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Damini Thakur

Drama

4  

Damini Thakur

Drama

लाल ग़ुलाब

लाल ग़ुलाब

6 mins
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सुबह की ख़ुश्बू से भरी हवा, जाती हुई ग़ुलाबी ठंढ ये एहसास दिला रही थी कि बसंत का आगमन हो चूका है, हाथ में चाय का कप लिए निशा घर में बने छोटे पर प्रकृति की छटा से भरपूर बगीचे में सुबह की ताज़गी से मानो ख़ुद में ताज़गी भर रही थी। कितना खूबसूरत था सबकुछ, ये बगीचा निशा के लिए घर का सबसे पसंदीदा एरिया था। रख रखाव का भी पूरा ध्यान रखती थी। बगीचे के बीचोबीच एक टी टेबल और चार कुर्सियाँ जिसपे बेहतरीन नक्कासी थी, लगी थी जो बगीचे की खूबसूरती को और बढ़ा रही थी। लॉन में बिखरे ओस के मोती और हवाओं से अठखेलियाँ करते रंग बिरंगे गुलाब मानो कह रहे हो आओ हमारा आलिंगन करो। यूँ तो बगीचे में हर तरह के ग़ुलाब थे पर विशेष रूप से गमले में लगा लाल ग़ुलाब शायद निशा को बहुत प्रीय था, उनसे बिना मिले तो उसका दिन ही सुरु नहीं होता, उनको यूँ सहलाती मानो वो उसी के ह्रदय का कोई हिस्सा हो। चाय की आख़िरी सीप के साथ की निशा को ख़्याल आया कि सूरज भी आसमाँ में अपनी रौशनी पूरी तरह बिखेर चुके थे, घड़ी पर नजर डाली तो नौ बजने वाले थे, वो लगभग भागती हुई गयी किचन का काम समेट बेटे को स्कूल बस में बिठाया और घर आकर ख़ुद भी ऑफिस के लिए तैयार होने लगी। बलों को संवारते हुए आईने के सामने खड़ी हो उसने पति को फ़ोन मिलाया जो बुसिनेस टूर पे शहर से बाहर थे, पति ने फ़ोन उठाते ही बड़ी रुमानियत भरी अंदाज में कहा हैप्पी वेलेंटाइन डे मेरी जान इधर निशा के लबों पे भी मीठी सी मुस्कान बीखर गयी। आप कब आरहे हो, ख़ुद को आईने में निहारती हुई साड़ी ठीक करते हुए निशा ने पूछा,, बस शाम का कैंडल लाइट डिनर साथ में करेंगे, ओके लव यू, बाय बोल नील ने फोन कट किया, और सोचने लगा शादी को पाँच साल हो गए निशा यदा कदा ही लव यू बोलती है और वेलेंटाइन तो कभी विश भी नहीं किया,, खैर क्या फर्क पड़ता है, अपना सर झटकते हुए नील काम में व्यस्त हो गया।


इधर निशा को ख़्याल आया कि आज तो वेलेंटाइन डे है आज का दिन वो कैसे भूल सकती है, तुरंत ही उसने ऑफिस में कॉल करके छुट्टी ली और आलमारी से लाल रंग की साड़ी निकाली, बड़े सलीके से बदन पर साड़ी डालते हुए आईने में ख़ुद को निहारते हुए लाल रंग की ही बिंदी लगायी, कमर तक लटकते हुए खुले केश मानो दुनिया की सारी खूबसूरती ख़ुद में समेटे हुए कोई अप्सरा उतर आयी हो। ये सेमी ट्रांसपेरेंट साड़ी उसे कितनी पसंद है सोचते हुए काली गहरी आँखों से दो मोती लुढ़क कर गालों पे आगए, ख़ुद को संभालते हुए गाड़ी की चाभी उठाई और गार्डेन की तरफ गयी वही गमले में लगे लाल ग़ुलाब को बड़े ध्यान से देखा और उसे तोड़ कर गाड़ी में रख लिया। गाड़ी ले बड़ी तेजी से निकल गयी। ट्रैफिक पे रेड सिग्नल ने गाड़ी के रफ़्तार को ब्रेक लगाया, तभी तक़रीबन दस साल की बच्ची हाँथो में ग़ुलाब लिए उससे ग़ुलाब लेने का आग्रह किया, ले लो न दीदी आज तो वेलेंटाइन डे है, निशा कुछ बोलती इतने में सिग्नल ग्रीन हो गया मजबूरन निशा को गाड़ी आगे बढ़ानी पड़ी। आगे जाकर साइड में गाड़ी खड़ी कर निशा उस बच्ची के पास गयी और पूछा कितने का है ये ग़ुलाब, दीदी ये सारे ग़ुलाब, ? बड़ी ही मासूमियत से पुछा था बच्ची ने। निशा ने मुस्कुराते हुए हाँ में सीर हिला दिया। सौ रूपये में सब ले लो दीदी। निशा ने वहाँ खड़े सभी बच्चो से सारे फूल ख़रीद लिए और सभी बच्चों को एक एक ग़ुलाब देते हुए हैप्पी वेलेंटाइन डे बोलती हुई मुस्कुरा कर आगे बढ़ गयी।


जितनी रफ़्तार से गाड़ी बढ़ रही थी उतने ही रफ़्तार से निशा का मन अतित के पन्ने पलटने लगा, कॉलेज में लाल ग़ुलाब ही तो लेके आया था अम्बर, हाँ अम्बर ही नाम था उसका गेंहुआ रंग, शर्मीला स्वाभाव और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था वो।

उसके तरफ़ से पहल से मन बहुत खुश था पर निशा कुछ बोल नहीं पायी, पर अब निशा और अम्बर साथ में ही स्टडी करते और कॉलेज आते जाते। एक अजीब सी कशिश थी उसमे, निशा ने फैसला किया कि वेलेंटाइन डे पर अपने दिल की बात कह देगी। अम्बर के साथ आते जाते घूमते हुए निशा के घर वालों को ख़बर हो गयी, वो कहते हैं न कि इश्क़ और मुश्क़ छिपाए नहीं छिपते। ख़बर होते ही निशा पर पाबंदियां लगनी शुरू हो गयी। शादी की बात तक चलने लगीl अम्बर, निशा के घर वालों को सिर्फ इसलिए पसंद नहीं था क्योंकि वो दूसरी जाति का था। निशा ने बहुत समझाया भी था अपने भईया और पापा को पर किसी ने उसकी दिल की नहीं सुनी। इधर निशा को परेशान देखकर अम्बर ने कई बार जानने की कोशिश की, पर निशा ने कुछ नहीं कहा। उसने तय किया की मेडिकल पूरा होते ही वो अंबर से शादी कर लेगी। इसी बीच वेलेंटाइन डे आया निशा को पता था की अम्बर को लाल ग़ुलाब बहुत पसंद हैं, उसने लगभग सौ गुलाबों का एक सुंदर सा बुके बनवाया और वही लाल रंग की साड़ी सेमी ट्रांसपैरेंट जो अम्बर को बहुत पसंद थी, पहनी, खुले बाल जो बार बार चेहरे पर आकर गालों से अठखेलियाँ कर रहे थे। कुल मिलाकर बला की खूबसूरत लग रही थी, वो लाल बुके लेकर अंबर के रूम पर जाने लगी जो हॉस्टल में रहता था। मन में ढेर सारी उमंगे और रुमानियत लिए वो रूम पर पंहुची। वहाँ पर काफ़ी भीड़ लगी थी हॉस्टल के लड़के और कुछ अम्बर के दोस्त खड़े थे सब आपस में कुछ फुसफुसा रहे थे। सबके चेहरे उतरे हुए थे, निशा के मन में सैकड़ों प्रश्न एक साथ आ जा रहे थे। भीड़ को चीरते हुए निशा अंबर के रूम में दाखिल हुई, वहाँ अंबर को पंखे से लटका हुआ देख निशा बेहोश होकर वहीं गिर गयी। होश आया तो उसके अंतिम संस्कार की तैयारी हो चुकी थी, निशा उठी वो लाल ग़ुलाब के बुके अंबर के मृत शरीर पे रखकर बस इतना ही बोल पायी, आई लव यू अंबर, और बेसुध सी वहाँ से चली गयी। इस घटना के कुछ महीने बाद निशा की शादी नील से हो गयी।

एक जोरदार ब्रेक के साथ गाड़ी एक अंबर नाम के एन. जी. ओ पे रुकी जहाँ अंबर की विशाल तस्वीर लगी हुई थी। अंबर का सपना था एक एन. जी. ओ. खोलने की, वो ख़ुद भी अनाथ जो था निशा ने जी तोड़ मेहनत करके अंबर नाम से एन. जी. ओ. डाला और एक आश्रम भी, जहाँ अनाथ बच्चे, और अपनों के द्वारा ठुकराए हुए बुजुर्गों को अपनों की कमी महसूस नहीं होती थी। निशा हर वेलेंटाइन डे पर वहाँ जाती और अंबर के तस्वीर के सामने वो सारे ग़ुलाब रख देती और धीरे से हर बार एक ही सवाल पूछती कि क्यों अंबर ऐसा क्यों किया ? बहुत देर तक वो अंबर की तस्वीर से बातें करती रहती। उस दिन अंबर के दोस्त भी वहाँ उसे मिल गए 5साल बाद उनसे मिल कर उसे बहुत अच्छा लगा और बातों बातों में उसे सच भी पता चला की अंबर ने आत्महत्या नहीं की बल्कि वो ऑनर कीलिंग थी जो निशा के घर वालों ने करवाई थी। निशा को अपने ही पिता और भाई से नफ़रत सी हो गयी उसने अंबर के तस्वीर से माफ़ी मांगी और थके मन से घर जाने के लिए जैसे ही मुड़ी पीछे नील को खड़ा पाया, नील को वहाँ देख निशा घबरा सी गयी, पर नील ने आगे बढ़कर निशा को बाँहो में भर लिया और कहा निशु आज तुमपर और प्यार आरहा हैं, इतना सुनते ही निशा नील से लिपट कर ख़ूब रोई, मानो 5 साल का दर्द एक दिन में बहा देना चाहती थी।


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