सीता की अग्नि परीक्षा कब तक!
सीता की अग्नि परीक्षा कब तक!
रोहिणी ! नौकरी करो तभी आर्थिक हालात सुधरेंगे ।
रोहिणी ! नौकरी छोड़ दो! घर और बच्चों को तुम्हारी ज्यादा जरूरत है!
रोहिणी ! साड़ी पहना करो । बहुएं साड़ी में अधिक जचती है!
रोहिणी ! बच्चों को पालने पोसने का हमारा तरीका बढ़िया है, वही अपनाओ !
रोहिणी ! घर के निर्णय हम लेंगे, तुम पराये घर से आई हो!
रोहिणी ! हमारे घर के हिसाब से चला करो!
रोहिणी ! खाना बनाने का तरीका बदलो, ये तुम्हारा मायका नहीं!
रोहिणी !
रोहिणी !
सोते जागते और अब तो सपने में भी सभी के ऑर्डर सुनाई देते हैं
रोहिणी ! ऐसे नहीं,
रोहिणी ! वैसे नहीं,
रोहिणी ! माँ ने कुछ सिखाया नहीं क्या! उफ्फ
सिर चकरा रहा है
मानो सारी धरती गोल गोल धूम रही है,
आँखों के आगे घुप्प अन्धेरा छा गया है,
मम्मा ! मम्मा !
रोहिणी ! रोहिणी !
अरे क्या हुआ !
बस! बस!
"बख्श दो मुझे ! अब और नहीं सहन होता मुझसे!"
पहली बार रोहिणी का जी चाहा चीख चीख कर बोले !
पर आज वो मौका भी खो दिया!
क्योंकि अब वो कभी नहीं बोलेगी!
लाशें बोला नहीं करतीं।
