MITHILESH NAG

Drama

5.0  

MITHILESH NAG

Drama

श्राद्ध

श्राद्ध

4 mins
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60 साल का एक बूढ़ा आदमी जिसको दुनिया से कोई लेना देना नही है,उसको पता है कि दुनिया पैसे के लिए होती है हम गरीबो को तो ठोकरें ही नसीब होता है।

बहादुर हमेशा से एक टूटे मकान में रहना पसंद करता है,क्यो की उसको लगता है कि ये सुख सुविधा मेरे लिए नही बना है।

रात को 2 बजे.... 

बहादुर अपना रिक्शा स्टेशन के पास खड़ी कर के उस पर सो रहा था। तभी एक आदमी...

“चाचा... पुरानी कालोनी चलोगे, और कितना लोगे वो भी बोलना?’

एक 23 साल की खूबसूरत लड़की जिसके चेहरे पर एक चमक थी और ऐसी लग रही थी जैसे कोई पारी हो।

“40 रुपये बेटी... बैठ जाओ रिक्शे पर”।

वो लड़की एक बैग लेकर कर बैठ गयी और फिर वो अपने बैग से चश्मा निकाल कर पहनती है।

“अगर बुरा ना मानो तो बेटी एक बात पूछ लूँ?”।

“क्यो नही पूछे,क्या बात है”?।

“बेटा तुम इतने रात को इस तरह आती हो तुम को डर नही लगता है कि रात को कोई कुछ कर दे”।

“कुछ भी हो सकता है,लेकिन क्या बैठ कर कुछ हो सकता है,अब आप खुद देख लो चाचा रात को भी सवारी के लिए यहाँ आप इंतज़ार करते है। तो ठीक वैसे हम भी है है।

“बात तो ठीक बोल रही हो,बेटी...”

रास्ते भर दोनों ऐसे ही बात करते रहे कभी उदासी तो कभी खुशी सब रास्ते भर चलता रहा। उसी में एक बात उस लड़की को पता चला कि बहुदार का 22 साल का लड़का भी था जो मर गया है।

“बस चाचा रुक जाओ यही” ( इशारा करते हुए)

बहुदार 40 रुपये लेकर जाने लगा और दोनों एक दुसरे को टाटा करते निकल गए।

कुछ दिन बाद....

एक दिन ऐसे ही रिक्शा लेकर बाजार की ओर निकला तो एक जगह पर बहुत भीड़ लगी है वो ये देख कर रुक जाता है। चारो ओर की भीड़ को पीछे कर के आगे निकलता है, देखता है एक बंजारन औरत मरी पड़ी है और पास में एक 1 साल की बच्ची रो रही है लेकिन कोई उस बच्ची की नही उठा रहा है। बहादुर से ये सब देखा नही गया तो उस बच्ची को एक अनाथ आश्रम में ले जाकर छोड़ देता है।

और उस औरत को वो लेकर पूरे विधिविधान से उसका अंतिम संस्कार कर देता है।

वापस आ कर वो सीधे अपने घर आ कर रुकता है।

रात को....

बहादुर पूरी रात नही सो पाया और अब वो बैचैन हो गया कि जब एक और कि कोई मदद नही किया तो उसके दिमाग मे ये आया कि क्यो ना जितने लोग लावारिस लाशो को वो अंतिम संस्कार कर देता था ।

ऐसे करते करते वो एक साल 40 लावारिश लाशो को अंतिम संस्कार कर देता था।

और हर साल पितरपख में जितने लावारिस लाश रहते है उसका खुद से श्राद्ध करता था ।

ऐसे करते करते वो खुद बोझ के तले दब चुका था । वो लोगो से उधर या चंदा लेकर करता था ।

एक दिन वो लड़की...

एक दिन वो लड़की देखती है कि बहुदार दो लाश को रिक्शे से घाट की ओर लेकर जा रहा है। तो पास में एक आदमी से....

“वो क्या कर रहे है?”

“वो किसी की लाश ले जा रहे है”

“क्या कोई उनका अपना था”

“नही बस समाज सेवा करते ह”।

“अच्छा”।

फिर कुछ दिन बाद वो लड़की देखती है कि अपना रिक्शा बेच रहे है। वो भी इसलिये की दूसरे का श्रद्धा हो सके ।

ऐसे ही वो करते रहे। 

अचानक एक दिन....गर्मी के समय मे वो एक आदमी के श्राद्ध के लिए जा रहे थे तभी वो सिर के बल गिरते है। और वो मर जाता है।

चारो ओर भीड़ लगी थी वो लड़की आ कर देखती है कि वो रिक्शा वाल आदमी वही गिरा पड़ा है लेकिन कोई उसको नही ले जा रहा है।

वो लड़की कुछ आगे रोड की तरफ बढ़ती है....

“ऑटो,..”

“बोलिए मैडम... (एक रिक्शा रुकते हुए)

“श्मशान चलोगे”।

उस मारे आदमी को ऑटो में लेकर घाट पर अंतिम सस्कर करती है।फिर घर चली अति है लेकिन बहुत दुखी और मायूस रहती है।

ठीक एक साल बाद...

वो लड़की उस आदमी का श्राद्ध करती है। और दुखी मन से उसके आत्मा के शांति के लिये प्रार्थना करती है।

पंडित पूजा मंत्र करता है और पूछता है...

“बेटी इनके श्राद्ध के लिए ये तुम्हारे क्या लगते है ?”

पहले तो वो लड़की कुछ देर शांत रहती है...

“वो मेरे पिता है, जो हजारों लोगों के श्राद्ध करने वाले एक महात्मा थे । इसलिये ये मेरे पिता के समान है।”


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