संतुष्टि की झलक
संतुष्टि की झलक


तो बात है उन तरसती निगाहों की , जिसमें जो बेसब्री से अपने बेटे के आने का या उसके फ़ोन आने का इंतजार किये जा रहे थे , कल मैंने अपने नाना की आखों में वही बेसब्री वही इंतजार फिर देखा कह तो वो कुछ पा नहीं रहे थे, जाने किस कश्मकश में उलझे थे, कहूं या नहीं। फिर हिम्मत कर खुद ने ही कहा बेटा जरा मामा को फ़ोन लगा दो...... मुझ में अब भी अपने मामा के प्रति आक्रोश था, पर में नाना के इंतजार भरी निगाहें भी देख पा रही थी । फिर माँ ने कॉल लगाया उधर से कोई जवाब नहीं आया क्यूंकि किसी ने कॉल उठाया ही नहीं फिर थोड़ी देर बाद फिर एक बार कॉल लगाया, पर तब भी कोई जवाब नहीं...... मैं बहुत गुस्सा हुई फिर, माँ से कहा -अब कोई जरुरत नहीं है कॉल करने की जब वो लोग नहीं रिसीव करते है कॉल तो आप लोग क्यों लगाते है फिर माँ ने मुझे समझाया- की बेटा ऐसा नहीं करते।
हमें थोड़ा समझना चाहिए नाना नानीजी की चिंता को ,माँ के समझने पर मेरा थोड़ा गुस्सा शांत हुआ और मैं पहले की तरह नार्मल हो गयी ।फिर मैंने खुद नाना जी को कॉल लगाकर दिया लेकिन तब भी उधर से कोई जवाब नहीं आया ।सिर्फ कम्पनी वाली की अवाज आती की आप जिस व्यक्ति से बात करना चाहते है, वे आपकी कॉल रिसीव नहीं कर रहे हैं , ये सब देख नाना नानी थोड़े हताश थे, पर कही न कही उनके बेटे की याद उन्हें सता रही थी , पर मैंने भी कॉल लगाना नहीं छोड़ा १० से १५ बार कॉल किये, फिर नाना ने मना कर दिया कि अब रहने दे......
फिर में और सभी घर वाले अपने अपने काम में लग गए , फिर कुछ देर बाद फ़ोन की रिंग बजी उधर से भैया की आवाज आयी , मतलब मेरे नानाजी के पोते की आवाज मैंने फ़ोन नानाजी को दे दिया, नानाजी ने बहुत देर तक बातें की और बातें करके वे संतुष्ट दिख रहे थे ,थोड़ी देर अपने पोते से बात कर उन्होंने अपने बेटे से बात की ऐसा लग रहा था । जैसे मामा से बात करके उनका मन जो विचलित था शांत हो गया, फिर थोड़ी देर मामा से नानी जी ने बात की बातें करते हुए ऐसा लग रहा हो मानों जैसे मामा नानीजी के पास ही हो और सामने बैठे बातें कर रहे थोड़ी देर बाद फोन कट कर दिया गया अब उन आखों में पहले वाला इन्जार नहीं था ,अब वे संतुष्ट थे और उन्हें देखकर में खुश .. ....
लेकिन मन में अब भी कई सवाल थे ..........कि क्या बच्चे अपने बचपन में जिद नहीं करते ??क्या माँ बाप अपने बच्चो की हर जिद के लिए मेहनत नहीं करते ।और जब आज उनकी स्थिति ऐसी है की मानों जैसी उनका बचपन फिर लौट आया हो उस स्थिति में क्या बच्चो का फर्ज नहीं बनता की वो उन्हें सभांले ...........