शह -मात
शह -मात
"साहब अगले हफ्ते पटना जाना है। चचेरी बहन की शादी है। एक हफ्ते की छुट्टी चाहिए। " राजेश ने चंद्रप्रकाश जी से अनुनय भरे स्वर में कहा।
"आज तो सोमवार ही है भाई। देख लेंगे। वीरवार को याद दिलाना " चंद्रप्रकाश जी ने अपनी मुस्कान बिखरते हुए प्रसन्नचित चेहरा बना कहा।
"आप दे देंगे इसे छुट्टी ?" राजेश के जाते ही चंद्रप्रकाश जी के सचिव ने उन से पूछा।
"काहे देंगे ? वो पिछले हफ्ते बिटवा का फॉर्म यूनिवर्सिटी से लाने को बोला था तो कितने नखरे दिखा रहा था " चंद्रप्रकाश जी का चेहरा बिलकुल बदल चुका था। झल्लाया सा।
"पर फिर ले तो आया ही था। " सचिव ने याद दिलाया।
"कैसे न लाता। कोई नाम के अफसर थोड़े न हैं हम। " चंद्रप्रकाश जी रूआब वाले चेहरे से बोले।
"सर ख्याल रखियेगा। कमिश्नर साहब इसी के गांव के हैं। कहीं सीधे उनके पास न पहुँच जाए शिकायत ले के। " सचिव ने चेताया।
"इस कमिश्नर की कमिश्नरी भी एक दिन जरूर निकालेंगे। नया नया आया है और बने है लाटसाहब। पर है तो अभी नया नया। जिस शतरंज की अभी वो चालें सीख रहा है उस खेल में तो हमने कई ऐसे कमिश्नरों को चुटकी में हराया है " चंद्रप्रकाश जी का चेहरा अब तमतमा रहा था।
सचिव अपनी राय देता इससे पहले ही मेज का इण्टरकॉम ट्रिंग ट्रिंग बजने लगा।
चंद्रप्रकाश जी ने इण्टरकॉम उठाया "जी सर। हाँ सर। बिलकुल सही सर। .... हाँ आप सही सोच रहे हैं। आपकी सोच का जवाब नहीं सर। ..... बिलकुल देर नहीं होगी सर। बस अभी फाइल लाता हूँ सर। "
इण्टरकॉम रख चंद्रप्रकाश जी ने नजरें चुराते हुए अपने सचिव को तुरंत राजेश के दो हफ्ते के लिए सरकारी दौरे पर पटना जाने का आदेश बना कर लाने को कहा।
कमिश्नर साहब की कृपा से अब राजेश एक हफ्ते की जगह दो हफ्ते के लिए पटना जा रहा था वो भी बिना कोई छुट्टी लिए, सरकारी खर्चे पर।"जी सर अभी लाता हूँ। " सचिव तुरंत कमरे से बाहर निकल आया।
शतरंज की इस बाजी में तो फ़िलहाल कमिश्नर की शह पर एक अदने प्यादे ने चंद्रप्रकाश जी को मात दे ही डाली थी।