Dr. Akansha Rupa chachra

Inspirational

4  

Dr. Akansha Rupa chachra

Inspirational

*धूप की सुगंध और सच्ची श्रद्धा

*धूप की सुगंध और सच्ची श्रद्धा

2 mins
13



  एक व्यक्ति धन की कामना से ठाकुर जी की सेवा करता था। उसका धन बढ़ने की बजाय नष्ट होता गया।

एक दिन उसकी भेंट किसी साहूकार से हुई जब दोनों में वार्तालाप हुआ तो साहुकार बोला- "आप गलत मूर्ति का पूजन कर रहे हैं। ठाकुर जी तो केवल अपने चरणों की भक्ति देते हैं या फिर जन्म-मरण के बंधन से सदा-सदा के लिए मुक्ति दिलवा देते हैं। धन देने वाली तो मां लक्ष्मी हैं। आप उनकी सेवा करें।"


उस व्यक्ति को तो केवल धन की कामना थी फिर चाहे वो ठाकुर जी की भक्ति से हो या देवी लक्ष्मी की। उसने घर आकर ठाकुर जी की मूर्ति को उठाकर सिंहासन के किनारे कुछ दूरी पर रखी अलमारी में रख दिया और सिंहासन पर मुरली मनोहर की जगह देवी को सम्मान के साथ स्थापित कर पूजा करने लगा।


एक दिन वह देवी को गुग्गुल की सुगंधित धूप दे रहा था। उसने देखा धूप का धुआं हवा से मुरलीमनोहर की ओर जा रहा है। उसे बहुत क्रोध आया और मन ही मन विचार करने लगा देना-लेना कुछ नहीं धूप सूंघने को तैयार बैठे हैं। देवी के धूप को सूँघ कर जूठी कर रहे हैं। उसने रूई ली और ठाकुर जी की नाक में ठूंस दी।


उसी समय ठाकुर जी प्रगट हो गए और बोले- वर मांगों।


वो व्यक्ति बोला- "वरदान मैं बाद में माँगूंगा पहले यह बताएं जब मैं आपकी सेवा करता था, तब तो आप जड़ बने रहे, अब आप कैसे प्रसन्न होकर मुझे वरदान देने आ गए।"


ठाकुर जी बोले- "पहले तुम मुझे पत्थर की मूर्ति समझते थे तो मैं भी जड़ बना रहा परंतु अब तुमने मुझे साक्षात भगवान समझा तुम्हें विश्वास हो गया की मैं धूप सूंघ रहा हूं। तो मैं भी सच में तुम्हारे सामने आ गया।


शास्त्र कहते हैं जिसकी जैसी भावना होती है व जिसका जैसा विश्वास होता है उसकी सिद्धि भी उसी प्रकार होती है..!!

  *जय जय श्री राधे राधे*


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational