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Anita Sharma

Tragedy Action Inspirational

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Anita Sharma

Tragedy Action Inspirational

शुभ, अशुभ

शुभ, अशुभ

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ऊषा जी के घर में आज चारों तरफ खुशी का माहौल था। ऊषा जी के तो खुशी के मारे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। हमेशा घुटनों के दर्द से परेशान रहने के बावजूद भी सुबह से भाग दौड़ कर रहीं थी। आखिर करें भी क्यों नहीं उनकी इकलौती बहू निधि की गोद भराई जो थी।


निधि के मायके से उसके भाई ,भाभी भतीजे ,भतीजी सभी आ गये थे। जो गोद भराई करने के लिये लाया गया सामान थालों में सजा रहे थे। इतनी खुशी के बाद भी ऊषा जी की आँखें नम हो जाती। और मन ही मन सोचती कि...

"विनय ( ऊषा जी का बेटा) के बापू तुम जो थोड़े दिन और रुक जाते तो अपने पोते या पोती का मुँह देखकर जाते। क्या जरूरत थी इतने जल्दी जाने की ,फिर खुद ही खुद को समझा लेती कि जिन्दगी और मौत पर किसका बस चलता है। अगर चलता तो शायद कोई भी किसी अपने को कभी जाने ही न देता।

फिर झट से अपनी आंखों के गीले हो गये कोरों को अपने आँचल से पोंछती और वापिस अपनी बहू की बल्लइयाँ ले खुश होकर ढोलक की थाप से अपनी तालियों की थाप मिलाने लगती।


लाख छुपाने पर भी अपनी सास का दुःख निधि से न छुपता आखिर अभी दिन ही कितने हुये है ससुर जी को गये हुये। सभी लोग तो मना कर रहे थे गोद भराई करने के लिये ये बोल कर कि....

"अभी घर में गमी हुये सिर्फ तीन महीने हुये है। तो ऐसे में कोई शुभ कार्य नहीं होते। "

पर उसकी सासु माँ ने सभी के खिलाफ जाकर ये बोलकर प्रोग्राम रखा कि......

" जाने वाला तो चला गया। पर इस वजह से मैं अपनी बहू की पहली संतान आने की खुशी न मनाऊं ये नहीं हो सकता। इस सब में आखिर उस नन्ही सी जान की क्या गलती। उसे तो सभी के शुभ आशीष मिलने ही चाहिए। "

ऊपर से भले ही ऊषा जी मजबूत बन रहीं थी पर निधि जानती थी कि वो अंदर से कितनी दुःखी है इसीलिये जैसे ही ऊषा जी उसके आस- पास आतीं वो कभी आँखों से तो कभी हाथों में हाथ ले उन्हें एहसास कराती कि "माँ जी हम हमेशा आपके साथ है"! और ऊषा जी भी अपनी बहू की मौन भाषा समझ मुस्करा देतीं।


देखते ही देखते गोद भराई का मुहूर्त भी हो गया। रिवाज के अनुसार निधि को मायके की लाल चुनरिया उढ़ाई गई अब सास को सबसे पहले गोदी में नारियल, बतासे और मखाने डाल होने वाली माँ को शुभ आशीष देना था। पर ऊषा जी के आगे आने से पहले ही मेहमानों से खचा- खच भरे हॉल में सुगबुगाहट शुरू हो गई। कोई कहता....

"निधि की सास कैसे गोद भर सकतीं है? ये काम तो सिर्फ सुहागन ही करती है।" तो कोई कहता... "ऊषा जी को तो इस प्रोग्राम में रहना ही नहीं चाहिये था। उनकी तो ऐसे शुभ मौके पर परछाई भी अशुभ है। "


सभी की बातें सुन ऊषा जी की आँखों से झर- झर आंसू बह निकले । कहीं उनके रोने की आवाज बाहर न निकल आये और इस शुभ कार्य में कुछ अशुभ हो जाये इसीलिये अपनी साड़ी मुँह में ठूस वहाँ से जाने लगी।

तभी पीछे से निधि ने उनका हाथ पकड़ ऊषा जी को वहीं रोक लिया। और उनके आंसुओं को अपने हाथ से पोंछते हुये बोली.....

"माँ जी आप कहीं नहीं जा रहीं है। आप मेरी माँ है और एक माँ का अपने बच्चों के पास होना अशुभ कैसे हो सकता है।"

तभी पीछे से किसी की आवाज आई.... "निधि इनका तुम्हारी गोदी भरने से तुम्हारे बच्चे के साथ कुछ बुरा भी हो सकता है। इनसे ये शुभ कार्य करवाना गलत होगा। "


इस बार निधि अपनी आवाज थोड़ी तेज करके बोली.....

" कितनी घटिया सोच है आप लोगों की जो माँ दिन रात मेरी और मेरे बच्चे की सलामती की दुआएं मांगती है। उनके ये रस्म करने से कुछ बुरा कैसे हो सकता है। मेरी गोदी तो सबसे पहले मेरी माँ ही भरेगी। मैं अपने होने वाले बच्चे की माँ हूँ मेरे बच्चे के लिये क्या बेहतर है मैं खुद देख लूंगी। मुझे आप लोगों की सलाह की कोई जरूरत नहीं।

जिन्हें सही लगे वो रुके और जिन्हें गलत लगे वो यहाँ से जा सकते है। मुझे और मेरे बच्चे को ऐसी गिरी हुई सोच वाले लोगों से कोई आशीष नहीं चाहिये। "

निधि की बात सुनकर हॉल में सन्नाटा छा गया। तभी निधि की भाभी ने आगे बढ़कर निधि को उसकी जगह बिठाते हुये ऊषा जी कहा ......

"आइये माँ जी रस्म शुरू करते है"!


प्यार तो ऊषा जी अपनी बहू से वैसे भी बहुत करती थी। पर आज यूँ सभी के सामने बहू का उसका साथ

देने के लिये उनके मन में बहू के लिये सम्मान एवं इज्जत और भी बढ़ गई।


सखियों समाज के नियम हमसे है हम समाज के नियमों से नहीं इसलिये पुराने सड़े गले रिवाजों को बदलना ही सही है। एक विधवा को कोई शुभ काम न करने देना कहाँ तक सही है ? क्या एक पति के चले जाने से स्त्री की परछाई भी अशुभ हो जाती है। तो पत्नियों के चले जाने से मर्दो को अशुभ क्यों नहीं माना जाता ? सोचना जरूर। और अगली बार अगर कहीं कोई विधवा शुभ कार्य करते दिखे तो उसे सामान्य तरीके से देखना। न कि किसी अशुभ घटना की तरह।



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