Shubhra Varshney

Tragedy

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Shubhra Varshney

Tragedy

श्राप फल ही गया

श्राप फल ही गया

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श्राप फल ही गया


शाम को ऑफिस से निकला तो झमाझम बारिश शुरू हो गई थी।कार पार्किंग तक पहुंचते-पहुंचते मेरी नई पहनी हुई शर्ट अच्छी खासी गीली हो चुकी थी।तेजी से निकलने के चक्कर में साइड की रेलिंग में बने हुए चैनल में अटक कर मेरी नई जींस उलझ कर शहीद होते होते बची थी।

अपने कपड़ों का यह हाल होता देख दोस्तों की रखी लेट नाइट पार्टी में जाने का मेरा आधा उत्साह तो जाता रहा।हम दोस्तों की एनुअल रीयूनियन पार्टी थी और इस बार तो अवधेश ने कहा था कि शायद पुरानी बैचमेट्स लड़कियां भी आएंगी तो सोच कर ही मन में गुदगुदी सी हो रही थी ऐसे में यह बेरहम बारिश मुझे बहुत कष्ट कारक लग रही थी।


पिछले दो घंटे से लगातार चली बारिश ने पार्किंग एरिया को पूरी तरह से पानी से भर दिया थाजिस वजह से कार पूरे दस मिनट तक भी कोशिश करने पर स्टार्ट नहीं हो पाई ....शायद साइलेंसर में पानी भर गया था।इस पर भी मेरा जाने का जोश पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ था और मैं कार को वहीं पर छोड़ कर वापस ऑफिस में आ गया।आकर मैंने अपने ड्रॉवर से अपना रखा हुआ छाता निकाला जो मैंने ऐसे ही इमरजेंसी के लिए यहां पर रख छोड़ा था। इस बीच मैंने कैब बुक करा दी थी।

आज वहां पर छाता देख कर मुझे अपने ऊपर गर्व हो रहा था कि मैं कितना होशियार था.... जहां सब लोग सर पर रूमाल रखें तेजी से भागकर ऑटो पकड़ रहे थे वही मैं शान से छाता लगाएं अब सड़क तक आ चुका था।छाता लिए मगन होना मेरा ज्यादा देर टिक न सका.... हवा के तेज झोंके से मेरा छाता पलट गया और मैं तेज आती बौछार से एकदम भीग गया।


छाते की ताने सीधे करने के चक्कर में वे ताने टूट ही गई और मेरी स्थिति और भी ज्यादा खराब हो गई अब ऊपर से नीचे में पानी से पूरी तरह से भीगा हुआ था।तब तक मेरी बुक कराई कैब के ड्राइवर का फोन आ चुका था कि उस एरिया में पानी भरने की वजह से वह नहीं आ पाएंगे तब तक एक आटो रिक्शा आ चुका था ।

अब तक मेरा शूरवीर छाता पूरी तरह से टूट चुका था अब वह मेरे किसी काम का नहीं था। मैं उसे गुस्से में सड़क किनारे फेंककर ऑटो में बैठ गया।घड़ी देखी में निर्धारित समय से आधे घंटे पीछे चल रहा था मेरे ऑफिस से जहां पार्टी होनी थी वहां का रास्ता पूरे दो घंटे का था।मैंने अपने दोस्तों से कहा था कि वह मेरे ऑफिस के आसपास ही कोई वैन्यू रखें पर ज्यादातर मित्र मेरे उस साइड के होने के कारण मेरी एक ना चल पाई और मजबूरन वह पार्टी किसी भी हालत में अटेंड करने के लालच में मुझे उनकी हां में हां मिलाने पड़ी


मौके का फायदा उठाते हुए ऑटो रिक्शा वाला भी अपनी मनमानी पर अड़ा था और लगभग तिगुने रुपए वहां तक जाने के लिए मांग रहा था।एकबारगी मैंने सोचा कि मैं भीग चुका हूं तो घर को ही लौट चलो पर पार्टी के ख्याल में मन में गुदगुदाहट दुबारा ला दी और मैं सोचने लगा दो घंटे में तो मैं जाते-जाते सूख ही जाऊंगा।पता नहीं कुछ झमाझम बारिश का असर था या आज ही सब लोगों को कहीं ना कहीं जाना था तो ऐसा लगता था पूरी सड़क भरी पड़ी थी ऐसे जाम में फंसा कि जो सफर दो घंटे का था वह जाम देवता की कृपा से पूरे 4 घंटे का हो गया।


एक तो ऑटो से दोनों तरफ से आती हवा और बेहद भीगा हुआ में ना चाहते हुए भी सर्दी की गिरफ्त में आ गया। मुझे ठंड सी महसूस हो रही थी जो धीरे-धीरे कंपकंपी में बदल गई और लगातार छींकने से मेरा बुरा हाल हो गया था।

जैसे ऑटो आगे बढ़ रहा था मुझे समझ में आ गया था कि बारिश सिर्फ हमारे ही एरिया में हो रही थी जहां मुझे पहुंचना था वहां पर एक बूंद पानी की भी नहीं थी , यानि कि वहां पर बारिश ने कदम रखे ही नहीं थे।

मैं शेडूल टाइम से पूरे 4 घंटे लेट था जब मैं पहुंचा तू बस मेरे परम मित्र अवधेश नीरज और घनश्याम बचे थे सभी साथी आधे घंटे पहले वहां से जा चुके थे।कैटरिंग वाले ने भी खाना उठा ही लिया था बस दो तीन आइटम कॉफी चाय ही बचे थे। मुझे इस बुरी हालत में देखकर मेरे मित्रों ने मुझे जाकर कॉफी पिलाई।बेहद भूखे पेट मुझे वह कॉफी किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं लग रही थी उस समय।घड़ी में देखा पूरे 1:00 बजने को आए थे सभी मित्र एक दूसरे से गले मिलकर विदा हुए। मैंने भी वहां से घर के लिए कैब बुक कर ली।मुझे भी हाथ थक कर घर आते हुए सुबह के 4:00 बजने को आए थे।

उनींदी मेरी पत्नी ने दरवाजा खुलते ही मुझसे पूछा, "यह कौन सा ओवरटाइम है जो 4:00 बजे तक चलता है।"मुझमें जवाब देने की शक्ति नहीं बची थी....मैं कपड़े बदल बिस्तर पर आकर ढह गया.... बेहद भूखा होने के बावजूद भी थकान और नींद के कारण मेरी हिम्मत नहीं बची थी कि मैं कुछ खाने बैठ पाता।

सुबह ऑफिस चलते पर जो मेरी पत्नी ने रात को घर जल्दी आ कर उसके हाथों के बनाए डोसा खाने का निमंत्रण दिया था तो मैंने अपनी रीयूनियन की बात उससे पूरी तरह से छुपा ली थी और ऑफिस में ओवरटाइम की बात करके वहीं पर कुछ खाने के लिए कहा था।

 बुदबुदाती हुई मेरी पत्नी के शब्द अब मेरे कानों में गूंज रहे थे

" अगर झूठ बोलकर तुम मेरे बनाए डोसे नहीं खाओगे तो जाओ तुम्हें आज कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा।"

जनाब... पत्नी का श्राप था तो फलीभूत तो होना ही था।



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