Husan Ara

Inspirational

5.0  

Husan Ara

Inspirational

संकल्प

संकल्प

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"शाइना तू जा तो रही है ना। " सीमा की आवाज़ में कुछ बेचेनी थी।

नहीं, बिल्कुल नहीं

प्लीज यार, समझा कर ना। तूने हमेशा मेरा इतना साथ दिया है । एक बार और सही

अच्छा ! मतलब जो कला मुझमे है ही नहीं, उसका क्रेडिट लेने चली जाऊ। और खुशी खुशी फ़ोटो क्लिक कराऊ, कॉम्प्लिमेंटस लूँ।

तो इसमें परेशानी क्या है तुझे। मैं खुद भेज रही हूं ना। मै इस दुनिया का सामना करने लायक नहीं हूँ।

सीमा की पलकें भीग चुकी थी। वह आकर अपने बेड पर बैठ गई।

देख सीमा, आज लोग तेरी पेंटिंग्स को इतना सराह रहे हैं। सब तरफ तेरे चर्चे हैं, सब मिलना चाहते हैं तुझसे। अब तुझे पुरुस्कार देने खुद सबसे बड़े चित्रकार अमरेंद्र जी आ रहे हैं, जिनको तू अपना आइडियल मानती आई है। (सीमा के कंधे पर हाथ रखते हुए शाइना बोली थी।)

मुझे सब पता है, सीमा बोल पड़ी।अगर ये कुछ साल पहले की बात होती, तो बात ही कुछ और होती। अब हो सकता है मुझे देखने के बाद लोग मेरी पेंटिंग्स खरीदना ही बंद कर दे।

गहन चिंतन में थी सीमा,

ऐसा तुझे लगता है। लोग किसी कलाकार को पसंद करते हैं, उसकी कला से। कला ही पढ़ी जाती है, सुनी जाती है, देखी जाती है, घरो में सजाई जाती है।

और तू भाग किससे रही है, खुद से ? या अपने घरवालों से, या रवि से !

रवि

हां, यही तो था वो, जिसके लिए घरवालो की बग़ावत की थी उसने। अपना प्रोफ़ेशन अपने सपने सब भूल कर हर जगह उसी का नाम लिखना, सजाना, उसी की पेन्टिंग बनाना।

उनकी मुलाकात चैटबुक पर हुई थी। सीमा के माता पिता का सपना उसे इंजीनियरिंग करने का था। उसी की तैयारी के लिए कोचिंग जॉइन कर ली थी,मगर उसे पेंटिंग्स बनाने, रंगों से खेलने और कल्पनाओं को कागज़ पर उतारने का कुछ ऐसा जुनून था, की वह अपने पैशन को ही ज़्यादा वक़्त देती रहती।

अक्सर अपनी बनाई पेंटिंग्स को चैटबुक पर डालना सबकी सराहना पाना भी धीरे -धीरे उसकी दिनचर्या का अहम हिस्सा बन चुका था। रवि से उसकी दोस्ती भी ऐसे ही हुई थी। वह घण्टो उसकी पेंटिंग्स के बारे में बात करता सवाल पूछता, तारीफ करता। दोनों की ऑनलाइन दोस्ती धीरे धीरे रियल लाइफ दोस्ती में बदलने लगी।

शाइना के अलावा वह अपने सीक्रेट्स किसी से शेयर नहीं करती थी।

दोनों सहेलियां रवि का चैट बुक एकाउंट चेक करतीं, उसी से उन्हें पता लगा कि वह इंजीनियरिंग 2nd ईयर का छात्र है, सिंगल है और उसकी दिलचस्पी भी पेंटिंग्स में है।

धीरे धीरे मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा। कभी पार्क, कभी रेस्तरां तो कभी मॉल। रवि अपनी माँ से भी अक्सर सीमा की बात कराता।

मगर सीमा अपने घरवालो से बात करने में हमेशा डरती। शाइना जो खुद बहुत खुले विचारों की लड़की थी, बस उसी के साथ अपनी बातें किया करती थी।

सीमा ने अपने बर्थडे पर अपने बैच मेट्स को भी इनवाइट किया था। उसी का बैचमेट सोनू, रवि को देखकर बोला.. अरे रविंद्र भय्या आप यहां। फिर वे दोनों आपस मे बहुत देर बाते करते रहे। जबकि सीमा और शाइना मेहमानों की सेवा में तो कभी डांस में लगे रहे।

ये बात उस समय तो आई गई हो गई कि सोनू और रवि एक दूसरे को कैसे जानते थे। मगर ये बात सीमा को उस समय याद आई जब, उसके मम्मी पापा ने उनके बारे में पता चलने पर, सीमा की शादी अचानक से तय कर दी।

साथ जीने मरने की कसमें खाने वाला रवि, जाने कहाँ गुम हो गया। कहीं पापा और भाई ने तो उसे नहीं डरा दिया सोचती हुई सीमा को रवि जब उसके बताए पते पर नहीं मिला तो वह सोनू के पास ही तो गई थी।

सोनू ने जब सीमा की गिड़गिड़ाती आवाज़ सुनी तो बिना कुछ पूछे उसने सही सही पता बता दिया।

सीमा को वहां पहुंचने में पूरा एक घंटा लगा। वह हैरान तो थी, मगर घरवालों के डर से रवि से जल्दी से जल्दी मिलने के लिए बेचेन थी।

मगर घर पहुँच कर वह जैसे ही माँ के गले लग कर रोई, उन्होंने सीमा को पहचानने से साफ इंकार कर दिया, खुद सीमा को लगा कि यह तो वह आवाज़ नहीं थी, जिससे अक्सर रवि उसकी बात कराया करता था।

उसने अपने फ़ोन में चैट्स और फोटोज दिखाने शुरू किए तो गोद मे बच्चा लिए एक महिला बेहोश होते होते बची। उसने गुस्से में अपनी और रवि की शादी की फ़ोटो सीमा को थमाते हुए, सीमा का फ़ोन तोड़ डाला और पता नहीं क्या क्या सुनाया। मगर सीमा तो सुन्न खड़ी थी, ज़मीन उसके पैरों से खिसक चुकी थी। वो निकल पड़ी थी वहां से, घर की तरफ। वो जानती थी कि अब तक माँ उसके जाने का पत्र पढ़ चुकी होंगी । मांग लेगी माफ़ी, थी वो गुनाहगार। बिना किसी की सलाह लिए अपनी शर्तों पर चले जाने की ठानी थी उसने।

वह चले जा रही थी, अधमरी हालात में तभी पीछे से रवि की आवाज़ आने पर वह कुछ ठिठकी।

आ गया तुम्हें मज़ा मेरा घर तोड़कर.. रवि चिल्लाने लगा ।क्या ज़रूरत थी यहां आने की ? तुम्हे पता बताया तो था, वहां इंतज़ार नहीं कर सकती थी।

सीमा का मन तो बहुत कुछ सुनाने चिल्लाने को कर रहा था, मगर उसके कुछ कहने से पहले ही रवि उसके चेहरे और दाए बाज़ू और हाथ पर तेजाब फेंक चुका था।

अब बनाना पेन्टिंग, और करना मैकअप। तूने मेरी ज़िंदगी बर्बाद की है और मैंने.......

इतना ही सुन पाई थी वह, जब आंख खुली तो एक अस्पताल में थी। कुछ आसपास के लोगो ने शायद उसे एडमिट कराया होगा।

तब से उसने पुरानी ज़िन्दगी में न लौटने का और अपने दम पर कुछ करने का संकल्प ले तो लिया था, क्योंकि वो किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी,। मगर अकेली रातो में वह कितना रोइ थी, उसके और शाइना के अलावा बस वह घर जानता था। जहाँ वह अस्पताल के बाद आ गई थी।

माँ बाप ढूंढते ढूंढते थक गए। पहचान तो उसकी बाकी रह नहीं गई थी

मगर यह गुस्सा और दुख उसे उसके पैशन के और करीब ले आया था। थक हारकर बैठ जाने वालों में से नहीं थी वह। जो उसके पास नहीं था उसके लिए रोइ नहीं वह, वो हमेशा उसे देखती जो उसके पास था ! उसका बायां हाथ।

रोती तो वह उस दुख के लिए थी, जो वह अपने पेरेंट्स को दे आई थी।

अपना खर्च पहले उसने अपने कड़े, बालियां, चैन आदि बेचकर चलाया, फिर वह धीरे धीरे अपने उल्टे हाथ से कलाकारी करने में पारंगत होती गई

आज उसकी जिंदगी में वह दिन आया था कि उसकी पेंटिंग्स को सम्मानित करने के लिए स्वयं अमरेंद्र जी पधार रहे थे। मगर वह शाइना को भेजकर अपने को सबसे छुपाना चाहती थी।

यादों के भवँर से किसी तरह निकलकर, वह खुद को सामने लगे आईने में देखने लगी।

मगर आज शाइना अपनी सब ताक़त लगा कर उसे सम्मान और अपने घरवालों के बीच में स्थान दिलाने की तैयारी में थी। क्योंकि पश्चाताप की अग्नि में वह भी जल रही थी, क्योकि सही मौके पर वह चाहती तो सीमा को चेता सकती थी।

आज के कार्यक्रम में सीमा के माता पिता को वह स्वयं इनवाइट तो करके आई ही थी, और साथ ही साथ पूरी घटना भी उन्हें बता आई थी।

माँ बाप तो कबसे सीमा से मिलने की मन्नते मांग रहे थे। वो आने के लिए तैयार क्या समय से पहले ही पहुच चुके थे। अपनी बेटी का दुख दर्द सब अपने सीने में भर लेने के लिए।

उधर शाइना तैयार करने में लगी हुई थी सीमा को... फिर से उसी दुनिया मे ले जाने के लिए ..जहां वह चहकती थी, ज़िद करती और अपनी कला को दुनिया भर में मशहूर करने के सपने देखती थी।

और सीमा वहां जाने को अब तैयार थी, रवि जैसे उन वहशी आशिकों को उनकी औकात दिखाने और अपने हौसलें की नई कहानी दुनिया को बताने।

यही सोचकर कि उसका संकल्प पूरा होने का शायद यह भी एक कदम हो।


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