शरारत

शरारत

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एक दिन की बात है पूरा गाँव हर्षोल्लास से दीपावली का पर्व मना रहा था। शाम ढल चुकी थी। लोग अपने घरों में दीए जलाने लगे थे। बच्चे पटाखे, अनार, फुलझड़ियां और राकेट छोड़ने लगे थे। भट-भट, भटाम-भटाम, भड़-भड़-भड़ और साईं सुईं सूंऊऊऊऊ की आवाज से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। गोपाल भी उस समय अपने पड़ोसी जतिन के साथ पटाखे फोड़ रहा था। उसने जतिन से कहा कि अगर तू लक्ष्मी बम को हाथ में फोड़ देगा तो तुझे दस रूपये दूंगा। उसने बकायदा बम हाथ में फोड़ने का तरीका भी बताया। उसने खुद एक मुर्गा छाप पटाखा पकड़ा और उसकी बत्ती जलाकर उसे पीछे की ओर कर हाथ में ही फोड़ दिया।


जतिन ने भी दस रूपये के लालच में आकर उसी तरीके से बम हाथ में पकड़ा और उसकी बत्ती जलाकर उसे पीछे की ओर कर दिया। बड़ाम की आवाज आई। जतिन को एकबारगी लगा कि शायद उसका हाथ उसके शरीर से अलग जा गिरा है और उसे कुछ सुनाई भी नहीं दे रहा है। उसे दुनिया गोल घूमती नजर आ रही थी। वह वहीं बैठकर रोने लगा। गोपाल तब तक उसकी माता जी को बुला लाया- "ताई, जतिन ने अपने हाथ में लक्ष्मी बम फोड़ दिया।"


सभी को लगा कि गलती जतिन की है, लेकिन जब एक घंटे बाद जतिन पूर्वावस्था में आया तो उसने सारी कहानी बता डाली। सबने गोपाल को खरी-खोटी सुनाई। पिता ने तो यहाँ तक कहा कि अगर आइंदा से ऐसी शरारत की तो घर से निकाल दिया जायेगा।


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