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Vinita Rahurikar

Tragedy

3  

Vinita Rahurikar

Tragedy

सजा तो अब शुरु हुई है

सजा तो अब शुरु हुई है

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बच्ची के माँ-बाप न्याय के लिए गिड़गिड़ाते रह गए लेकिन जब अपराधी की न्याय के रक्षक से गहरी दोस्ती थी तो भला मजबूर माँ-बाप न्याय तक कैसी पहुँच पाते।

लिहाजा मासूम, अबोध बच्ची से और फिर न्याय तो था ही अँधा। रक्षक हाथ पकड़कर उसे जिस ओर ले गया, न्याय उस ओर ही चल दिया। बलात्कार करने वाला बाइज़्ज़त बरी हो गया।

अपराधी और न्याय के रक्षक दोस्त ने जश्न मनाया सजा से मुक्ति का। अपराधी फिर घर की ओर चल दिया। घरवाले एक बार भी उससे मिलने नहीं आये थे लेकिन उसे परवाह नहीं थी। जब उसने कानून की आँखों में धूल झौंक दी तो उन लोगों को भी किसी तरह मना ही लेगा।

घर का हुलिया लेकिन बदला हुआ था। बीवी बच्चे सामान बाँधकर जाने की तैयारी में थे। 

"तुम्हे सजा हो जाती तो हमारे पाप कुछ तो कट जाते लेकिन तुम जैसे घिनोने, गिरे हुए इंसान के साथ रहना नामुमकिन है। हम कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहे। अड़ोस-पडौस सबने रिश्ते तोड़ लिए। मैं अपने बच्चों को लेकर दूर जा रही हूँ।" पत्नी उसकी सूरत तक नहीं देख रही थी। बेटे ने उसे देखते ही नफरत से थूक दिया।

बारह साल की बेटी उसकी शक्ल देखते ही भय से सहम गयी। वह बेटी को पुचकारने आगे बढ़ा तो बीवी ने गरजकर उसे वहीं रोक दिया-

"खबरदार जो मेरी बेटी को हाथ भी लगाया।" 

"मैं बाप हूँ उसका" उसने प्रतिकार किया।

"तुम बाप नहीं बलात्कारी हो। अगर बाप होते तो किसी भी बेटी का बलात्कार कर ही नहीं सकते थे। बाप कभी किसी भी बेटी का बलात्कार नहीं कर सकता और जो बलात्कारी है वो कभी भी किसी का बाप हो ही नहीं सकता।" 

उसके हाथ ठिठक गए। जेल से बच जाने की ख़ुशी काफूर हो चुकी थी। कानून की सजा से तो वह बच गया लेकिन बेटे, पत्नी के चेहरे की नफरत और बेटी के चेहरे के डर से कोई न्याय का रक्षक उसे बचा नहीं पायेगा। उसके हाथ पाप के कीचड़ में लथपथ थे।

सजा तो अब शुरू हुई थी....


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