स्मार्ट फ़ोन
स्मार्ट फ़ोन


बचपन की वो दोस्ती कितनी अच्छी होती है। कुछ तो था मेरे और मीता के बीच एक सच्ची और अच्छी वाली दोस्ती। मीता का घर मेरे घर की पिछली वाली गली में ही था । दोनों एक ही स्कूल में साथ जाते थे। मैं अक्सर छुट्टी के बाद मां से जिद्द करके अपनी सबसे अच्छी दोस्त मीता के घर चली जाया करती थी । वहां जाकर गुड्डे गुड़िया के साथ खेलना । अपनी टीचर की नकल उतारना ,उनकी तरह चश्मा लगाना,साड़ी पहनना और हाथ में एक डंडा लेकर टीचर बन जाया करते थे। कभी घर-घर खेलना , सजना संवरना । दोनों मिल कर खूब मस्ती करते थे बारिश में भीगते भीगते घर पहुंचना ,बारिश के पानी में अपनी नाव चलाना,कीचड़ से पूरे कपड़े सान देना।दिखने में दोनों दुबले पतले से थे मगर थे बहुत शैतान।
मैं सांवली सी और मीता गोरी चिट्ठी।मीता के घुंघराले बाल हुआ करते थे ।कभी कभी चेहरे पर उसकी वो घुंघराले बालों की लटे आ जाया करती थी। मैं कभी कभी मीता के कपड़े पहन कर शाम को अपने घर आ जाया करती थी। अक्सर मीता की मां मेरी मां से शिकायत किया करती थी ।तुम्हारी बेटी सुमन बहुत शैतान है मीता का सारा समान इधर उधर फेंक देती है । सच में बहुत शैतानी करते है थे हम दोनों । मीता की मां अक्सर डांटा मगर मुझे और मीता को कहा कोई फ़र्क पड़ता था आंटी को डाँट का। हम फिर शुरू हो जाते गुड़िया सजाने में । हर रोज गुड्डे गुड़ियों की शादी करना फिर उनके बच्चों के नाम सोचना ।फिर जोर जोर से ठहाके लगा कर ख़ुद ही हंसना।
कभी-कभी शर्मा आंटी (मीता की मम्मी) भी हमारी हरकतों पर खुद ही हंसने लगती। मीता की मां अक्सर हलवा बना कर भी खिलाया करती थी। मीता के पिताजी आर्मी में थे इसी बीच उनका ट्रांसफर अजमेर से देहरादून हो गया । मीता के पूरे परिवार ने देहरादून शिफ्ट होने का फैसला लिया।
सातवीं कक्षा में हमारी दोस्ती में लग गया पूर्ण विराम ! मैं बहुत उदास थी और मीता भी मगर इसी बीच आंटी जी ने बोला क्यों परेशान हो रहे हो रोते नहीं हम आते रहेंगे ना अजमेर तुमसे मिलने । मगर वो सब कहने की बातें थी ।कुछ दिन तक फोन कॉल आते थे । धीरे-धीरे वो भी आने बन्द हो गए।अब ना मीता कभी अायी ना उसका वो कॉल। जिंदगी के इस सफ़र में ना जाने कितने उतार चड़ाव आए ना जाने कितने नए दोस्त मिले मगर मीता जैसा कोई नहीं। परन्तु मैंने कभी हार नहीं मानी अपनी उस दोस्ती को हमेशा दिल में संजोए रखा। मीता के साथ बिताए उन लम्हों को हमेशा अपने दिल के जीवित रखा। अजमेर युनिवर्सिटी से स्नातक करने के बाद पिताजी ने मेरी शादी इंदौर के एक वकील से करवा दी । और में एक गृहिणी बनकर रह गयी। जिंदगी के इस पड़ाव में कब बचपन से जवानी आयी और जवान
ी से कब ये बुढ़ापा हावी होने लगा पता ही नहीं चला। मगर मीता के लिए वो स्नेह ,प्यार और अपनापन कभी कम नहीं हुआ। मेरे पचासवें जन्म दिवस पर मुझे मेरे छब्बीस साल के बेटे आदित्य ने उपहार स्वरूप स्मार्ट फोन गिफ्ट किया। और बोला मां आज से तुम भी स्मार्ट हो जाओ। आदित्य ने मुझे फ़ोन चलाना सिखाया और सोशल मीडिया के बारे में बताया और मुझे उससे जुड़ने के लिए कहा। आदित्य ने बताया मां आप अपनी सारी पुरानी दोस्तों को इसमें ढुंढ सकती हो आजकल सभी ऐसा ही करते हैं। आपकों भी आपकी सब दोस्ते इसमें मिल जाएंगी जैसें ही मेरे बेटे आदित्य ने ये बोला मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा और सबसे पहला नाम मेरे मन आया वह था मीता का ।
हां, वही मीता मेरे बचपन की सबसे अच्छी दोस्त। लेकिन मीता को ढुंढू तो ढुंढू कैसे ? अब मैं मन ही मन ये सोचने लग गई अब तो उसकी शादी हो गई होगी उसका तो सरनेम भी बदल गया होगा । पता नहीं अब दिखती कैसी होगी वैसे उसकी दाईं आंख के नीचे एक तिल था ।शायद अब भी होगा ,अब भी वह उतनी ही सुंदर होगी।बहुत कोशिश के बाद मुझे मेरी मीता मिल ही गई । मीता शर्मा से मीता सक्सेना हो गई । प्रोफ़ाइल पर मीता का फोटो लगा हुआ था आज भी मीता बला की ख़ूबसूरत वहीं काले लंबे घुंघराले बाल और उसकी वो घुंघराली लटे आज भी उसके चेहरे को छू रही थी। उसकी दाईं आंख में वो तिल मैंने अपनी मीता को झट से पहचान लिया। देर ना करते हुए मीता को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी । अब क्या था हमारी ढेरों बातें होने लग गई मैंने तुरन्त उससे उसका फोन नंबर मांग लिया। मानो ऐसा लग रहा था जैसे हमारी बचपन की वो दोस्ती फिर से जिंदा हो गई। मीता ने बताया उसके दो बेटे है और बड़े बेटे की शादी भी हो गई । और छोटा बेटा डॉक्टर है। पति की कुछ समय पहले हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई। मन में ढेरों सवाल और आंखो में खुशी के आंसू। मैंने बातों बातों में मीता से पूछा उसकी शादी किस शहर में हुई है उसने बताया इंदौर में और मैं तो खुशी से फूली नहीं समाई क्यूकी मैं भी उसी शहर इंदौर में रहती थी । बस क्या था मैंने चाय पर मिलने का प्लान बनाया और एक शाम मीता मेरे घर मिलने आई।हम दोनों मिले...मैंने मीता के लिए हलवा और चाय बनाई बातें हुई मीता ने कहा क्यूं सुनम तुम सिर्फ चाय हलवा नहीं लोगी क्या है मैंने दबी हुईं आवाज़ में कहां अब इस उम्र में हलवा कहा से खाएं । सुगर की मरीज़ हूं मैं । और मीता हंसने लगी तुझे भी बुढ़ापा जल्दी आ गया वैसे।
हमनें बचपन के उन सारी यादों को एक शाम मे ताज़ा कर लिया और हंसते-हंसते फिर से वो बचपन जी लिया....।