शीर्षक - आशियाना प्यार का
शीर्षक - आशियाना प्यार का


आज अचानक घर की साफ सफाई करते हुए पुराना एल्बम हाथ में लग गया जिसमें अपनी बेटी अवनी के जन्म की तस्वीरें देखकर मन यादों की गहराइयों में उतरता चला गया..........घर में बिटिया के जन्म उत्सव पर चारों और खुशी की लहर दौड़ गई कितने वर्षों के बाद घर में कन्या का जन्म हुआ था।
क्योंकि आजकल ऑपरेशन के बगैर बच्चे का जन्म लेना मुश्किल है अतः नीरजा को भी इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ा......घर में थोड़ी छोटी बचत करके कुछ रुपयों का इंतजाम किया हुआ था नीरजा ने और नीरज भी कुछ-कुछ बचत के पैसे बैंक में जमा करता रहता था तो आज वहीं उनके काम आया इस मुश्किल की घड़ी में।
नीरज एक छोटे से स्कूल में शिक्षक था उसकी तनख्वाह मुश्किल से उस समय 1500/- रू. हुआ करती थी उसमें से वह 500 रू. बचाकर बैंक में जमा करता और बाकी के पैसों से किफायत से घर चलाता।
नीरजा का भी हाथ खिंचा हुआ था वह फिजूलखर्ची में विश्वास नहीं रखती बहुत ही सुघड़ता पूर्वक घर संभालती थी अपना....तिनके तिनके से आशियाना प्यार का सजा रहे थे दोनों अपना...
कहते हैं ना कि बेटी का जन्म लक्ष्मी का रूप होता है और सच में ही अवनी नीरज और नीरजा की जिंदगी में लक्ष्मी बनकर आई ....... अवनी के आने के कुछ समय पश्चात ही नीरज का प्रमोशन हो गया और वह एक कॉलेज में प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हो गया इधर नीरजा ने भी घर में ट्यूशन क्लास चला रखी थी तो उसमें भी दिनोंदिन उसकी तरक्की होती चली गई पैसे तो जैसे आसमान से बरसने लगे थे....
पर बचत की आदत को आज भी नीरज और नीरजा ने अपनी जिंदगी में शामिल किया हुआ था अपनी कमाई का एक हिस्सा वह जरूर बचत के रूप में जोड़ते और आज शहर के नामी-गिरामी प्रतिष्ठित लोगों मे उनका नाम लिया जाता है।
प्रसिद्धि की इन ऊंचाइयों पर आकर भी आज नीरजा को अपने संघर्ष के वह पल याद आ गए और वह मन ही मन बुदबदा उठी .......सच में बूंद बूंद करके ही घड़ा भरता है।