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Damini Thakur

Romance

4  

Damini Thakur

Romance

शिद्दत..... भाग 2

शिद्दत..... भाग 2

5 mins
332

हॉल में आकर बैठा तो एक अनजानी सी खुशी दिल को सुकून दे रही थी, कब ख्यालों में खोया कब सोफे पर ही सो गया पता ही नहीं चला l चांदनी पूरी आसमां पर बिखरी हुई थी ठंडी शीतल हवा हॉल में अपना पैर पसार रही थी तुम जाने कब आयी और अपनी गोद में मेरा सिर रखा और काफी देर तक मेरे माथे को शहलाती रही, मैंने खुद को तुम्हारे उजले दुपट्टे में छुपा लिया था तुम्हारे ठंडी-ठंडी हाथों में भी एक अजीब सी गर्माहट थी l सुकून की जाने यह कौन सी पराकाष्ठा थी, तुम्हारा यूं आना तुम्हारा यह स्पर्श मुझे एक अलग ही दुनिया में ले गया था l

सच इश्क कितना मासूम होता है न सुबह 5:00 बजे का अलार्म बज चुका था और मेरी नींद भी खुल गई l मैं बदहवास पूरे घर में तुम्हें ढूंढ रहा था यह समझ ही नहीं आया कि यह खूबसूरत एहसास सिर्फ एक ख्वाब था l यह क्या था इश्क जो मुझे बेचैन कर रहा था, तुम कहीं नहीं थी फिर भी यही थी मेरे पास मेरे साथ l फिर दिल ने मुझसे पूछा इश्क है क्या.. नहीं न ?फिर मैंने खुद को हौले से चपत लगाई और एक मुस्कुराहट के साथ किचन में आकर चाय बनाने लगा तुम्हें क्या पसंद होगा चाय या कॉफी तो फिर हौले से मुस्कुरा कर मेरे पास से गुजर गई थी, कानों में कहते हुए कॉफी, मैं फिर मेरे इस पागलपन पर मुस्कुराया था इसी उधेड़बुन में ऑफिस के लिए तैयार होने लगा था, फिर ख्याल आया कि आज तो तुम्हारे डांस क्लास के भी ओपनिंग है l यह ख्याल आते ही खुद को मैंने कम से कम 10 बार आईने में देखा था तुम आईने में खड़ी मुस्कुरा रही थी दिल ने कहा आज क्यों ना फिर तुम्हें लिफ्ट दूं ? और साथ में ऑफिस चले मैं जल्दी से ऑफिस के लिए तैयार होने लगा l आज ये शावर लेते समय कैसा एहसास था, मानो शावर की बूंदे तुम्हारे मखमली स्पर्श का अहसास दिला रही थी l जल्दी से तैयार होकर मैं नीचे पार्किंग में आया, बहुत समय तक तुम्हारा इंतजार किया पर तुम नहीं आई l तुम्हारे नाम के अलावा मैं कुछ भी तो नहीं जानता था खैर कार में बैठते ही मैंने जगजीत सिंह की वही मखमली आवाज में वही दिलकश ग़ज़ल लगाई और ऑफिस के लिए निकल गया l बिल्डिंग में आते ही सोचने लगा कि किस फ्लोर पर होगा तुम्हारा डांस क्लास? और समय क्या है ?मन में जाने कितने प्रश्न उठने लगे l मैंने तो निमंत्रण पत्र को ठीक से देखा भी नहीं l ऑफिस पहुंचकर मैं निमंत्रण पत्र को उलट-पुलट करके देखने लगा, इतने में राजू भैया साहब कुछ लाऊं, मैंने कहा चाय, अरे नहीं एक कॉफी ले आओ l निमंत्रण पत्र को गौर से देखने लगा तो पता चला तुम कत्थक में विशारद थी इतने में राजू कॉपी लेकर आ गया, और बोला साहब शर्मा जी आए थे कोई इशिका जी की डांस क्लास की ओपनिंग में जाने का बोल रहे थे l यही सेकंड फ्लोर पर है आप जाएंगे क्या ? राजू की बात ख़त्म होने से पहले ही मैंने झट से हां कर दी थी l राजू से एक गुलाबो का बुके मंगवाया l

मन में अजीब सी खुशी हिलोरे मार रही थी मधुर संगीत मानो हर पल मेरे आस-पास गुंजायमान रहने लगा था, हर छण जैसे मन के सरोवर में इश्क़ की कुमुदनी खिली रहती l फ़ोन का रिंग मुझे हकीकत के धरातल पे ले आया था l फोन रिसीव किया तो उधर से शर्मा जी बोल रहे थे, कब तक आ रहे हैं अभिनव जी ?बस पाँच मिनट में आया।

कहकर फोन रख कर बुके लेकर मैं सीधा सेकंड फ्लोर पर पहुंचा, वहां जाकर देखा, एक बड़ा सा हॉल खूबसूरत फूलों से सजाया गया था कुछ रजनीगंधा के फूल तो कुछ गुलाब के फूल अपनी एक अलग ही खुशबू अलग छटा बिखेर रहे थे। हॉल की दीवारों पर वाद्य यंत्रों के बड़े-बड़े चित्र तो कुछ नृत्य मुद्राएं अंकित की हुई थी। "नृत्यांगना" यही तो नाम था तुम्हारे डांस क्लास का।नजरें पूरे हॉल का बड़ी बारीकी से अवलोकन कर रही थी, कुछ ढूंढ रही थी शायद तभी पंडित जी ने आवाज लगाई थी, पूजा का समय हो गया है , तुम हाथों में पूजा की थाली लिए हॉल में प्रवेश की मानो एक जलतरंग बज रहा था, तुम्हारी दूधिया उजले रंग की चिकनकारी का कुर्ता चूड़ीदार सलवार और उस पर बंधेज की लाल रंग का दुपट्टा, गजब लग रही थी तुम मानो अप्सरा, जैसे स्वर्ग से नृत्यांगना उतर आई है तुम्हारे खुले केस हवाओं में खुशबू बिखेर रहे थे मंत्रमुग्ध सा में वही जडवत खड़ा रहा बस मन हुआ तुम्हें निहारते रहूँ, ऐसे में आसपास का भी भान न था कि कुछ निगाहें शायद मुझे देख रही हो, तुम हाथ में पूजा की थाली लिए सीधे पंडित जी के पास आकर बोली पंडित जी मैं तैयार हूं l अभी अभी एक शंका ने मन में घर किया था तुम अकेली क्यों हो ? तुम्हारे साथ कोई और क्यों नहीं था। परिवार के नाम पर एक बुजुर्ग दंपत्ति थे जिन्हें तुम अंकल आंटी बुला रही थी 'पूजा शुरू हो चुकी थी, तुम पूजा पर बैठी थी लाल दुपट्टा सिर पर रखे, पंडित जी ने तो है लाल टीका लगाया था, मानो खुले आसमान चांद का टुकड़ा। बस तुम्हें यूं ही निहारने का मन कर रहा था, पर लोगों का ध्यान आते हैं नजरें नीची कर ली थी।इधर उधर की बातें शर्मा जी से होने लगी तो तुम्हारे बारे में बताया कि तुम यहाँ नयी नयी आई हो, तुम्हारे घर में कोई नहीं। बस इतना ही तो बता पाए थे। पूजा समापन के बाद आरती हुई, आरती के बाद तुम्हारा एक छोटा सा डांस परफॉर्मेंस हुआ, तुम्हारे साथ तो बच्चियां और थी मन प्रसन्न हो गया तुम्हारा डांस देखकर।

10 मिनट के डांस में गजब की मुद्राएं थी, गजब के भाव भंगिमाएं चेहरे पर आयी गयी। सब देखते ही रह गए थे सब ने तुम्हारी तारीफ की। मन हुआ मैं भी तुम्हारे पास आकर तुम्हारे नृत्य की तारीफ करूँ कि कितना खूबसूरत है तुम्हारा नृत्य है| पर मर्यादा की अपनी एक सीमा होती है जिन्होंने मेरे पैरों में बेड़ियां डाल दी। लंच का समय हो गया था। तुमने सब का अभिवादन किया था, सब खाने की टेबल पर आ गए थे, सभी खाने में व्यस्त थे। तभी तुम मेरे पास आयी, शुक्रिया अभिनव जी आप यहां आए हमें अच्छा लगा। तुम्हारे जुबां पर मेरा नाम, क्या कयामत की घड़ी थी। मुझे भी आ कर बहुत अच्छा लगा मैंने जवाब दिया इसी बीच हमारी थोड़ी वार्तालाप हुई। मैंने तुम्हारी आंखों में झांकने की कोशिश की थी तुमने नजरें झुका ली थी। अच्छी लगी थी तुम्हारी यह अदा। मैं भी विदा लेकर ऑफिस आ गया था।


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