अजय '' बनारसी ''

Inspirational Drama

5.0  

अजय '' बनारसी ''

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शीर्षक

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आज फ़िर से वो मुझे सड़क के सिग्नल पर दिखी, देखने मे बेहद खूबसूरत किसी फिल्मी हिरोईन की तरह वैसे अक्सर वो मुझे यहाँ दिख जाया करती थी, हो न हो उसका सिग्नल और मेरे घर जाने का रास्ता एक ही था, मैं उसे हमेशा कनखियों से निहारते रहता था ,वह और उसके साथी रोज़ तालियाँ बजा बजाकर लोगो को आशीवार्द देते हुए पैसे माँगा करते थे,लेकिन आज वह थोड़ी परेशान दिख रही थी शायद जल्दी में भी थी, मैंने आज उसके मुस्कराते चेहरे पर पहली बार ढ़ेर सारी उदासी और चिंता देखी थी वैसे मैंने इन किन्नरों को कभी रोते हुए नही देखा था।


मेरा मन नही माना मैंने आज तय किया कि आज पहली बार किसी किन्नर का साक्षात्कार करूँगा और जो मैंने पहले से ही तय किया है एक आर्टिकल ज़रुर अपने अखबार में छापूंगा मैंने तुरंत गाड़ी साइड में लगाई और वहीं पास में खड़ा हो गयआज मेरी किस्मत ठीक थी। शायद वह आज जल्दी घर जाने वाली थी उसने साथी किन्नरों को हाथ दिखाया और चल पड़ी मैं भी उसके पीछे पीछे लेकिन हिम्मत नही हो रही थी कि कैसे बुलाऊँ शुरुवात कहाँ से करूँ इत्यादि वह पास के घनी झुग्गी की ओर मुड़ गई पीछे पीछे मैं भी मैंने तय कर लिया आज तो मैं बात करूंगा ही और ये क्या शायद उसका घर आ गया था वह घर मे जैसे ही घुसी ,मैं भी बिना सकुचाये मुख्य द्वार पर ठिठक गया और चोरी से भीतर झांकने लगामैंने देखा उसने घर पंहुचते ही बिस्तर पर रो रही एक साल की बच्ची को गोद मे ले लिया।


और वहाँ बैठे एक पुरुष और महिला से कहा

"मैं दवाखाना जाकर आती हूँ इसे अब भी बहुत बुखार हैं।"

और वह पलटी दरवाज़े के ओट में मुझे देखकर सकुचाई और बोली,..

"आप कौन ?"

मैंने अपना संछिप्त परिचय दिया और उसे बताया मैं एक आर्टिकल अपने अखबार के लिए लिख रहा हूँ आप से कुछ सवाल पूछने थे, उसने बड़ी विनम्रता से कहा

"आप रुक सकते हैं तो बैठिए मैं इसे दवाखाना डॉक्टर को दिखा कर आती हूँ "

मैंने उससे कहा क्यों न मेरी गाड़ी में ले चलो वहीं रास्ते मे बात भी हो जाएगी और इसे डॉक्टर को भी दिखा देना।

वह राज़ी हो गई और अगले कुछ पल में, मैं और वो मेरी गाड़ी में बैठ गए यात्रा प्रारंभ हुई।मैंने साक्षात्कार के लिए ऑडियो रिकॉर्डिंग ऑन कर दिया बातचीत से पता चला बच्ची उसे एक साल पहले इसी सिग्नल पर मिली थी और अब वह उसकी देखभाल कर रही हैं और जो घर मे थे वो उसके माता पिता थे , भाई ने भाभी के कहने पर उन्हें घर से निकाल दिया और बहन ससुराल में हैं जो माँ पिता को साथ नही रख सकती इसलिए वो यहां रह रहें हैं और ढेर सारी बातें हुईं, जो मेरे मन मे जिज्ञासा थी उन सारे प्रश्नों का ज़वाब उसने बड़ी सहजता से दिया मैं उसे डॉक्टर के पास छोड़कर घर चला आया और टेबल पर बैठ आर्टिकल लिखने लगा और कुछ घण्टे में आर्टिकल तैयार था मैं चाहता था आर्टिकल जल्द से जल्द अख़बार में छपे लेकिनमैं समझ नही पाया शीर्षक क्या दूँ इस आर्टिकल का किन्नर , देवी ,माँ या सपूत !



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