Surya Barman

Classics

4  

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श्री राधा / कृष्ण की प्रेम

श्री राधा / कृष्ण की प्रेम

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एकबार कृष्ण अपनी राधा से कहते हैं:-

  " अच्छा राधै, एक बात तुम बताओ.. अगर मैं " कृष्ण " ना होकर कोई वृक्ष होता तो ?. .तब तुम क्या करती..?

श्री " राधे " ने अपने गुस्से को ठंडा करते हुए कहा, :- " तब मैं लता बनकर तुम्हारे चारों ओर लिपटी रहती …


" कृष्णा " ने " राधे " को मनाने वाली बच्चों की मुस्कान देकर कहा ! " और अगर मैं यमुना नदी होता तो ?

" श्री " राधे " ने उत्तर दिया :- “ हं.. तब मैं लहर बनकर तुम्हारे साथ साथ बहती रहती मेरे श्यामसुंदर.. !


” अब श्री " राधे " का गुलाबी रंग वापिस लौट आया… वे ठुड्डी के नीचे अपना हाथ रखकर अगले प्रश्न की प्रतीक्षा करने लगीं....?


" कृष्ण " निकट घास चरती एक गौ की ओर संकेत करके बोले “ अच्छा..! यदि मैं उस गौ की तरह होता तो तुम क्या करती..? "


श्री " राधा रानी " हंसते हुए " कान्हा " जी के गाल खींचती हुई बोलीं , "

तो मैं घंटी बनकर आपके गले में झूमती रहती मेरे " प्राणनाथ " ..परन्तु आपका पीछा नहीं छोड़ती…"

   

 फिर अगले कुछ पलों तक वहां शान्ति छाई रही.. केवल यमुना की लहरें और मोर की आवाज़ ही सुनाई दे रही..।


 श्री राधे ने चुप्पी तोड़ते हुए कान्हा जी से पूछा, “ आप मुझसे कितना प्रेम करते हो मेरे " प्राणनाथ " ..?


मेरा तात्पर्य यदि हमारे " प्रेम को अमर " करने के लिए कोई वचन देना हो तो आप क्या वचन देंगे…? ”


" कृष्ण " ने " राधा " के कर कमलों को स्पर्श करते हुए कहा…

     “ मैं तुम्हे इतना प्रेम करता हूँ " राधे " … ईतना, कि जो भी भक्त तुम्हें स्मरण करके ‘ रा…’ शब्द बोलेगा…उसी पल मैं उसे अपनी अविरल भक्ति प्रदान कर दूंगा..और पूरा ‘ " राधे " बोलते ही मै स्वयं उसके पीछे पीछे चल दूंगा.."


" राधा " ने कहा, सचमुच कान्हा तुम मुझसे - मेरे नाम से ईतना प्रेम करते हो..? "..

कृष्ण कहते है, " हां श्री " राधा ".. तुम्हारा नाम लेते हि अंग मे रोमांच उठता है, मन मे कंप होने लगता है और क्षण मे ही ध्यान लग जाता, है तुम्हारे प्रेम मे.. क्या करू " राधे.."


इतना सुनते ही श्री " राधा " की नैनों से प्रेम के अश्रु बहने लगे..

     कृष्ण के हाथों को अपने हाथों मे लेते हुए राधा ने कहा, "..और मैं.. मै आज ये वचन देती हूँ मेरे " कान्हा ", की मेरे भक्त को कुछ बोलने की भी आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी..

जहाँ भी जिस किसी भक्त के हृदय में आपके प्रती, आपके " श्रीकृष्ण " नाम के प्रति सच्चा प्रेम होगा.. मै स्वयं ज़बरन आपको, साक्षात जगत के मालिक को, लेकर उस भक्त के पीछे पीछे चल दूँगी.. जीवन भर उसके कल्याण हेतू.. !! "


सही कहा गया है.. " धन्य है वो कृष्ण, धन्य है राधा और धन्य धन्य है उनके भक्त..!! "


  

        


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