Yashwant Rathore

Fantasy

4.3  

Yashwant Rathore

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शिवा

शिवा

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बात सन 1632 की है। एक छोटा सा गांव जिसका नाम मलकापुर था, एक तरफ से ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घीरा हुआ था और एक तरफ कुछ कोस दूर पर ऊंचे ऊंचे रेत के टीले थे।

इन्ही के बीच में 80 घर का एक छोटा सा गांव था मलकापुर।

गांव की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती थी।

बारिश का पानी पहाड़ियों की तलहटी मैं इकठ्ठा होकर एक सुंदर तालाब का रूप ले लेता था।

सारे गांव की पानी की पूर्ति इसी तालाब से होती थी।

इस तालाब के तल में बुजुर्ग लोगों ने 3 बड़े कुए बना रखे थे ,कि जब तेज गर्मी का मौसम हो तो तालाब का पानी अगर सूख भी जाए तो इन कुओं में पीनेे के पर्याप्त पानी रह जायेगा।

तालाब के किनारे ही पहाड़ी पर भगवान कृष्ण का सुंदर सा मंदिर बना हुआ था। इस मंदिर की दीवारें सदियों पुरानी लगती है।

यह कब से बना हुआ है किसी को भी नहीं पता था।

सारे गांव वाले कहते हैं की , यह बहुत पुराना मंदिर है।

जब यह मंदिर बनाया गया था, तब इस तालाब का भी जीणोद्धार किया गया था।

तालाब के पानी की शुद्धता रखने के लिए उस वक़्त के ठाकुर साहब राम सिंह जी ने तालाब के तल में तांबा लगवा दिया था।

पहाड़ पर बहुत छोटी-छोटी गुफाएं है कहते है कि यहां कभी ऋषि मुनि तप किया करते थे

मंदिर से होता हुआ रास्ता सीधा गांव को जाता हैैं। मंदिर गांव से लगभग आधा कोस की दूरी पर था

रास्ते में बहुत सारे नीम के पेड़ और बहुत सारी बेर की झाड़ियां थी।

मोरों का झुंड और कोयल की आवाज रास्ते को और मनमोहक बना देेते हैं।

घास फूस से बने घर और गोबर से निपा गया आंगन, चौक मे चोक से कोरी गयी रंगोली घरों को महलो सा रूपवान बनाती थी

इस गांव में एक 16 साल का लड़का, जिसका नाम शिवा है ,अपने पिताजी प्रताप सिंह और माता देवयानी के साथ रहता है

शिवा के घर की स्थिति बहुत चिंताजनक थी

कम जमीन और पिछले साल बारिश ना होने की वजह से बचा खुचा अनाज भी समाप्त हो गया था

प्रताप सिंह जी ने नजदीकी गांव के लाला सुखराम से पैसे उधार ले रखे थे।

इस बार भी बारीश ना होने की वजह से शिवा गुरुकुल न जा सका।

शिवा को इस बात का गहरा दुख था पर घर की स्थिति देख वह कुछ न बोलता था।

शिवा अपने पिताजी के साथ आज मन्दिर आया हुआ था।

शिवा मंदिर की दीवार से तालाब को देखते हुवे

पिताजी - क्या देख रहे हो शिवा

शिव - तालाब कितना गहरा है ना

पिताजी - अभी तो पानी ही कहां है बेटा, पहली सीढ़ी से भी 2 हाथ ऊपर तक पानी रहता था, अब जाने कब बारिश हो, कुओं का पानी भी सूखने को हैं

शिव - इस तालाब का तल ताम्बे का था क्या?

पिताजी - हां बेटा कहते तो हैं

शिव - पर हमारे गांव में इतना ताम्बा आया कहां से

पिताजी - कहते हैं यहां कोई महात्मा थे जिनकी तपस्या पूर्ण हो चली थी पर गाँव की एक युवती पर अपना मन हार बैठे थे

सदगति ना होने से अगले जन्म में मणिधर सांप का स्वरूप मिला।

शिव - क्या मणिधारी सांप सच मे होते हैं

पिताजी - कहते तो है बेटा। मणि की शक्तियों से ये नाग इच्छाधारी होते हैं, मनचाहा रूप धर लेते हैं।

शिव - कैसे पता चलता है कौन सा नाग मणिधारी है

पिताजी - कहते हैं अगर मणिधारी नाग 1 कोस की दूरी पे हो तो आप के शरीर मे खुजली होने लग जाती हैं और पूर्णिमा को साँप में मणि ज्योत सी चमकने लगती हैं, तभी जानना संभव हैं

शिव - अब कोई मणिधारी नाग नही है क्या?

पिताजी - होगा बेटा

शिव - ये मंदिर हमारे गांव से आधा कोस दूरी पर हैं, अगर होता तो सारे गांव को खुजली हो जाती ( हंसता हैं)

पिताजी - ठाकुर राम सिंह जी को नाग देवता पहाड़ी के उस पार दिखे थे।

पहाड़ी के पीछे थोड़ा जंगल सा हैं, सूखे झाड़ो से बंधा हुआ सा। जंगली जानवरों के रहने का अच्छा ठिकाना है वो।

उस समय भी अकाल था औऱ कोई जरक उनकी बकरी उठा के ले भागा था।

अकाल में वही धन था, वो पीछा करते उस पार चले गये।

शिव - क्या उन्हें बकरी मिली

पिताजी - नही , वो सुबह के गए शाम लोटे, पर उनके मुख का तेज व निर्भय चेहरा देख सब दंग रह गए, उनको नाग देवता ने मणि बख्शी थी।

उसी मणि से गाँव के सब दुख दूर हुवे व खुशहाली लोटी।

वो जो भी करना चाहते थे वो काम पूरा हो जाता था

रात को दीपक में वो मणि रख देते थे और उसी रौशनी में उन्होने ये बातें लिखी, जो आज हम जानते हैं

शिव - वो मणि अब कहाँ हैं?

पिताजी - राम सिंह जी ने शादी नही की थी पर उनके परिवार के बाकी सदस्य मणि के लिए अपना लालच दिखाने लगे।

राम सिंह जी ने वो मणि वापस नाग देवता को सुपूर्द करदी ताकि उसका दुरुपयोग नही हो

शिव - वो नागदेवता आज भी हैं

पिताजी - बरसो पुरानी बात हैं ,कितनी पुरानी ठीक ढंग से कोई नही बता सकता।

पर सुना हैं मणिधारी सर्पो की उम्र 1000 साल की होती हैं। अब क्या पता।।

दर्शन के बाद शिव पिताजी के साथ घर आ जाता हैं

शाम को खाना खाते समय देवयानी की चिंता शब्द ले लेती हैं

देवयानी - अब क्या होगा शिवा के पिताजी, लाला ने आज भी संदेशा भिजवाया था

प्रताप सिंह जी - बच्चें के सामने ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो

शिवा - मां आप डरे नही, में नागबाबा से मणि ले आऊंगा

देवयानी - कौन मणि बाबा

शिवा और प्रतापसिंह जी हँसने लग जाते हैं

शिवा मन मे ठान लेते हैं कि वो देखने जरूर जायेगा कि कोई नागदेवता है कि नही , क्या पता में सब के दुख दूर कर पाऊं।

शिवा सूर्योदय से पहले ही निकल जाता हैं क्योंकि माताजी पिताजी तो जाने देंगे नही और वो जल्दी ही लौट आयेगा ताकी उनको ज्यादा चिंता न हो।

जल्दी सुबह ,शिवा तेजी से भागता हुआ गांव से बाहर निकल जाता हैं।

आज वो एक नई उम्मीद से भरा हुआ हैं, कुछ कर जाएगा उसे पता हैं

सीधा तालाब आके ही रूकता हैं, पानी पीता हैं , दूर से ही मन्दिर को नमस्कार कर ,पहाड़ी पार कर लेता हैं।

आज उसे नाम मात्र की भी थकान न थी, एक ऊर्जा से भरा हुआ वो सूखे जंगल तक पहुंच जाता हैं।

वहाँ पहुंच वह हर गुफा के आसपास चक्कर लगाता हैं और शरीर मे खुजली के अहसास का ध्यान भी रखता हैं ताकि पता रहे कि कोनसे नाग देवता मणिधारी हैं

बहुत सारी छोटी छोटी सैकंडो गुफाये हैं जिसमे सिर्फ एक आदमी बेठ सके और बारिश,हवा से बच सके इतनी ही जगह होती हैं।

काफी देर तक खोजते रहने के बाद भी उसे कोई अहसास नही होता।

अब उसे शकां होने लगती हैं, उसकी उम्मीद ढ़हने लगती हैं।

वो संभलता है और सोचता हैं कुछ भी हो, अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर लेता हूँ।

सारी गुफा देखने के बाद वो सोचता हैं क्या पता नागदेवता अब किसी बिल में ही रहते हो,पर यहां तो सैंकड़ो बिल हैं, जहरीले सांप होंगे, एक गलती जानलेवा हो सकती हैं।

कुछ दूर पड़ी एक कंटीली झाड़ी उठा लेता हैं,उसे साफ कर, फिर सब बिलो में झाड़ी डाल के देखता हैं

ज्यादातर पहाड़ पर बने बिल छोटे छोटे ही होते हैं, काफी देर तक प्रयत्न कर वो थक जाता हैं, एक उदासी उसे घेरने लग जाती हैं।

सवेरे के आठ बजे जाते हैं, धूप तेज होने लग जाती हैं। पर अपनी समझ से वो सारी कोशिश करता हैं।

अब तो घरवालों ने भी सारे गांव में मुझे ढूंढ लिया होगा, मुझे जाना चाहिए। ये सोच शिवा आखरी बचे तीन बिल की तरफ जाता हैं।

मन ही मन वो नागबाबा को व राम सिंह जी को याद कर प्राथना करता हैं

शिवा - हे नागबाबा और रामसिंह जी में मणि का कोई दुरुपयोग ना करूँगा, सिर्फ अपने घर के लिए ही नही ,पूरे गांव की भलाई करूँगा।

में कसम खाता हूं, में शादी भी नही करूँगा और मेरा कोई भाई भी नही सो मणि के लिए झगड़े भी नही होंगे।

और सब सही होने के बाद मणि वापस कर जाऊंगा।मेरे पे कृपा करे।

शिवा पहले बिल में कोशिश करता हैं पर नाकामी हाथ लगती हैं, दूसरे बिल में भी यही होता हैं।

आखिरी बिल को वो उदासी और उम्मीद से देखता हैं, ध्यान से मन को इक्टठा कर झाड़ी बिल में डालता हैं। झाड़ी पूरी बिल में चली जाती हैं, ये बिल शिवा को काफी बड़ा लगता हैं

नाग देवता बड़े बिल में ही रहते होंगे ,पर अगर कोई दूसरा सांप हुआ और काट खाया तो, ये सोच शिवा अपनी कमीज हाथ पे अच्छे से लपेट झाड़ी के साथ अपना पूरा हाथ बिल में डाल देता हैं।

अचानक कोई शिवा का हाथ अंदर की तरफ खेंच लेता हैं, छोटे से बिल में शिवा पूरा समा जाता हैं

शिवा को समझ आये उससे पहले वो एक मंदिर में होता हैं, जो चारों ओर से पानी से ढका होता हैं। नीला आसमान और दूर तक पानी का फैलाव ही दिखता हैं

सामने ध्यान लगाएं एक बाबा बैठे होते हैं, शांत आभा ओर दयालु मुखमंडल से युक्त।

शिवा उन्हें प्रणाम करता हैं

शिवा - हे सन्त शिरोमणि आपको प्रणाम करता हूँ, क्या आप नागबाबा हैं

नागबाबा - शिवा बहुत हठीले हो तुम

शिवा - में यहाँ कैसे आया, मै ने तो बिल में… और आप तो इंसानी शरीर मे हैं, मैने तो सोचा था।।

नागबाबा - क्या तुम मुझे नाग रुप मे देखना चाहते हो

शिवा - नही नही , डर लगेगा, ऐसे ही अच्छा हैं

नागबाबा - हँसते हुवे - बेटा, हां मैं ही तुम्हारा नागबाबा हूँ

जो कहानी तुमने सुनी वो सदियो पुरानी हैं, अभी तक वो कहानी प्रचलित हैं ,प्रभु की इच्छा हैं

नागरूप तो क्या, मनुष्य रूप में भी, मैं अभी नही हूँ।

ये मेरा शूक्ष्म शरीर हैं जो तुम्हे मनुष्य सा भास रहा हैं।

एक बार आत्मा परमात्मा में समाहित हो जाती है तो अमरत्त्व में विलिन हो जाती हैं।

तुम्हारे जैसे करोड़ो में एक, कोई अनुरागी , शीतल हृदय वाला जब पुकारता हैं तो हम प्रकट होने को विवश हो जाते हैं

शिवा - तो क्या आप मुझे मणि देंगे

नागबाबा - मणि उत्तराधिकारी को ही मिलती हैं बेटा, तुम्हारी परीक्षा होगी, सफल हुवे तो जरूर मिलेगी, क्या तुम परीक्षा के लिए सज्ज हो

शिवा - मुझे क्या करना होगा

नागबाबा - उत्तर दिशा की तरफ जाओ

शिवा - पर जाने का रास्ता कहाँ, यहां तो पानी ही पानी हैं और मुझे तैरना नही आता, बचपन से ही पानी मे जाने से डर लगता हैं

नागबाबा - तो में तुम्हे वापस तुम्हारे गांव भेज देता हूँ , आओ

शिवा - नही

शिवा पानी की तरफ बढ़ता हैं , आंख बंद कर पैर पानी मे रखता हैं।

पैर पानी मे नही जाता, आँख खोल के देखता हैं और पानी पर चलने लगे जाता हैं

खुशी से पीछे मुड़ के देखता हैं तो चारो तरफ सिर्फ पानी ही होता हैं, ना ही मंदिर दिखाई देता हैं ना ही नाग बाबा।

तभी सैकड़ो बड़ी बड़ी मगरमच्छ उसकी तरफ बड़ती हैं, शिवा तेजी से भागता हैं, मगरमच्छ पास आने ही वाली होती है कि पानी मे बड़ा सा पेड़ प्रगट होता हैं

पेड़ के प्रगट होते ही मगरमच्छ थोड़ी दूर रुक जाते हैं। पेड़ पर एक सुंदर अप्सरा विराजमान होती हैं।

अप्सरा योवन से पूर्ण होती हैं, सुंदर नयन नक्श , गोर वर्ण और भोला मुख उसे अत्यधिक आकर्षक बना रहे हैं

अप्सरा - इन मगर से में तुम्हारे प्राणो की रक्षा कर सकती हूं, पर ये पेड़ मेरे प्राण ,मेरा जीवन हैं, इसमे में तुम्हारा स्वागत क्यों करुं

मेरे प्रश्न का सत्य उत्तर दे दोगे तो में तुम्हे ग्रहण करूँगी।

शिवा - बोलो देवी

अप्सरा - तुम्ह मुझे पाना चाहोगे या मेरा नीरा प्रेम , सत्य कहना तुम्हारा मन किस की चाह रखेगा।

शिवा - देवी, प्रेम

अप्सरा - ये तो तुमने अपने आप को अच्छा दिखाने के लिए कहा और मेरे योवन का अपमान किया, मै कैसे मानू ये सत्य हैं, कोई कारण दो

शिवा - देवी आप अत्यंत सुंदर हैं, आपके रूप से दृष्टि हटाना असम्भव है

परन्तु शरीर को पाना संभव हैं ,कुछ धन बल से उसे प्राप्त किया जा सकता हैं, वो सस्ती वस्तु हैं और शरीर की स्वयं एक उम्र होती हैं सो उससे प्राप्त सुख भी सदा नही रह सकते।

इसकी एक सीमा हैं

पर प्रेम बल से या धन से पाया नही जा सकता, और प्रेम असीम हैं, प्रेम अपने मे ही पूर्ण हैं - ऐसा राजा ययाति जी का महाभारत में कथन हैं।

मेरे पिताजी ने मुझे ये कथा सुनाई थी, अपनी बुद्धि और समझ से ,मै भी इस सत्य को स्वीकारता हूं।

मुझ कुरूप को आप प्रेम दे ये बड़े भाग्य की बात होगी।

अप्सरा शिवा का हाथ पकड़ पानी मे खेंच लेती हैं।

शिवा पानी मे भी सांस ले पा रहा था, जल जगत के भिन्न भिन्न, छोटे बड़े, भीमकाय जीवों को देख आश्चर्य चकित था।

जीवन व उसकी संभावनाएं हमारी समझ से कही आगे की है। प्रकर्ति ने कितने विभिन्न रंगों से मिनो को सजाया हैं, आँखों से देखने से ही मानने को आता है।

समस्त पुस्तकालयों को घोट कर पी जाएं तो भी ये जीवंत अनुभव कहाँ मिलेगा

अप्सरा शिवा के दोनों हाथ पकड़ पास में खेंच लेती हैं

शिवा की आँखों मे देख उसे जोर से धक्का देती हैं

शिवा एक रेगिस्तान में गिरता हैं।

उसे दूर एक गांव दिखाई देता हैं, शिवा वहां जाता हैं

सारे घर के दरवाजे बंद होते हैं, एक घर पे जाके शिवा आवाज़ देता हैं, अंदर से आवाज़ आती हैं

अंदर चले आओ ,हम बाहर नही आएंगे, हम तेज़ धूप में बाहर नही आ सकते।

शिवा अंदर जाता हैं, तो वहां कई कंकाल बैठे, कंकड़ खा रहे होते हैं

शिवा देख घबराता हैं, बाहर निकलने की कोशिश करता हैं पर दरवाजे अपने आप बंद हो जाते हैं

कंकाल - यहां से भाग नही पाओगे और तुम्हे खाके पूरे गांव की भूख नही मिटेगी।

शिवा - आप कंकड़ क्यों खाते हैं

कंकाल - हमें एक सन्यासी का श्राप लगा था, उसके बाद हमारे यहां सदियों से अकाल हैं, हम मरते भी नही हैं और यहां कुछ उगता ही नही हैं। भूख के मारे हम कंकड़ खाते हैं। देखो दांत भी टूट गए, सीधा निगलते हैं।

ये मेरे छोटे बच्चे देखो, सबका क्या हाल हैं

शिवा - तो कोई रास्ता क्यों नही खोजा

कंकाल - बहुत खोजा, इस गाँव के सारे जानवर भी खा गए, कुछ अकाल से मर गए, बस एक बाज ही बचा है वो भीमकाय हैं, उसे मार डाले तो एक महीने का पूरे गांव को भोजन मिल सकता हैं

पर वो बहुत दूर एक पहाड़ी पर रहता हैं, सुबह निकले तो शाम तक पहुंचे, पर धूप में हमारी हड्डिया जलती हैं, हम बेहोश होके गिर जाते हैं, रात को वो सातवे आसमान को पार कर दूर दुनिया से भोजन कर आता हैं

शिवा - एक महीने के बाद क्या?

गलत तरीके से कमाया हुआ, कुछ समय तक ही संतुष्टी दे सकता हैं फिर तो सही रास्ता ही खोजना पड़ता हैं

मुझे प्यास लग रही हैं

कंकाल - सब हँसते है - ये भी कंकाल बनेगा, हा हा हा

शिवा - वो बाज़ कहा रहता हैं

कंकाल - दक्षिण दिशा की पहाड़ी पर जाओ

शिवा पहाड़ी की तरफ भागता हैं, पहाड़ी बहुत दूर दिखाई देती हैं, शिवा प्यास से मरा जा रहा होता है, ऊपर से पसीना निकलने से कमजोर हो वो गिर जाता हैं।

एक खोपड़ी आगे पड़ी दिखाई देती हैं, कईओ ने कोशिश की थी, सब यहीं तक पहुंचे शायद, मै क्या कर सकता हूँ, शिवा सोचता हैं

कुछ सोच कर शिवा खोपड़ी को उठा उसमे मूत्र करने की कोशिश करता हैं, पर मूत्र गर्मी के कारण नही उतरता। कुछ जोर लगाने से मूत्र के साथ खून भी गिरता हैं।

शिवा आंख बंद कर पी जाता हैं और फिर से पहाड़ी की तरफ भागता हैं।

पहाड़ी पर पहुंचते ही आसमान तक को छूने वाला बाज़ शिवा को देख हँसता हैं

बाज - तुम तो मेरा शिकार कर नही सकते फिर क्यों आये हो

शिवा - तुम दूर दुनिया से भोजन कर के आते हो, क्या तुमने कुछ खाना पानी इकट्ठा कर रखा हैं

बाज - में भोजन और पानी पर्याप्त करके आता हूँ कि अगले दिन तक जीवित रह सकूँ।

भोजन अगर में इकट्ठा करने लग जाऊं तो समस्त लोको का भोजन हर लूंगा, कितने जीव जंतु भूख से मर जायेंगे।

में भी निकम्मा हो जाऊंगा और मेरी पीढ़िया भी। में सात आसमान उड़ने की समता भी खो दूंगा।

इस गांव के मूर्ख लोग यही सब कर रहे थे, बहुत धन धान होने के बावजूद ज्यादा मुनाफाखोरी के चक्कर मे कालाबाजारी करने लगे।

आसपास के सारे गांव और लोग इससे परेशान होने लगे। जो समर्थ थे वो चले गए। अकाल आया तो गरीब और लाचार मारे गये।

यह सब देख दूर गांव के एक सन्यासी ने इन्हें श्राप दिया और खुद गांव छोड़ चले गए।

शिवा - ये पश्चिम में अलग सा दिखने वाला पहाड़ कैसा हैं

बाज - ये पहाड़ नही, मेरे मल मूत्र का ढेर हैं।

सूरज ढलने वाला हैं ,मुझे जाना चाहिए।

शिवा - मुझे क्या उस ढेर पर छोड़ दोगे। वहां तक जाने की मेरे में अब सामर्थ्य नही रहा

बाज - हा हा हा क्यों क्या करना हैं, आओ चलो

बाज राम को अपने पे बैठा ढेर पर छोड़ देता है

सारे कंकाल ये देख ढेर की तरफ जाते हैं

शिवा ढ़ेर को छूता हैं तो उसमें कुछ नमी होती हैं

कुछ अपने कमीज में लपेट कर निचोड़ता हैं तो उससे पानी निकलता हैं, शिवा अपनी प्यास बुझाता हैं।

कंकाल - मूर्ख क्या कर रहे हो

शिवा - गाँव की खुशहाली के लिए रास्ता खोज रहा हूँ

देखो बाज कितने ही फल और सब्जियां निगल गया, इनके बीज साबूत हैं और ढेर में नमी अत्यधिक हैं।

हम सब मिल काम करें तो फल व सब्जिया ऊगा सकते हैं।

कंकाल - पर हमें तो श्राप हैं

शिवा - सच्चे मन से कर्म करना हमारा दायित्व हैं। परिणाम की चाह क्यों रखे।

बाकी श्राप मिलते हैं तो वरदान भी मिलते हैं

सब कंकाल मिल के काम करते हैं।

कुछ ही देर में सारा ढेर काम मे आ जाता हैं, सूरज आते आते पेड़ बड़े हो फल देने लगते हैं

छांव उन्हें धूप से बचा लेती हैं, फल खाते ही सब प्राणवान हो जाते हैं।

छोटे कंकाल मुस्कुराते बच्चे में बदल जाता हैं।

सारा गांव सुंदर नर नारी में बदल जाता हैं।

गांव का मुखीया- बेटा तुम कौन हो, हमारा उद्धार करने वाले

शिवा - कोई नही हूँ मै तो, अपने घर के हालात सुधारने के लिए।।।

मुखिया - चल जूठे , मुस्कुरा के गले लगाता हैं

गले लगाते ही शिवा नाग बाबा के सामने होता हैं, वही मन्दिर में नाग बाबा व रामसिंह जी सामने बैठे होते हैं

राम सिंह जी - तुम परीक्षा में उतीर्ण हुवे पुत्र

नागबाबा - ये राम सिंह जी हैं , आपके पूर्वज, इन्हें प्रणाम करो

शिवा - प्रणाम करता हैं - क्या अब मुझे मणि मिलेगी

नागबाबा और राम सिंह जी साथ मे हँसते हैं

नागबाबा - बेटा क्या अब भी तुम्हे मणि की जरूरत हैं

शिवा अपने मे एक अद्भुत साहस व आशावादी नजरिया महसूस करता हैं।

शिवा - बाबा मुझे इतना समझ आया कि अगर आप सच्चे हैं और सही रास्ते से पूरे प्रयास करें तो हर मुश्किल का हल ढूंढा जा सकता हैं।

मुझे अब अपनी मुश्किलो के लिए मणि की आवश्यकता नही।

नागबाबा - बेटा राम सिंह जी ने भी गांव का उद्धार अपनी चाह और मेहनत से ही किया था।

मै उस वक़्त नागयोनि में था, हर गुरु शिष्य को कुछ न कुछ याद के रूप में देता हैं ताकि गुरुओं की शिक्षा याद रहे।

कुछ मौली, माला, कुछ त्रिशूल, कोई तलवार,कटार ,कोई बाना, कोई छड़ी दे ही दिया करता हैं। उनमे कुछ नही होता।

कुछ न कुछ तो सभी काम देते ही हैं।

पर हृदय में शिक्षाओ ,संस्कारो के बीज जो बोता हैं, समय आने पे फल की कृपावृष्टि भी होती हैं

जाओ पुत्र निर्भय बनो।

शिवा नागबाबा और रामसिंह जी के चरण स्पर्श करता हैं

दोनों के मुख से एक साथ निकल पड़ता हैं - तथास्तु।

शिवा अपने आप को उसी बिल के सामने खड़ा पाता हैं, उसके हाथ मे वही झाड़ी होती हैं।

शिवा मुस्कुराता हैं, छड़ी फेंक अपने गाँव की तरफ निकल पड़ता हैं।


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