सीख
सीख
नीलू बचपन से ही झूठ बोलने और झगड़े लगाने में माहिर हो गई थी। वह इतने सफाई से झूठ बोलती कि शिकायत करने बाला अपना सा मुंह लेकर रह जाता। उसे लोगों को लड़ते देखना बहुत पसंद था। मज़े ले
लेकर हंसती थी वह। अपने बाबूजी और माँ में भी वह कई बार झगड़े लगवा चुकी थी।
एक बार वह बुरी तरह फंस गयी। हुआ यह कि जहां वह रहती थी वहां बहुत सारे किरायेदार रहते थे। वह एकतल्ले पर रहती थी जिसका उसे बहुत गुमान था। वह कहती फिरती थी कि, मेरे बाबूजी के पास बहुत पैसा है तभी तो वे बड़ा घर किराए पर लेकर रहते हैं। हाँ तो उस दिन नीलू ने दो किरायेदारों की औरतों को चुगली लगाकर लड़वा दिया जब दोनों को पता चला कि यह काम नीलू का है तो वे सीधे नीलू के पिताजी के पास गयीं और सारी बातें बताई। बाबूजी ने कहा --अगर यह बात सच है तो आप दोनों इसे ले जाइए और जो सज़ा देनी हो दिजीए। अब तो नीलू के हाथ-पांव फूल गए। उसे वो दोनों आंटी यमराज की दूत प्रतीत होने लगीं वो बाबूजी को पकड़ कर रोने लगी और शपथ लिया कि -अब न तो वह झूठ बोलेगी और नहीं चुगली करेगी इस बार बाबूजी बचालें।
और बाबूजी के इस सख्त कदम ने उसकी यह गंदी आदत छुड़ा दी। सच है माँ-बाप ही बच्चों को सुधार सकते हैं।