूँकि उस स्थिति में वो परिवार वाले और पति का उतना ध्यान नहीं रख पाती थी लेकिन आज तो हद ही हो गई सबके व्यवहार ने नेहा को ये बता दिया कि आज तक वो इन खोखले रिश्तो को अपने प्यार से सींचती रही जिनको उसका कोई मोल ही नहीं है।

वह इन लोगों को अपना मान बस उनकी नौकरी ही कर रही थी। क्यूंकिं कोई अपना ऐसी परिस्थिति में इतने सवेंदनहीन नहीं हो सकता। नेहा सोचने पर मजबूर हो जाती है कि आख़िर कैसे संस्कार दिए जाते हैं एक बेटी को जो दर्द सहकर भी एक खोखले रिश्ते को संजोना चाहती है। क्या समाज के डर से वो मजबूर है या यही नारीशक्ति है ? 


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