बुद्धिमत्ता
बुद्धिमत्ता
बहुत पुरानी बात है उन दिनों आज की तरह स्कूल नही होते थे ! गुरुकुल शिक्षा प्रणाली थी और छात्र गुरुकुल में ही रहकर पढ़ते थे !उन्हीं दिनों की बात है ! एक विद्वान पंडित थे ! उनका गुरुकुल बड़ा ही प्रसिद्ध था जहाँ दूर दूर से बालक शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे !
पंडित जी की पत्नी का देहांत हो चुका था उनकी उम्रः भी ढलने लगी थी घर में विवाह योग्य एक कन्या थी जिनकीं चिंता उन्हें हर समय सताती थी पंडित जी उसका विवाह ऐसे योग्य व्यक्ति से करना चाहते थे जिसके पास सम्पति भले न हो पर बुद्धिमान हो !
एक दिन उनके मन में विचार आया उन्होंने सोचा कि क्यों न वे अपने शिष्यों में ही योग्य वर की तलाश करे ! ऐसा विचार कर उन्होंने बुद्धिमान शिष्य की परीक्षा लेने का निर्णय लिया उन्होंने सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसें कहा -”मैं एक परीक्षा आयोजित करना चाहता हूँ इसका उद्देश्य यह जानना है कि कौन सबसें बुद्धिमान है !
मेरी पुत्री विवाह योग्य हो गईं है और मुझें उसके विवाह की चिंता है, लेकिन मेरे पास पर्याप्त धन नही है ! इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी शिष्य विवाह में लगने वाली सामग्री एकत्र करे भले ही इसके लिए चोरी का रास्ता क्यों न चुनना पड़े लेकिन सभी को एक शर्त का पालन करना होगा, शर्त यह है कि किसी भी शिष्य को चोरी करते हुए कोई देख न सके !
अगले दिन से सभी शिष्य अपने अपने काम में जुट गये ! हर दिन कोई न कोई न कोई शिष्य अलग अलग तरह की वस्तुएं चुरा कर ला रहा था और गुरूजी को दे रहा था ! राधे गुप्त उन वस्तुओं को सुरक्षित स्थान पर रखते जा रहे थे क्योंकि परीक्षा के बाद उन्हें सभी वस्तुएं उनकें मालिक को वापिस करनी थी !
परीक्षा से वे यही जानना चाहते थे कि कौन सा शिष्य उनकी बेटी से विवाह करने योग्य है ! सभी शिष्य अपने अपने दिमाग से कार्य कर रहे थे ! लेकिन उनमें से एक छात्र रामास्वामी, जो गुरुकुल का सबसे होनहार छात्र था चुपचाप एक वृक्ष के नीचे बैठा कुछ सोच रहा था !
उसे सोच में बैठा देख पंडित जी ने कारण पूछा ! रामास्वामी ने बताया, “आपने परीक्षा की शर्त के रूप में कहा था कि चोरी करते समय कोई देख न सके लेकिन जब हम चोरी करते है तब हमारी अंतरात्मा तो सब देखती है हम खुद से उसे छिपा नही सकते ! इसका अर्थ यही हुआ न कि चोरी करना व्यर्थ है !”
उसकी बात सुनकर पंडित जी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा ! उन्होंने उसी समय सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसें पूछा -”आप सबने चोरी की .... क्या किसी ने देखा ? सभी ने इनकार में सिर हिलाया ! तब पंडित जी बोले ”बच्चों ! क्या आप अपने अंतर्मन से भी इस चोरी को छुपा सके ?”
इतना सुनते ही सभी बच्चों ने सिर झुका लिया ! इस तरह गुरूजी ने अपनी पुत्री के लिए योग्य और बुद्धिमान वर मिल गया ! उन्होंने रामास्वामी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया साथ ही शिष्यों द्वारा चुराई गई वस्तुएं उनके मालिकों को वापिस कर बड़ी विनम्रता से क्षमा मांग ली !
इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी कार्य अंतर्मन से छिपा नही रहता और अंतर्मन ही व्यक्ति को सही रास्ता दिखाता है इसलिए मनुष्य को कोई भी कार्य करते समय अपने मन को जरुर टटोलना चाहिए क्योंकि मन सत्य का ही साथ देता है।