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V. Aaradhyaa

Action Inspirational

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V. Aaradhyaa

Action Inspirational

शादी के बाद मायका पराया

शादी के बाद मायका पराया

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"माँ! मामाजी की शादी में तुम क्या पहन रही हो? और संगीत , मेहँदी, हल्दी सारी रस्मों के लिए अलग अलग साड़ियाँ भी रखोगी ना? अहा... मामाजी की शादी में मैं तो खूब मज़े करुँगी। मैंने पूरे दस दिन की छुट्टी के लिए एप्लीकेशन लिख दिया है। आप उसपर सिग्नेचर कर देना!"

कृतिका उछल उचलकर एक ही सांस में कहती चली गई।


स्वाति चुपचाप अपनी किशोरी बिटिया को खुश होता हुआ देख रही थी।


"माँ... ओ... माँ...! बताओ ना आप क्या क्या पहनोगी अपने प्यारे भाई की शादी में!"


स्वाति अपनी बिटिया का उत्साह कम नहीं करना चाहती थी लेकिन फिर भी उसे तो बताना जरूरी था कि...


"बेटा! हम लोग शादी में ज्यादा दिन के लिए नहीं जा रहे हैं। सिर्फ तीन दिन के लिए ही जा रहे हैं। क्योंकि हमारे पीछे तुम्हारी दादी और दादाजी को बहुत परेशानी हो जाएगी। और फिर तुम्हारे चाचू का भी तो एग्जाम चल रहा है ना... तो उनको भी अकेले मैनेज करने में मुश्किल होगी!"

"ओह नो... माँ...! ऐसे कैसे...? हमें तो वहां पर बहुत दिन के लिए जाकर मस्ती करने वाली थी। और क्या आपका नाना नानी मौसा मौसी और मामा से तीन दिन में मिलकर मन भर जाएगा?"


" क्या करूं बिटिया! मन तो मेरा भी है कि मैं मायके में ज्यादा दिन रहूँ लेकिन क्या करूँ...मजबूरी है ना इसलिए रह नहीं पाऊंगी!"


स्वाति में जब अपनी मजबूरी दिखाते हुए में कहा तो...


कृतिका अपनी गोल गोल आँखें नचाते हुए बोली,


" मैं तो ज़ब शादी के बाद मायके आऊंगी तो बहुत दिन तक यही रहूंगी। और अगर मुझे ज्यादा दिन ससुराल में रहना पड़े तब तो मैं शादी ही नहीं करूंगी!"


अपनी लाडली की इस बात पर स्वाति हंस पड़ी।


स्वाति ने प्यार से अपनी बिटिया के गाल थपथपा दिए और कहा...


"एक लड़की का शादी के बाद तो ज़्यादा वक़्त ससुराल में ही गुजरता है। कुल मिलाकर मायका चार दिनों का ही तो हो जाता है!"


बात की गंभीरता को समझे बगैर इधर कृतिका का बोलना चालू था...


" सुनो माँ...! आपको आपको दादा जी और दादी और पापा मायके जाने से मना करते हैं ना? यह तो एक तरह से आप पर अत्याचार हुआ। मैं दादा जी और दादी से बात करूं कि वो आपको ज्यादा दिन के लिए मायके जाने दें। तीन दिन में भला क्या होता है?"


अब तो स्वाति को कृतिका की मासूमियत पर हंसी आ गई। वह कुछ देर तक तो हंसती रही और फिर गंभीर स्वर में बोली ," मुझे कोई मायके जाने से नहीं रोक रहा है पगली! मुझे सबका ख्याल है। मुझे हमेशा सबकी चिंता रहती है, इसलिए अपनी मर्जी से वहाँ कम दिनों के लिए जा रही हूँ।


और...


वैसे भी ज़ब एक लड़की को भरपूर मान सम्मान और प्यार मिलता है तो वह अपने ससुराल वालों के प्यार में रच बस जाती है!""ये क्या बात हुई?"


"ऐसा ही होता है बिटिया! साथ रहते हुए दुख सुख बांटते हुए कब ससुराल वाले भी अपने बन जाते हैं पता ही नहीं चलता।

हम स्त्रियां तो गमले में लगे हुए एक पौधे की तरह होती हैँ जिन्हें बड़े ही ऐहतियात से गमले से निकालकर मिट्टी में रोप दी जाती है। अब जहाँ की मिट्टी उनके लिए उपयुक्त होती है और जहाँ उस पौधे की उचित देखरेख होती है वहीं वह लहलहा उठती है!"

उस वक़्त तो इतनी बड़ी बड़ी बातें कृतिका की समझ में नहीं आई।


पर वह अपने मामाजी की शादी में सिर्फ तीन दिनों के लिए जाना है... सोचकर उदास ज़रूर हो गई।


अब ज़ब कृतिका की शादी हुई तब उसे भी धीरे धीरे एहसास हो रहा था कि...


विवाह के बाद कैसे धीरे धीरे मायके की देहरी दूर होती जाती है और ससुराल का ओसारा पास आता जाता है।

अब कृतिका भी ज्यादा दिन के लिए मायके में कहां रह पाती थी...?


अब ज़ब कभी कृतिका मायके आती उसे भी अपने ससुराल वालों की चिंता सताने लग जाती थी। कई बार तो यह सोचकर कि...उसके पति अमित को कितनी परेशानी हो रही होगी। इसी चिंता से वह जल्दी ही मायके से ससुराल चली जाती थी।


सच... शादी के बाद बहुत कुछ बदल जाता है।इस बार जबसे कृतिका ससुराल से आई थी वह कुछ उदास थी।

आई थी तो कह रही थी कि,


"अबके तो यहाँ बहुत दिनों तक रहूंगी।!"


पर फिर दो दिन बाद ही उदास सी रहने लगी थी।

कृतिका आज भी उदास सी अपने कमरे में बैठी थी।


तभी उसके पापा जी समोसे और जलेबियां लेकर आए और प्यार से अपनी लाडो को पुकारकर बोले,


"कृति! देख मैं तेरे पसंद की जिलेबिया समोसे लेकर आया हूं। बस बेटी, फटाफट चाय बना ला। सब मिलकर खाते हैं!"


कृतिका के पिता गिरधारी जी आज अपनी बेटी की उदासी दूर करना चाहते थे। इसलिए अपनी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान देखने की भरसक कोशिश कर रहे थे।पर... कृतिका हमेशा की तरह चहकती हुई दौड़कर नहीं आई। वह धीरे-धीरे कदमों से चलकर आई और अपने पिता से समोसा और जलेबी का पैकेट लेकर रसोई में चली गई।

सबके लिए उसकी यह हरकत अप्रत्याशित थी। यही बिटिया शादी के पहले इतना चहकती रहती थी और समोसे और जलेबी देखकर तो नाचने ही लग जाती थी। फटाफट अदरक कूट के चाय बना लाती और सब को बुला लेती। फिर दोनों भाई बहन और माता पिता सब मिलकर चाय और समोसे जलेबी का लुत्फ उठाते।

पर...आज सब कुछ बदला-बदला सा था।


शादी के बाद यह कोई आठवीं मर्तबा वह मायके आई थी। इस बार जब से वह ससुराल से आई थी बहुत उदास रहती थी , बिल्कुल बुझी बुझी सी।


"क्या बात है कृति! तू इस बार जबसे ससुराल से आई है , उदास रहती है। तेरे ससुराल में सब ठीक है ना?


कई बार उसकी माँ स्वाति ने जानने की कोशिश की।


उनके लिए बेटी के हृदय की थाह लेना बहुत मुश्किल हो रहा था।


उसने बताया कि,


"वहाँ मम्मी जी को मेरे बिना ठंड में काम करने में दिक्कत होती होगी।और बाबुजी को भी सुबह सुबह उठकर अपने लिए चाय खुद बनानी पड़ती होगी क्योंकि मम्मी तो सुबह उठ नहीं पाती और अमित को भी देर से उसका सोकर उठने की आदत है। मैं कहकर तो आई थी कि इस बार मायके में बहुत दिन रहूँगी । लेकिन अब मुझे लग रहा है कि वहां मेरे बिना कैसे काम चल रहा होगा? सबको बहुत परेशानी होती होगी!"


उसकी बातें और उसकी चिंता देख कर उसके मम्मी पापा सोच रहे थे कि अब उनकी बिटिया समझदार हो गई है और ससुराल को अपना भी लिया है।


और इधर...अब कृतिका को भी समझ आ गया था कि...


हर लड़की को शादी के बाद अब दो घरों में दो भाग में जिन्दगी जीनी पड़ती है।


मायके में अलग सी बेपरवाह सी ज़िंदगी। और फिर ससुराल में भी एक अलग ज़िंदगी जीनी पड़ती है। जिन्दगी खुश होकर जीना हो तो उसके लिए थोड़ी तैयारी करनी जरूरी है।


ससुराल में हर नए रिश्ते को अपनाना पड़ता है। तभी वह रिश्ता अपना बनता है और घर भी अपना लगता है। बस ....


ये मंत्र याद रखने की जरूरत है।

बड़ों का मान सम्मान और छोटों को प्यार,

इससे सुखी रहता हर घर परिवार "


कृतिका ने भी इसी मंत्र से ससुराल को क्या अपना लिया था। और अब जिंदगी को सही तरीके से जीने का उसका नजरिया भी बदल रहा था। अब वह समझ रही थी कि अगर वह मायके की बनिस्बत ससुराल में ज्यादा वक्त गुजारती है इसका मतलब है कि वह अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। और ससुराल को अपनाकर जिंदगी जीने का जीने का एक सकारात्मक रवैया अपना रही है।


इसके अलावा अब कृतिका कई बार अपने मन में मां की बात दोहराती कि....

सच हम लड़कियों के लिए शादी के बाद मायका तो चार दिनों का हो जाता है। और वह भी किसी मजबूरी में नहीं बल्कि खुशी-खुशी जब एक लड़की ससुराल की जिम्मेदारी निभाती है और मायके की बागडोर भी थाम कर रहती है...तब उसकी खुशियां दुगनी हो जाती है।

यही तो जीवन का क्रम है कि...नैहर ससुराल से परे बेटियों का दो घर होता है। दोनों घरों में आशीर्वाद देने को माता पिता होते हैं। बस इन रिश्तों को समझने और दिल से इनको निभाने का जज़्बा होना ज़रूरी है। तभी तो...बेटियां एक घर से संस्कारों की थाती लेकर दूसरे घर में अपनी एक नई पहचान बनाती है।



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