शांति वार्ता

शांति वार्ता

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देश भर में उबाल था। एक बार फिर कई होनहार फ़ौजी ताबूत में क़ैद अपने अपने घर जा रहे थे। विक्षिप्त मानसिकता के लोगों ने विस्फोट में उन्हें उड़ा दिया था। तिरंगे में लिपटे ताबूत देख कर हर देशभक्त का सीना फटा जा रहा था।

इस बात के पक्के सबूत थे कि यह कायराना हरकत किसकी है। इसलिए देश की सरकार ने उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही करने का मन बनाया था। लेकिन देश के एक वर्ग ने इसकी खिलाफत करना शुरू कर दिया था। उनका कहना था कि मसला बातचीत से सुलझाया जाना चाहिए। इस तरह की कार्यवाही कोई विकल्प नहीं है। इस वर्ग ने सरकार के विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिए थे।

देश के एक प्रसिद्ध न्यूज़ चैनल ने अपने इवनिंग डिबेट शो में इसी विषय पर बहस के लिए एक प्रोफेसर जो सरकार का विरोध कर रहे थे और एक भूतपूर्व सेना के कैप्टन को आमने सामने बैठा दिया था। पहली बारी प्रोफेसर साहब की थी।

"देखिए दुनिया में कोई मसला इस तरह की कार्यवाही से नहीं सुलझता। हम सभ्य समाज के लोग हैं। हमें आपसी बातचीत से सारी चीज़ों को सुलझाना चाहिए। ना कि तैश में आकर इस तरह का कदम उठाए। मैं और मेरे साथी पूरी ताकत से सरकार की इस कार्यवाही का विरोध करेंगे।"

एंकर कैप्टन से मुखातिब होकर बोली।

"प्रोफेसर साहब इसे सही नहीं मानते हैं। आपका क्या कहना है इस पर।"

कैप्टन ने प्रोफेसर साहब की तरफ देख कर हाथ जोड़ कर नमस्कार किया।

"मैम प्रोफेसर साहब बहुत ही आदरणीय हैं। देश विदेश में कई सेमीनारों में जाते हैं। अमन की बातें करते हैं। इनका कहना सही है। दुनिया में शांति की बहुत आवश्यकता है। पर मैम दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए भी उन लोगों को सबक सिखाना बहुत ज़रूरी है जो दूसरों की शांति भंग करते हैं।"

प्रोफेसर साहब ने इस पर प्रतिक्रिया दी।

"गर हम भी वही करें जो वो करते हैं तो उनमें और हममें फर्क क्या रहेगा। आँख के बदले आँख की पॉलिसी सबको अंधा बना देगी।"

कैप्टन ने पूरी विनम्रता से कहा।

"हममें और उनमें बहुत फर्क है। उन्होंने बेवजह हमारी शांति भंग की। हम उनके किए की सजा देने की बात कर रहे हैं। हम सबकी आँखें फोड़ने की बात नहीं कर रहे हैं। सिर्फ उन्हें सबक सिखाएंगे जिन्हें शांति से रहना नहीं आता है। बेवजह थप्पड़ मारने वाले को यदि जवाब ना मिले तो वह इसे कायरता समझता है। यह बताना भी ज़रूरी है कि हम कायर नहीं हैं।"

"आप तो स्थिति सुधारने की जगह बिगाड़ने की बात कर रहे हैं। शांति की जगह युद्ध की बात ठीक नहीं है।"

"प्रोफेसर साहब शांति की ज़रूरत मुझसे अधिक कौन समझ सकता है। इस व्हीलचेयर पर मैं इसलिए नहीं हूँ कि सड़क हादसे का शिकार हो गया। आपको तो अच्छी तरह से याद होगा हमारे मुल्क के एक बड़े शहर में कैसा कहर बरपाया गया था। उस प्रसिद्ध पांच सितारा होटल में आप भी तो सेमीनार में थे जब उस पर हमला हुआ। भगवान की दया से आप बच गए। उस हमले में उन वहशियों का सामना करते हुए मेरी रीढ़ की हड्डी में गोली लगी थी। उस दिन उन सिरफिरे लोगों के कारण रोते कराहते अपने हम वतन लोगों को देख कर मैंने सबसे ज़्यादा शांति के लिए प्रार्थना की थी। उन परिवार वालों को भी शांति चाहिए जिनके घर का सदस्य बेवजह के हमले में मारा गया। देश का आम इंसान जो शांति लाने के लिए सेमीनार नहीं करता उसे भी शांति चाहिए। लेकिन हर हमले के बाद चुप बैठने से वो लोग अमन के पुजारी नहीं बन जाएंगे। वो इसे हमारी कमज़ोरी समझ कर दोबारा वही करेंगे।"

"लेकिन फिर तो यह सिलसिला चलता रहेगा। हम कार्यवाही करेंगे तो वो इसका बदला लेंगे।"

"हमारे कोई कार्यवाही ना करने से भी वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आएँगे। कार्यवाही करने से उन्हें यह सबक ज़रूर मिलेगा कि बेवजह हमारी शांति भंग कर भाग जाना आसान नहीं है। अगली बार कुछ करते समय यह कार्यवाही उनके दिमाग में होगी। प्रोफेसर साहब मैं आपकी बात को नकार नहीं रहा कि जहाँ तक हो अमन से काम लेना चाहिए। किंतु जब थप्पड़ पड़े तो दूसरा गाल बढ़ा देने की उदारता हर किसी का ह्रदय परिवर्तन नहीं करती है।"

अपनी बात कह कर कैप्टन ने प्रार्थना की कि वह अब इस डिबेट से जाना चाहते हैं।



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