Riya yogi

Others

3.5  

Riya yogi

Others

एक लेखक

एक लेखक

3 mins
3.2K


हर बार की तरह फिर एक उलझन में उलझी हुई सी मैं खिड़की से आसमान को निहार रही हूँ, ठंडी -ठंडी हवा चल रही है ,पक्षियों के मधुर स्वर मेरे कानों को अत्यंत प्रिय लग रहे है और ये चहचहाते पक्षी आसमान में आजाद बड़े ही बेफिक्र से घूम रहे है। इनकी बेफिक्री देख जैसे मैं भी बेफिक्र हो गई कुछ पलों के लिए जैसे भूल ही गई की मैं कुछ काम करने बैठी थी, तभी अचानक नजर सामने लगे पेड़ पर बैठी चिड़िया और उसके बच्चे पर गई जहां एक चिड़िया अपने बच्चे को दाना खिला रही है, और यह दृश्य अत्यंत ही मनोरम है... मैं इन्हे देख अपने ही विचारों में जैसे खो सी गई, इस समझ से परे मैं क्या लिखू, कैसे अपनी कहानी शुरू करूँ, कहाँ इसे खत्म करूँ। कहते है- हमारे दिमाग में एक समय में कितने ही सवाल आते है लेकिन हम कुछ पलों में उसे भूल जाते है, लेकिन एक लेखक उन कुछ चुनिंदा खूबसूरत पलों को अपनी कलम से एक नया आकर देता है

मैं अपनी खिड़की में चेयर पर बैठी हुई हूँ...,कभी सोच रही हूँ की( बेटियों के लिए कुछ लिखू , फिर थोड़ी ही देर में मेरा विचार बदल जाता है, सोच रही हूँ की नहीं मुझे माँ पर कुछ लिखना चाहिए ,फिर मन कहता है- इन शीर्षक पर तो पहले भी बातें हो चुकी है तो क्यों न आज किसी नए शीर्षक पर बात की जाये).... मेरे मन में घूम -घूम कर कई विचार उमड़ रहे है पर कोई अच्छा शीर्षक नहीं मिल पा रहा और मेरी टेबल पर कुछ पन्ने और कलम मेरा इंतजार कर रहे है और टेबल पर रखी कॉफी का कप जैसे मुझसे कह रहा हो-" रिया बहुत देर हो गई है अब तो मुझे पी लो ",लेकिन मैं अब भी कुछ सोचने में लगी हूँ.... वातावरण बहुत ही शांत है ,अपनी टेबल पर रखी घड़ी की टिक टिक भी मुझे सुनाये दे रही है, अब मैं और ज्यादा सोचने के बाद अपनी कलम उठा चुकी हूँ और कुछ लिखने का प्रयास कर रही हूँ, लेकिन मुझे अभी तक शीर्षक नहीं मिला है फिर मैं कुछ लिखती हूँ और फिर उस पन्ने को फोल्ड कर फेंक देती हूँ , जो शब्द मैं लिख रही हूँ कही न कही वे मुझे पसंद नहीं आ रहे है मैंने कितने ही पन्नों का रोल बनाकर यहाँ वहां बिखेर दिए है, मेरा कमरा अब मुझे गन्दा दिख रहा है, लेकिन ...मन अब भी किसी सोच में लगा है... एक ऐसी कहानी का शीर्षक या एक ऐसी कविता जिसे खुद भी पढ़ने में अच्छा लगे और लोगो को भी पर ऐसा कोई शीर्षक मुझे मिला नहीं ...और अब मैं यह सोच रही हूँ की क्या एक लेखक की भी यही मनोदशा होगी, जैसी मेरी और इस सोचने- सोचने में मेरी कॉफी ठंडी हो गई,.... लेकिन मैंने अभी हार नहीं मानी है एक लम्बी साँस लेकर.... मैं फिर से अपने काम में जुट गई हूँ और इस बार मेरे पास शीर्षक भी है और एक अच्छी कहानी भी।

अब मन ने भी कहा है- यही एक लेखक की मनोदशा है...

कुछ पंक्तियाँ जो मन में चल रही है ...... 


कब न जाने शब्द मेरी रचना के आधार बन गए 

कब न जाने शब्द मेरी कविता की लय और ताल बन गए ....

                                     


Rate this content
Log in