शाहीन
शाहीन
साल भर पहले शाहीन अपनी माँ के साथ स्कूल मे खड़ी रो रही थी की उसे फीस की वजह से एग्ज़ाम मे बैठने नही दे रहे " मैम मैं कम से कम 12 वीं कर लेती तो नौकरी कर पाती, मगर इन स्कूल वालों ने मेरा साल खराब करवा दिया, जैसे शादाब की फी माफ की थी मेरी भी तो हो सकती थी ? "। शादाब उसका जुड़वा भाई था जो उसी के साथ उसी स्कूल मे पढता था। तब शाहीन की माँ ने अपने मुहँ मे दुपट्टा दबा लिया था। खैर आज वो चहक रही थी की उसकी शादी है 22 फरवरी को।
इठलाते हुए उसने कहा " मैम जी आप जरूर आना। अब मैं अपने घर जा रही हूँ।" उसने ' अपने घर' पर ज़रा जोर दे कर बोला था । मैं मुस्करा कर उसे जाता देख रही थी।
शाहीन, लम्बी गोरी और अपने घर मे 7 भाई बहनों मे सबसे बड़ी बेटी थी।उसने हमारे यहां से पांचवी पास की थी । उसके अब्बा ज्यादातर बीमार रहते थे और अम्मी दिहाड़ी पर आस पास के गावँ के खेतों मे काम करती थी।एक बुजुर्ग दादी थी जिन्होने जमाना देखा था । उन्हे शाहीन का लड़को के साथ पढ़ना गंवारा नही था।उनका बस चलता तो वे पांचवी के बाद ही उसे निकाह पढ़वा देतीं। कुछ शाहीन की जिद और कुछ किस्मत की उसके अब्बा को कोई रिश्ता उनकी शाहीन के काबिल न लगता ।
"मैम काश की मैं इस घर न होती, घर क्या मैं लड़की ही न होती सारा बवाल लड़की होने से है।" वो उस दिन बिफर गयी थी। पिछली बार फीस न देने से उसे परीक्षा मे बैठने को नही मिला था तो उसने ब्यूटी पार्लर का काम सीखना चाहा । कुछ दिन गयी भी पर किसी दिन पार्लर मे काम ज्यादा हो जाता तो उसे पार्लर वाली दीदी रोक लेती। बकौल उसके यहीं से दादी अब्बा के कान भरना शुरु कर देती हैं। वही है उसकी कामयाबी की दुश्मन।
" उनकी चिंता जायज है।"
मेरे सपाट ऐसे कहने पर उसने अविश्वास और आश्चर्य भरी निगाहों से मुझे देखा था । "मैम जी" , मुझे अपनी इस बात का बाद मे बहुत अफसोस भी हुआ मगर वो तब कुछ नही बोली।बिना भूले वो तीज,करवा,रक्षाबंधन जैसे त्योहरों पर स्कूल आती और इंटरवल मे सबके हाथो मे मेहंदी लगा कर चली जाती।
उसके जाने के कुछ देर बाद उसकी माँ भी आई। वह हमारे सामने रास्ते के खडंजे पर उकड़ू बैठ गयी।
"मैम जी, शादाब के अब्बा का पता नही कब , जी घबराता है।"
" हम्म"
"अब शाहीन की सुनते या की घर मे कलेश कराते "
"आगे पढाने मे हर्ज नही था " मैने अपने बैठे गले पर जोर देते कहा। आज गला ज्यादा खराब लग रहा था, सो या तो उसने सुना नही या अनसुना कर दिया ।
" शाहीन बड़ी मुश्किलों से काब्बू आई।क्या क्या न समझाया,बहलाया तब कही जा कर।"
मैं उसकी माँ को सुन रही थी। कभी वो सर खुजाती कभी एक पतली लकड़ी से पैरों के पास उगी खडंजे मे गहरे धंसी घास को उखाड़ने लगती।
" ये घास भी कितनी जिद्दी है, उन्ह " कह कर उसने अपने हाथों से उसको नोच कर कुछ दूर फेंक दिया। " ये घास भी ना ख्वामखां खडंजे की जाँ को आफत , अब वहीँ जमे और फैले" बोल कर उसने हमारी ओर देखा । हमे उसकी ओर देखते वो फिर बोलने लगी ।
"शाहीन भी अपने घर चली जायेगी,फिर जैसा उसका शौहर चाहे ।" " हम्म" मैने एक गहरी साँस ली। " मैम जी ,शादी के बाद ही लड़की को अपना घर मिलता है, अच्छा है , शाहीन विदा हो जायेगी, काबिल है , देखना अपने मियाँ को मना कर सब करवा लेगी जो वो चाहती है ।" वो एक बार मे बोल गयी ।" अच्छा , आना जरूर मैम जी , सलाम। " और वो सर पर अपने दुपट्टे को नाक तक खींचते हुए धीमे कदमों से चली गयी ।
उस्के जाने के बाद खुले गेट से स्कूल मे गाय घुस आई थी , कुछ देर मे ही उसने उस घास को चबा डाला जो शाहीन की माँ ने उखाड़ फेंकी थी।