शिकायतनामा
शिकायतनामा
जिंदगी से शिकायतें ही तो रही है अबतक।बहुत बार अपने आप से...
कभी कभी आसमाँ में बसने वाले भगवान से!
तो बस इस कहानी का नाम फाइनल हो गया शिकायत नामा ! बचपन से ही मेरे कितने सारे ऐसे अनुभव रहे है जो आज उम्र के पाँच दशकों के बाद भी मन के किसी कोने में कही अंदर दफ़न है। कभी कभी ख़ुशी और गम के मौकों पर अचानक ही वे बात न मानने वाले किसी ढीठ और जिद्दी बच्चे की तरह सामने खड़े हो जाते है।
मेरी शिकायतें भी कई तरह की है।
कुछ तन की... कुछ मन की......... तन की शिकायतों का अच्छा है, ले लो कुछ गोलियाँ, कैप्सूल्स और इंजेक्शन्स!!!
बस शिकायतें दूर.....
मन की शिकायतों का क्या!!!
वे तो मन में ही रहती है.....ताउम्र....
मन की शिकायतों पर क्या कोई दवा असर करती है भला?
मन की शिकायतें क्या शिकायतें होती है?
नहीं !! नहीं !!!
हक़ीक़त में वह तो उलझनें होती है।
कुछ ख्वाबों की...
कुछ टूटे ख्वाबों की....
कुछ इच्छाओं की....
कुछ अपूर्ण इच्छाओं की....
पहले प्यार की....
और कुछ महत्वकांक्षाओं की....
वही चाँद को छूने वाली महत्वाकांक्षाएँ... जो कभी पूरी न हो सकी.....
जिंदगी की आपाधापी में....
जिंदगी खूबसूरत तो होती है लेकिन जिंदगी की अपनी प्रयोरिटीज़ भी होती है.....
इस लेकिन में बहुत सी चीजें ढँकी हुयीं होती है...जैसे इच्छा और महत्वाकांक्षाएँ! वह चाँद को छूनेवाली महत्वकांक्षा तो बस खिड़की से चाँद को देखने भर में ही ढँकी रह जाती है......
और पहला प्यार....वह तो कभी कभार ही याद आता है....
नही! नही!! नही!!!
वह ताउम्र दिल में कही गहरे अंदर तक छुपा रहता है जिंदगी की उन प्रयोरिटीज़ की लंबी लिस्ट में......