Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Drama

4.5  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Drama

शक

शक

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भेरवपुर गाँव में भैरव नामक एक ईमानदार आदमी रहता था। पेशे से वह एक शिक्षक था। भैरव एक शादीशुदा आदमी था। भैरव के एक समस्या थी, वो सदा सत्य बोला करता था। इससे उसके परिवार में माता-पिता व पत्नी से अनबन चलती रहती थी। उसे दुनियादारी का बिल्कुल भी ज्ञान नही था।

फिर वह अपनी जिंदगी से बहुत खुश था। भैरव का लिखने का बड़ा शौक था। उसने अपनी पत्नी को भी उपहार के रूप में शादी से पहले एक डायरी दी थी। डायरी में उसकी स्वरचित कविता, शायरियां थी। शादी पहले उसकी नोकरी नही थी। उसका मानना था यदि में भावी पत्नी को सच्चा प्यार करता हूं, तो उसे अपनी कमाई हुई मेहनत की चीज दूँगा। शादी के कुछ साल बाद का समय उसका अच्छा बीत रहा था।

एकदिन अनहोनी हो गई। भैरव की पेंट से एक पुरानी चूड़ी व एक कसीदा किया हुआ, अंग्रेजी में L लिखा रुमाल मिला। उसकी पत्नी को इससे भैरव पर शक होने लगा। ऊपर से भैरव कविता व शायरियां भी लिखता था। इससे भैरव की पत्नी का शक और गहराने लगा। भैरव ने पत्नी को समझाने का भरसक प्रयास किया। पर भैरव की पत्नी के मन मे शक का कीड़ा घुस गया था। भैरव ने अपने आराध्य देव बजरंगबली की कसम भी खाई, पर भैरव की पत्नी का शक फिर भी दूर न हुआ। इससे दोनों के बीच आये दिन झगड़े होते। भैरव बड़ा दुखी व परेशान हो गया।

वह अपनी पत्नी को दुःखी नही करना चाहता था इसलिये वह अंदर ही अंदर घुटता रहता था। उसकी पत्नी इसका गलत मतलब लगाती और कहती आप तो किसी दूसरे की यादों में खोये हुए रहते हो। भैरव समझाता हे प्रिय में बालाजी का सेवक हूं, में तेरे अलावा किसी दूसरे के बारे में सोच भी नही सकता हूं। तू इतनी छोटी बात सोच भी कैसे सकती है। भैरव उसे अपनी पुरानी शायरियां बताता, पर उसकी पत्नी के कुछ भी समझ मे नही आता, वह मुँह फुलाकर बैठ जाती। इससे भैरव और दुखी हो जाता था। एकदिन दोनों के बीच लड़ाई बहुत बढ़ गई।

दोनों अपने माता-पिता को बीच मे लेकर आ गये थे। बात तलाक तक पहुंच गई थी। दोनों के माता-पिता भैरव के गाँव, भेरवपुर पहुंचे। पहले भैरव ने सबका सत्कार किया। सबको जलपान कराया। फिर दोनों के माता-पिता बोले अब बताओ दोनों इतना क्यों लड़ रहे हो जबकि तुम दोनों तो पढ़े लिखे हो। पहले भैरव की पत्नी को अपना पक्ष रखने रखने के लिये कहा गया। भैरव की पत्नी ने चूड़ी, रुमाल, कविता, शायरियां वाली सारी बात बता दी। अब भैरव को अपना पक्ष रखने को कहा गया। भैरव ने कहा पहली बात तो यह है की मुझे लिखने का बचपन से शौक है।

इस लिखने के चक्कर मे बचपन मे भैया के हाथों से मेरी पिटाई भी हो चुकी है। 10 वी कक्षा में 5 शायरियां रोज लिखता फिर पढ़ाई करता था। में आपको वह कॉपी दिखाता , परन्तु भैया न वो कॉपी फाड़ दी है। स्वयं इनको भी मैंने शादी से पहले एक डायरी गिफ्ट की थी। उसमें मेरी कविताएं व शायरियां लिखी हुई है और वो एक विषय मोहब्ब्त पर नही सबपर लिखी हुई है। दूसरी बात यह है की में गाने सुनकर पड़ता था।

शुरुआत में सब घरवाले व पड़ोसी मुझ पर शक करते थे की भैरव बिगड़ रहा है। धीरे-धीरे सब समझने लगे गाने सुनना व कविता, शायरियां लिखना इसका शौक है। आज सबको पता है, में एक सरकारी अध्यापक हूं। तीसरी बात ये चूड़ी मेरी माँ की है। औऱ ये रुमाल मेरी माँ की निशानी के रूप में मेरे पास है।

L का मतलब लाली है। यह मेरी माँ का नाम है। भैरव के ससुर बोले, बेटी मेरा दामाद खरा सोना है। जरूर तेरे समझने में भूल हुई है। तू एक कवि के दृष्टिकोण से सोचती तो शायद तुझे अपने पति में गलतियां नज़र नही आती है। बहुत सी बार जो दिखता है वो सत्य नही होता है। वो एक आंखों का धोखा हो सकता है। वैसे भी इस दुनिया मे हर चीज का ईलाज हो सकता है। पर वहम का नही। भैरव की पत्नी अब समझ चुकी थी। वो बोली पिताजी मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझे इनको समझने में गलती हुई है। आज से में वहम को छोड़कर, अपने विश्वास को हिमालय पर्वत सा अटल करूंगी।


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