#मैं तेरे हृदय की बात रे मन!
#मैं तेरे हृदय की बात रे मन!
जीवन दुरूह किसका बोलो
रे मन
तुमुल कोलाहल में
मैं व्याकुल हृदय की बात रे मन
अपने हृदय की शंका की
बात रे मन!
नफरतों की चलें आँधियाँ, दीप तो प्रेम के ही जले
जो कि बुझते नहीं हैं कभी, क्योंकि परमात्मा हैं भले।
जब उड़ें न्याय की धज्जियाँ, और रक्षक यहाँ दुष्ट हो
सज्जनों को सताकर बहुत, हो रहा आज संतुष्ट जो
घेर लेंगी उसे व्याधियाँ, अंत में हाथ अपने मले
दाल उसकी गलेगी नहीं, क्योंकि परमात्मा हैं भले।
बेबसी में बहुत जी लिया, इस तरह से कहाँ तक रहें
जो गईं खूब पढ़- लिख यहाँ, जुल्म क्यों वे कभी भी सहें
कह रहीं आज अपनी धियाँ, कौन है जो हमें अब छले
हम हुए आज सक्षम यहाँ, क्योंकि परमात्मा हैं भले।
हाय संवेदना लुट गई, आस्था कौड़ियों में बिकी
तिकड़मों का चला दौर अब, है व्यवस्था उसी पर टिकी
झेलते लोग बरबादियाँ, बात सबको बहुत यह खले
है बदलता सभी का समय, क्योंकि परमात्मा हैं भले।
आज पदवी जिसे मिल गई, खूब पैसा कमाने लगा
वह न समझे किसी को कभी, ऐंठ का भाव उसमें जगा
हैं तनों पर चढ़ीं बादियाँ ,अब उचित काम सारे टले
बद्दुआ तो करेगी असर, क्योंकि परमात्मा हैं भले।