सम्मान
सम्मान
स्कूल बस से उतर के आरव .....अपनी मम्मी सौम्या को पकड़ कर रोने लगा। सौम्या ने पूछा " आरव! क्या हुआ बेटा? तुम रो क्यों रहे हो?"
लेकिन बिना कुछ कहे .....आरव रोता हुआ..... घर आ गया।
घर आ के सौम्या ने पूछा .."क्या हुआ ?बेटा."... किसी ने कुछ कहा" क्या आपको या" दोस्तों से झगड़ा हुआ।"
बैग को खुद से दूर फैकते हुए.........आरव ने बोला!"आज मुझे प्रिंसिपल ने सबके सामने क्लास में डांटा।"
"अच्छा ! "तो ये बात हैं । "
"लेकिन आपने क्या किया था? अब ये भी तो बताओ। कुछ गलती की होगी....... तभी तो डांटा होगा। आखिर वो तुम्हारे शिक्षक हैं। तो तुम्हें तुम्हारे भलाई के लिए ही डांटेंगे ना।" सौम्या ने कहा
मम्मी !"आप रहने दो!"
"मैं तो पापा को ही बताऊंगा। अब वो ही उनका दिमाग ठीक कर सकते हैं।"
सौम्या ने डाँटते हुए कहा....." आरव!ये कौन सा तरीका है? अपने प्रिंसिपल के लिए बात करने का .....वो तुमसे उम्र में बड़े है। तुम्हारे शिक्षक हैं।"
"सॉरी माँ ! "गर्दन झुकाए हुए ,आरव ने कहा
"अब बोलो"-
"क्या बात हुई थी?"
नजर झुकाए हुए आरव ने कहा ......"वो मां मैं मैथ की कक्षा में जहाज बना रहा था। तो मुझे डाँट पड़ी।"
"डाँट पड़ी.......
"किसने डांटा मेरे बेटे को?...... पीछे से आरव के पापा सुरेश बोल पड़े।"
सुरेश !"तुम इतनी जल्दी आज ऑफिस से कैसे आ गए?" सौम्या ने कहा
"क्यों नहीं आ सकता?"
"नहीं मेरा वो मतलब नहीं था।"
"मतलब वतलब रहने दो। " तुम जाओ चाय बनाओ।
सौम्या किचन में चली जाती हैं।
हाँ!" बेटा आरव किसने डांटा तुम्हें?"
पापा !"प्रिंसी ने"
क्या? "उस दो कौड़ी के आदमी की इतनी हिम्मत की मेरे बेटे को डांटे। मैं कल ही चल के उसकी क्लास लेता हूँ।"
सौम्या किचन से बाहर आयी। तो सुरेश और आरव की बातें सुन के दुःखी हो गयी। क्योंकि सुरेश बहुत ही शॉर्टटेम्पर्ड इंसान हैं। और आरव को किसी ने कुछ भी कहा .... फिर तो वो आरव के पीछे झगड़े करने पहुंच जाते।फिर चाहे सामने वाला बच्चा हो या बुढ़ा। आरव सुरेश की इस तरह के सपोर्ट पाकर बिगड़ने लगा था हर छोटी से छोटी बात शिकायत पापा से करता।
"लेकिन सुरेश गलती आरव की थी।" ....सौम्या ने कहा
तभी सुरेश ने बोला "तुम तो रहने दो यार......
तुम शायद भूल रही हो जमाना बदल चुका है। और अब हम स्कूल को एक भारी भरकम फीस जमा करते हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए ना कि डांटने के लिए। समझी....."
"लेकिन शिक्षक अगर सही गलत और नैतिक मूल्यों की शिक्षा नही देगा, तो कौन देगा? "
"शिक्षक हमेशा सम्माननीय है चाहे जमाना जो भी हो.".....सुरेश।
"तुम स्कूल मत जाना ,इसमे आरव की ही गलती थी।.".....
अच्छा! अब बस करो।
सौम्या सोचने लगी... कि आरव को कैसे सुधारा जाय? सुरेश को कैसे समझाऊ?
अगले दिन आरव स्कूल से लौटा तो बहुत खुश था।
वाह ! "आरव आज बड़े खुश हो"।
हाँ,! मां "आज सब प्रिंसिपल को देख के हँस रहे थे।"
क्योंकि पापा ने उनको बहुत डांटा। 12 साल के बेटे के मुँह से ऐसी बाते सौम्या को अच्छी नहीं लगी।अतः घर आते सौम्या ने सोच लिया था कि आज तो वो सुरेश से बात कर के ही रहेगी ।रात में सुरेश जब घर आये.. तो काफी गुस्से में थे।
सौम्या सभी काम ख़त्म कर के जब कमरे में गयी। तो सुरेश अपने मित्र से फोन पर आज ऑफिस में हुई घटना की बात कर रहे थे।........कि आज बॉस के 16 साल के बेटे ने सबके सामने कैसे छोटी सी बात पर उनपर चिल्लाया। जबकी गलती उनके बेटे की ही थी। और जब सुरेश ने उसे बोला .....कि" लेकिन बेटा इसमें मेरी कोई गलती नहीं।नहीं तो"
बॉस ने भी बिना बात जाने मुझे कह दिया कि दो कौड़ी के आदमी तुम्हारी इतनी औकात की मेरे बेटे को गलत कहो।"
और कह रहे थे कि आजकल लोग बड़े छोटे से बात करने की तमीज ही भूल चुके हैं।......मै कल ही अपना इस्तीफा पत्र भेज दूंगा।..... और नौकरी छोड़ दूंगा।
पास बैठी सौम्या को मुस्कुराते हुए देख के सुरेश ने फ़ोन रख दिया। और सौम्या से गुस्से में कहा ......."तुम मुस्कुरा क्यों रही हो?"
"क्योंकि सुरेश तुम नौकरी छोड़ कर क्या पाओगे? क्या तुम्हें अपना आत्मसम्मान वापिस मिल सकता है ?.....नही ना। और तुम्हारे नजरिए से बात करूं ....तो गलत क्या कहा बॉस ने ?......दो कौड़ी के ही तो है हम। इतना पढ़ लिख के भी हम नौकर ही तो हैं।"
"मतलब क्या है तुम्हारा कहने का साफ साफ बताओ?..... पहेलियां मत बुझाओ।"
"वही जो तुमने आज सुबह आरव के सामने प्रिंसिपल को कहा.....शाम को तुम्हारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। तो दो एक सी घटनाओं में सिर्फ किरदार बदले थे। अपमान करने का तरीका नहीं। बुरा मत मानना सुरेश लेकिन क्या आरव बड़ा हो के किसी बड़े बूढे के साथ बदतमीजी नही करेगा।इस बात की क्या गारंटी है।बजाय आरव को सही गलत समझाने के तुम बिना कुछ सोचे समझे उसको सपोर्ट करते हो। तुमने उसके ही सामने प्रिंसिपल को गुस्सा दिखा के आये । वो भी बिना किसी गलती के........ ।"
सुरेश शिक्षक दो कौड़ी का नहीं होता। आदर्श शिक्षक अनमोल उपहार की तरह होता है। जो शिक्षा से हमारे जीवन को भर देता है।मैं ये नहीं कहती हूं कि हर कोई एक सा ही होता है लेकिन बिना सोचे समझे बोलने में के मैं खिलाफ हुँ। हर चीज का मोल हम पैसों से नहीं कर सकते।"
सुरेश ने कहा .....हम्म..... गहरी साँस लेते हुए।
"तुमने सही कहा मैं कल ही जा के प्रिंसिपल सर से माफी मांगूंगा।"
दोस्तों आजकल कही ना कही हमारे व्यवहार में शिष्टाचार में कमी आ गयी है। हम उम्र और ज्ञान की जगह लोगो को उनके पैसों के हिसाब से इज़्ज़त देते है।जो कि गलत है। एक ज्ञानी शिक्षक और बड़े बुजुर्गों हमारे जीवन अनमोल उपहार है। जिनका हमे सम्मान करना चाहिए।