सहयोग का संबल
सहयोग का संबल
"सबसे कठिन आसन है, आश्वासन,
सबसे लम्बा श्वास है, विश्वास,
सबसे कठिन योग है वियोग,
और सबसे अच्छा योग है, सहयोग "
शीर्षक: "सहयोग का संबल"
एक छोटे से गांव शांतिपुर में दो सच्चे मित्र रहते थे — अर्जुन और भीम। बचपन से दोनों एक साथ खेले, पढ़े और जीवन की कठिनाइयों को झेला। गांव के लोग उनकी मित्रता की मिसाल देते थे।
अर्जुन बहुत संवेदनशील था, लोगों की भावनाओं को समझता था। वहीं भीम हृदय से मजबूत था, दूसरों के दुःख में साथ देने वाला। एक बार गांव में भीषण सूखा पड़ा। कुएं सूख गए, खेत बंजर हो गए, लोग पलायन करने लगे।
अर्जुन ने गांव वालों को आश्वासन दिया, “हम सब मिलकर इस संकट से निकल सकते हैं।” पर कुछ लोगों ने ताने मारे — “आश्वासन सबसे कठिन आसन है, बातों से पेट नहीं भरता।” अर्जुन चुप रहा, क्योंकि उसने अपने दिल में विश्वास की लंबी श्वास भर ली थी।
भीम ने कहा, “हम दोनों मिलकर काम शुरू करें। अगर गांव वाले देखेंगे कि कोई प्रयास कर रहा है, तो वे भी जुड़ेंगे।” उन्होंने एक पुराना सूखा तालाब देखा और खुदाई शुरू की। दिन-रात मेहनत की। लोग उन्हें देखकर पहले हँसे, फिर धीरे-धीरे कुछ नौजवान साथ आ गए।
एक दिन अर्जुन थक गया। उसने कहा, “क्या सच में यह संभव है?” भीम ने उसका कंधा थपथपाया, “सबसे कठिन योग है वियोग — उम्मीद और प्रयास का। अगर तू प्रयास से अलग हो गया तो हमारी आशा टूट जाएगी।”
अर्जुन ने आंखों में आँसू भरकर कहा, “और सबसे अच्छा योग है सहयोग — जो तू दे रहा है मुझे।” दोनों फिर जुट गए।
महीनों बाद तालाब में वर्षा का पानी भरने लगा। गांव फिर से हरा-भरा हुआ। जो लोग पलायन कर गए थे, वे लौटने लगे। गांव वालों ने अर्जुन और भीम को सम्मानित किया।
बूढ़े मुखिया ने कहा —
"सबसे कठिन आसन है, आश्वासन,
सबसे लम्बा श्वास है, विश्वास,
सबसे कठिन योग है वियोग,
और सबसे अच्छा योग है, सहयोग।"
वाकई, एकता और सहयोग से बड़ा कोई योग नहीं। यही कहानी का सार है।
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संदेश: कठिन समय में भी अगर विश्वास बना रहे और एक-दूसरे का सहयोग हो, तो कोई भी संकट स्थायी नहीं होता।
