श्रृंगार
श्रृंगार
"मम्मी ये मौसी दादी कब जायेंगी ? इन की वजह से अपने घर में भी खुल के सांस नहीं ले पा रही हूँ। हर समय बस रोकना-टोकना।" पंद्रह साल की शुभी ने अपनी माँ निशा से गुस्से में भुनभुनाते हुए कहा।
निशा ने किचन में काम करते हुए शुभी से पूछा "अब क्या हो गया ?"
"मम्मी आज फिर मौसी दादी मुझे जीन्स पहनने पर टोक दिया। बोल रही हैं कि ये लड़को वाले कपड़े तू क्यों पहनती है ? "
"कोई बात नहीं बेटा बोलने दे कुछ दिनों की बात है। तू जब तक कुछ और पेहन ले। मौसी जी के जाने के बाद फिर से जो चाहे पेहनना।" निशा ने शुभी से कहा और अपना काम करने लगी।
शुभी गुस्से में पैर पटकते हुए बाहर चली गई।
शुभी निशा और रविंद्र की इकलोती बेटी है। जिसकी परवरिश दोनों बहुत ही प्यार और समझदारी से कर रहे हैं। शुभी ज्यादातर जीन्स या शॉर्ट्स ही पहनती है। पर जब से रविंद्र की मौसी जी आई है, तब से वो शुभी को हर बात हर काम में टोकती हैं| सिर्फ शुभी ही नहीं, वो निशा को भी कहाँ छोड़ती हैं, किसी भी काम में टोकने से।
मौसी जी पुराने ख्यालातों की वृद्ध महिला हैं, उनके पति का स्वर्गवास हो गया है। वो कुछ दिनों के लिये अपनी बहन के बेटे के यहाँ रहने आई है। पद और उम्र दोनों में मौसी जी इतनी बड़ी है ।तो निशा भी कुछ नहीं कहती। उनके सामने जैसा वो चाहती है, वैसे ही रहती हैं। मौसी जी के हिसाब से बहुओ को हमेशा साड़ी, चूड़ी बिंदी और पूरी मांग भर कर रहना चाहिये। इससे पति की आयु लम्बी होती है। ये सब पसन्द तो निशा को भी है। बस वो थोड़ा अलग तरीके से करती है।
जैसे बड़ी बिंदी की जगह वो छोटी लगाना पसन्द करती है। भर, भर हाथ चूड़ी की जगह वो सिर्फ कंगन पहनती है। और मांग भर कर वो ऊपर से बालों को ढक देती है। हर समय साड़ी पेहनना उसे नहीं भाता। पर मौसी जी के आने से वो सब करती है।
फिर भी मौसी जी खुश नहीं होती और कुछ न कुछ कमी निकाल ही लेती है।
अपने ख्यालों में गुम निशा का ध्यान डोरवेल ने खीचा। जो लगातार बजे जा रही थी
आ रही हूँ आ रही हूँ बोलते हुए निशा ने दरवाजा खोला।
सामने से निशा की बचपन की दोस्त संध्या ने "सप्राइज" बोलते हुए निशा को चोंका दिया।
संध्या इसी शहर में रहती है। दोनों एक दूसरे के घर कभी भी जाकर मिल लेती है। शुभी भी निशा को बहुत पसन्द करती है।पर आज तो निशा मौसी जी के सामने आई है। वो भी जीन्स में।
"तूतू यहाँ ,, निशा ने हकलाते हुए कहा।
"अरे क्या हुआ।,,संध्या निशा को अन्दर धकेलते हुए बोली "मुझे देख कर तू इतना घबरा क्यों गई। जीजू का इंतजार कर रही थी क्या।,,
संध्या ने निशा को छेड़ते हुए कहा।
निशा ने मुस्कराते हुये नहीं में सर हिला कर संध्या को गले लगा लिया। और हाथ पकड़ कर अन्दर ले आई।
तभी शुभी ,,, "मौसी " चिल्लाते हुए संध्या के गले से लटक गई।
संध्या ने भी उसे जोर से हग करते हुए अपने से चिपटा लिया।
तभी शोर सुनकर मौसी जी भी बाहर आ गई। और निशा को देख मुँह बनाते हुए बोली " बहू ये कौन है "
निशा ने संध्या को मिलवाते हुए बताया"मौसी जी ये मेरी सहेली है संध्या,, और संध्या ये मेरी मौसी सास है।,,
संध्या ने तुरन्त मौसी जी को नमस्ते कर उनके पैर छुये।
पर मौसी जी के मूँ से आशीर्वाद की जगह कटाक्ष भरे शब्द निकले "ये क्या पेहन रखा है तुमने"
निशा संध्या के सामने कोई तमाशा न हो, इसलिये बात को संभालते हुए बोली " शुभी तुम मौसी को अपने कमरे में लेजाओ मै वही चाय नास्ता लेकर आती हूँ।,,
संध्या ने कुछ बोलने को मुँह खोला कि उसके बोलने से पहले ही मौसी जी का स्वर गूंजा " क्यों यहाँ बैठने में क्या परेशानी है ? ,,
संध्या ने मुस्कराते हुए मौसी जी से बोला " नहीं आन्टी जी मुझे कोई परेशानी नहीं है। मै यहीं बैठ जाऊँगी।,,
और वही रखे सोफे पर बैठ कर शुभी से बात करने लगी।
निशा किचन में चाय नास्ता लेने चली गई।
तभी मौसी जी ने संध्या को घूरते हुए सवाल पूंछा
"शादी हो गई बेटा तुम्हारी" ?
"जी आन्टी जी" एक बेटा भी है।
"तुम्हे देख कर तो नहीं लगता ?
संध्या ने अचकचा कर मौसी जी को देखते हुए पूंछा "मतलब" ?
"मतलब ये न चूड़ी ने बिन्दी न कोई श्रृंगार तुम्हे देख कर कौन कहेगा कि तुम ब्याहता हो।
आजकल तुम लोगों का जाने क्या फैशन है की सुहाग की कोई निशानी पेहनना तुम लोगों को बुरा लगता है। हमारे जमाने में तो हम भर - भर हाथ चूड़ी पेहनते थे। और मांग तो शुरू से आखिर तक भरते थे। पर आज कल तुम लोग जरा - जरा सिंदूर मांग के आगे लगाती हो। वैसे ही आजकल के मर्दो की उम्र भी कम होती जा रही है। ,,
तभी वहाँ बैठी शुभी बोल पड़ी"तो दादी आप ने भी सिंदूर और चूड़ी कम पेहनी होगी। तभी तो दादा जी की भी उम्र कम हो गई और वो जल्दी से भगवान के पास चले गये।,,
किचन से आते हुए निशा ने शुभी को डांटते हुए कहा " शुभी ये कैसे बात कर रही हो तुम दादी से। चलो माफी माँगो।
शुभी ने निशा के कहने से सॉरी तो बोला पर गुस्से में जाते - जाते बोल गई" मैने कुछ गलत नहीं बोला जो दादी बोल रही थी। मैने तो वही पूंछा ?
निशा ने मौसी जी से माफी मांगते हुए कहा "माफ कर दीजिये उसे, बच्ची है।अभी इतनी समझ नहीं है कि वो क्या बोल गई। मै समझाऊगीं उसे।
पर मौसी जी बिना एक शब्द बोले वहाँ से उठ कर अपने कमरे में चली गई।
संध्या जो अभी तक मुँह खोले सब देखे जा रही थी। निशा से बोली "सॉरी निशा मुझे मालूम नहीं था। कि मौसी जी है। वरना में साड़ी पेहन कर आती। मेरी वजह से तेरे घर का माहौल खराब हो गया।,,
अरे नहीं संध्या इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं। वो तो अगर शुभी न बोलती तो कुछ न होता। और एक लंबी सी सांस ले निशा बोली खैर देखते है अब क्या होता है।,,
संध्या भारी मन से निशा से विदा ले चली गई। पर घर में एक सन्नाटा सा पसर गया। जब निशा ने रविंद्र को ये बात बताई तो उन्होंने भी मौसी जी से बात करने की कोशिश की। पर मौसी जी ने दरवाजा न खोला।
हम सभी डरे हुए से वही ड्राइंग रूम में बैठे थे कि मौसी जी ने दरवाजा खोला। हम सब उठ कर खड़े हो गये और उन्हें देखने लगे । पर वो सीधी शुभी के पास आकर खड़ी हो गई।
हमें लगा कि आज तो शुभी की बहुत ज्यादा डांट पड़ेगी। पर उन्होंने शुभी के सर पर हाथ रख कर कहा "बेटा आज तो तूने मेरी आँखे खोल दी। मैने हमेशा सभी को जरा सा भी श्रृंगार कम होने पर डाँट दिया। पर कभी ये न सोचा कि मैने तो खूब भर, भरके श्रंगार लगाया था। फिर भी तेरे दादा की उम्र क्यों न बड़ी।
पर अब समझ गई कि बिन्दी छोटी बड़ी होने से कुछ नहीं होता। होता वहीं है जो ऊपर वाला चाहता है। तो अब से में ये कोशिश करूँगी की तेरी मम्मी के साथ, साथ और किसी को भी। बिन्दी चूड़ी के लिये न टोकू।,,
तभी शुभी ने दादी के गले में बाहें डाल कर मासूमियत से कहा " सच्ची दादी आप बदल गई।तो क्या अब में आप के सामने जीन्स पेहन सकती हूँ।
मौसी जी ने मुस्करा कर शुभी के सर में एक हल्की सी चपत लगाते हुए कहा "बदमाश जो चाहे पेहन । अब में भी थोड़ा मॉर्डन बनूगी ताकि किसी को भी मेरे विचारों और मेरी बातो से परेशानी न हो।
निशा और रविंद्र मौसी जी के इस नये अवतार को देखे जा रहे थे| तभी मौसी जी ने दोनों से बोला "क्या टुकुर टुकुर देख रहे हो ? आज तुम्हारी बेटी ने मेरे विचार बदल दिये। पर तुम्हारी खैर नहीं। तुम दोनों ने अपनी बेटी को ये भी नहीं सिखाया कि बड़ों की बातो का जवाब नहीं देते। और गलती पर माफी भी मांगी जाती है।
तभी शुभी मौसी जी के सामने कान पकड़ कर "सॉरी" बोलती है और मौसी जी उसे मुस्करा कर गले से लगा लेती है।