समझदारी
समझदारी
हरीश भाई को रिटायर हुए करीब दस साल हो चुके थे। बिल्कुल चुस्त-दुरुस्त। करीब-करीब अपना हर काम स्वयं ही कर लेते। रोज सुबह भ्रमण को जाते, पार्क ही थोड़ी देर योग करते। जो भी उन्हें देखता उनकी तरीफ करता कि कैसे अपने को फिट रखे हैं। अपनी बड़ाई सुन वे फूले न समाते और कुछ ज्यादा ही काम करने लगते। अपने इसी सनक में अपने शरीर के साथ नित्य किए जबरदस्ती का खामियाजा भुगतना पड़ा।
कमर दर्द से परेशान हो गए। डॉक्टर का चक्कर लगा। डॉक्टर ने दर्द का कारण ज्यादा वजन उठाना और गलत पोस्चर में बैठना, उम्र जे हिसाब से अधिक वर्जिश करना बताया। कुछ दिनों तक बिल्कुल आराम करने की सलाह दी। अब पत्नी के साथ बच्चे भी परेशान हो गए। घर के छोटे-छोटे काम जैसे बाजार से रोजमर्रा के समान लाने का काम सदा वे ही किया करते थे अतः बच्चों को ऐसे काम करने की आदत ही नहीं थी।
वे पूरी कोशिश करते पर फिर भी कुछ न कुछ कमी रह जाती। दो चार दिन आराम करने के बाद हरीश भाई एक दिन सबको आराम करते देख बाजार निकल पड़े। उनकी समझ से घर में जो कुछ कमी थी वो सारा सामान सब्जी, फल आदि लेकर दुकान से बाहर आए।
रिक्शा पर बैठना चाह रहे थे कि एक झोला हाथ से गिर पड़ा। उसे उठाने के लिए झुके ही थे कि गिर पड़े। कस कर चोट लगी और मूर्छित हो गए।
रिक्शावाला और वहाँ उपस्थित लोगों ने उन्हें निकटतम अस्पताल पहुँचा दिया। घर पर किसी को खबर नहीं क्योंकि कोई उनका पता नहीं जानता था।
बच्चे शाम में पिता को घर पर न देख सोचे पार्क में टहलने गए होंगे। काफी देर हुई जब घर नहीं पहुँचे तो सभी की व्यग्रता बढ़ी। सभी पिता को ढूंढना प्रारम्भ किए। किसी तरह से पता चला कि वो अस्पताल में बेहोशी की हालत में हैं। सबकी जान निकल गई। अब एक पैर पर खड़े हो सभी सेवा में लग गए पर दुनिया वालों की जुबान कभी रुकी है कोई बच्चों को दोषी ठहरा रहा तक कोई पत्नी को। कुछ लोगों ने कहा बुढ़ऊ सनक गए हैं।