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Rajeev Kumar

Inspirational

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Rajeev Kumar

Inspirational

संघर्ष

संघर्ष

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अभी तक उसको आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हो पायी थी। सफलता की इच्छा व कामना हेतु वह यत्र-तत्र भटकता रहा था। स्वयं को प्रफुलित और उत्साहित करने हेतु वह संघर्ष की ही कहानियां और कविताएं पढ़ता रहता था। इसी काम में उसको रसानुभव होता था। वह जानता था कि सफलता के सोपान पे चढ़ने के लिए संघर्ष ही एक मात्र और विश्वसनीय उपाय है।

यह कहानी है एक औसत से भी औसत सामाजिक हैसियत वाले एक युवक मोहन की। सामान्य सी कद-काठी, साँवला चेहरा और घुंघराले बेजान से बाल, मगर चेहरे से हमेशा व्यस्त दिखने वाला इंसान। मोहन ने बचपन में ही अपने इर्द-गिर्द कटु आलोचकों का सामना किया था। गंभीर से गंभीर बात में मोहन के चुप रहने के गुण को अवगुण समझकर उसके अज्ञानी और अल्पज्ञानी मित्रों ने अपने ज्ञान का प्रदर्शन कर समाज में प्रतिष्ठा पाया था। समाज में महाज्ञानी के रूप में प्रतिष्ठा पाए एक शिक्षक व्योमनाथ ने मोहन से कहा ’’ तुम स्वयं को व्यस्त समझते हो लेकिन हो सकता है कि गंभीरता पूर्वक विचार करने पर तुम्हें पता चलेगा कि तुम व्यस्त नहीं बल्कि अस्त-व्यस्त हो। ’’ अपनी बात खत्म करने के पश्चात वो ठहाका लगाकर हँस पड़े थे और उनके साथ-साथ मोहन के मित्र भी, जो मोहन पर हँसने का एक भी मौका गंवाना नहीं चाहते थे, वो भी हँस पड़े थे। मन मसोस कर रहा गया मोहन का मन अब उदास हो चुका था, मगर शिक्षक की कही गयी बात उसके मन में भीतर तक गड़ गयी थी।

खेल के मैदान में डटे मित्रों में से अशोक ने जब वहाँ से गुजरते हुए मोहन को खेलने के लिए आवाज लगायी तो बात काटते हुए वीमल ने कहा ’’ अरे छोड़ो न जाने दो उसको, वो ढीला लड़का है, अपने को व्यस्त दिखाता है, न पढ़ायी में अच्छा और न खेल में ही अच्छा। खुद भी हारेगा और हम लोगों को भी हराएगा। ’’ अशोक और विमल ठहाका लगकर हँस पड़े थे, सुनने के बाद मोहन ने बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को शांत किया और अपने घर लौट आया।

रात्री की बेला उमस भरी थी। पŸाों के हिलने से हवा का एहसास हो रहा था, मगर बदन को ठंडक का कोई एहसास नहीं था। विस्तर पर करवट बदलते मोहन के मन-मस्तिष्क में एक बात नश्तर की भाँति चलती हुई प्रतीत हुई कि लोग तो ठीक ही कह रहे हैं। मोहन ने आत्ममंथन प्रारम्भ किया ’ मैं क्या हूँ ? कौन हूँ ? मेरी दक्षता कितनी है ? मेरा अस्तित्व कितना है ? सफलता का स्वाद चखने के लिए कितनी बार असफल होना पड़ेगा ? क्या असफलता किसी को सदा के लिए भयभीत या परास्त कर सकती है ? मैं अभी तक कहाँ था, सफलता के बारे में पहले क्यों नहीं सोचा ? मैंने जो रास्ता चुना है वो सही है कि नहीं ? ’ यही सब प्रश्न मोहन के मन-मस्तिष्क पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे, मोहन को आगे बढ़ने से रोकते भी रहे। उसके सुविचार के आगे दिवार भी खड़ी करते रहे। एकबारगी उसके मन में आया कि क्या इन सारे प्रश्नों का सामना मैं कर पाऊंगा ?

इस सब सवालोें ने मोहन के मस्तिष्क में उब और थकान ने आँखों में गहरी नींद का एहसास करा दिया था। सोने की तीव्र इच्छा होने लगी, मगर उसके मन में नई उर्जा और उमंग को भर दिया था, जिसके कारण मोहन ने आँखों में ठंडे पानी का छींटा मारा और एक बजे भोर में ही पढ़ने के लिए बैठ गया। उसके जीवन में यह पहला अवसर था कि वो गंभीर नीद्रा को चुनौती दे रहा था।

तीन-चार दिन नज़र नहीं आने पर मोहन के मित्र जब मिलने आए तो उसने अपनी माँ से कहलवा दिया ’’ वो अभी बहुत व्यस्त है, समय मिलने पर तुम लोगों से खुद ही मिल लेगा। ’’

दोस्त तो बिना कुछ कहे निकल गए लेकिन किसी के मन में गुस्सा पनपा था तो किसी के मन में जलन की भावना घर कर गई थी। सभी के कुमानुसिक विचारधारा का परिणाम यह निकला कि मित्रों द्वारा मोहन को ’ मेंटल ’ नाम देकर प्रचारित किया गया । लोगों के मखौल का श्वब बना मोहन अपनी धुन में लगा रहा।

क्या रात, क्या दिन, क्या भूख, क्या प्यास, क्या आराम, क्या जागना ? सब का संतुलन बिगड़ा। मेहनत रंग लायी। प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित होकर, मोहन ने सब का मुँह बंद कर दिया। समाज में अपना और अपने माता-पिता का मान बढ़ाया। मोहन ने अपने मित्रों से कहा ’’ व्यस्त और अस्त-व्यस्त का मतलब तुमलोगों के ठहाकों ने समझाया, इसके लिए दिल से धन्यवाद। ’’

कुछ मित्रों को अपनी गलती का एहसास होते ही उन लोगों ने माफी माँगने के बाद बधाई दी और कुछ मित्र तो आज भी गुस्से में नजर आए और जलने वाले अब भी जल रहे थे।


समाप्त



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