शीर्षक-डर
शीर्षक-डर
कहा गया है कि "कायर तो जीते जी ही दिन में हजारों बार मरते हैं।"
यह युक्ति अपने आप में पूर्णतया सत्य है क्योंकि कभी-कभी इंसान अनावश्यक ही अपने द्वारा सोची गई बातों के कारण स्वयं परेशान होता है एवं दूसरों के लिए भी परेशानी खड़ी कर देता है।
सारस को यह डर समा गया था कि अपनी जिंदगी में कुछ नहीं कर सकता.... उसका दिल सदैव एक अनायास डर से भयातीत रहता था ...... एकांत को ही उसने अपना साथी बना लिया। सारे दोस्तों से मिलना जुलना लगभग छोड़ ही दिया था सदैव एक डर के साए में जीना जैसे उसकी फितरत बन गई थी।
सारस की इस आदत का प्रभाव उसकी पढ़ाई के ऊपर भी पड़ा अब वह अपने आप को पढ़ाई करते वक्त एकाग्र नहीं कर पाता.........लिखने की कोशिश करता तो उसको लगता है कि जैसे वह पेन पकड़ना ही भूल गया हो.......... रात में अगर सोने की कोशिश करता तो उसको नींद भी नहीं आती...
"कभी-कभी आर्थिक दुश्चिंताओं के कारण हम दिन में अपने ऊपर अत्याचार करते हैं। अर्थात दिन के पूरे समय में ऐसा कोई भी कार्य नहीं कर पाते जिससे मन में हर्ष व्याप्त हो और रात में कुछ ना कर पाने की चिंता लगाकर सारी रात जागते रहते हैं।"
कहीं ना कहीं सारस की इस मनोदशा के पीछे असफलता का डर समाया हुआ था.... और इसी कारण उसकी सारी सकारात्मक शक्तियां कुंठित हो गई थी ।
जब तक सारस की इस दशा का पता उसके माता-पिता को चलता तब तक बहुत देर हो चुकी थी शराब और सिगरेट को उसने अपनी इस कमी का साथी बना लिया था।
अचानक एक दिन सारस का पुराना साथी मिलन घर आता है और सारस के मम्मी पापा से सारस के बारे में पूछता है तो सारस के माता-पिता की आंखों से अविरल आंसू बहने लगते हैं और वह पूरी स्थिति सारस के दोस्त मिलन को बयां करते हैं।
मिलन एक बहुत ही सुलझा हुआ और समझदार व्यक्ति था थोड़ा बहत उसने साइकोलॉजी का भी अध्ययन किया हुआ था।
मिलन को सारस से मिलकर उसकी मानसिक स्थिति का पता लगाने में एक क्षण भी नहीं लगा ।
और वह सारस के माता पिता से आज्ञा लेकर उसको एक बहुत अच्छे मानसिक रोग विशेषज्ञ को दिखाने ले गया ।
कुछ ही दिनों के प्रयास से मिलन को अपना पुराना साथी सारस वापस मिल गया।
हम अपने भविष्य की असफलता एवं दुर्भाग्य के डर में ही अपने वर्तमान का संपूर्ण सुख नष्ट कर देते हैं।
जो बात हो गई उसको भूल कर एवं जो होने वाला है उसकी चिंता ना करते हैं सिर्फ कार्य करने की रचनात्मकता को अपने जीवन में प्रधानता देनी चाहिए।
क्योंकि रचनात्मक कार्यों में लगे रहने से कार्य का सही आनंद प्राप्त होता है और जब प्रसन्नता पूर्वक कार्य किए जाते हैं तब असीम आनंद की अनुभूति होती है।
हर असफलता के पीछे कहीं ना कहीं डर का ही आविर्भाव समाहित होता है।