Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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शादी का पहला सावन

शादी का पहला सावन

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"बेटा सुबोध ! तुम ही इस बुद्धू को समझावौ कि सावन में ससुराल नाहीं जाओ जात है।वहां सब खिल्ली उडावैंगे।बस जे तौ अपने कौ हुसियार समझत है कि मेरो नांउ हुसियार तौ मैं सबसे हुसिआर।"- यशोदा चाची ने मुझसे आग्रह किया कि मैं उनके पुत्र होशियार को समझा दूं कि कोई लड़का सावन के महीने में ससुराल नहीं जाता है। ऐसी परम्परा हमारे समाज में चलती चली आ रही है।

मैंने होशियार से पूछा- " हॉं,भाई होशियार ! क्या बात है जो तुम्हारा ससुराल जाना जरूरी लग रहा है। चाची तो परम्परा को निभाने के लिए तुम्हें रोक रही हैं ।"

होशियार ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा- " अच्छा हुआ आप आ गए।अब आप ही मां को समझाएगा कि परम्पराओं के नाम पर नुकसान कर लेना मूर्खता है। ससुराल से फोन आया है कि वहां मेरी पत्नी बिन्दू की तबियत ज्यादा खराब है तो ऐसे में हम परम्परा निभाते रहें और कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो सिर पकड़ कर पछताएं।"

मैंने यशोदा चाची को समझाया- "चाचीजी, मुझे तो इसमें होशियार की होशियारी नजर आती है। अब आपकी बहूआपकी जिम्मेदारी है । कहीं आप यह तो नहीं सोच रहीं कि इस समय बहू अपने मायके में है तो उनकी जिम्मेदारी हो गई।"

"बेटा, सुबोध ! हमने तौ तुमै जा हुसियार कौ समझैवे के लए कही। तुम तौ हम हीं कौ समझाबन लगे।"- यशोदा चाची मायूस सी होती हुई बोलीं।

"चाचीजी, आपकी बहू अब किसकी जिम्मेदारी है, तुम लोगों की या उसके मायके वालों की?"- मैंने चाची से प्रश्न किया।

"जामै कोई पूछै वारी बात । हमारी बहू हमारी हमारी जिम्मेदारी।"- चाची ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

"जिम्मेदारी में ये सावन- भादों क्यों अड़ंगा डाल रहे? "- मैंने पूछा।

मैंने चाची को याद दिलाया- " चाचीजी आपको याद है ना,जब मेरी माताजी को समझाने के मैं चाचाजी को ले गया था जब वे भी सावन की इसी परम्परा के नाम पर मुझे जाने से रोक रही थीं।उस समय आपने भी हमारा ही पक्ष लिया था। तभी तो माताजी ने मुझे जाने की अनुमति दी थी।"

"सब याद है। तुम तौ बातन मै ऐसो फंसाया लेत हौ कि ना चाहत भए काम करनौ परि जात।"- चाची ने आहत होते हुए कहा।

सुबोध को याद आया कि उसने भी तो उसके विवाह के बाद पहले ही सावन में अपनी ससुराल जाकर माधवी को साथ लेकर एम.एस सी.के अंतिम वर्ष के लिए शुल्क आदि जमा करवाया था।ऐसा न होने की स्थिति में उसके अध्ययन में व्यवधान आ जाता। किसी परम्परा के निर्वहन के नाम पर कभी भी उत्कृष्ट फ़ैसलों को टाला नहीं जाना चाहिए।

वह जब ससुराल पहुंचा था तब माधवी के छोटे भाई ने मजाक करते हुए कहा था- "जीजाजी तीजों का सामान लेकर आए हैं।"

समाज में परम्परा प्रचलित है कि सावन के महीने में लड़कियों के मायके से उनके भाई या पिता लड़की की ससुराल में उपहार विशेष तौर पर सेवइयां तीज पर लेकर जाते हैं और उनको विदा करवाकर अपने साथ ले आते हैं। ऐसे में यदि कोई लड़का अपनी ससुराल पहुंच जाए तो उसकी हंसी उड़ाए जाने में सामान्यतया कोई कमी नहीं छोड़ी जाती।पर आज के समय में समाज में लोगों के पास बढ़ते समयाभाव और भले-बुरे की जागरूकता के कारण यह परम्परा शिथिल होती जा रही है।अब तो अधिकतर परिवारों में लड़कियां सीधे श्रावण की पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन ही राखी बांधने पहुंचती हैं।

"भैया, जैसा उचित लगे,वैसा ही समझ लो।पर इस समय मेरा आना माधवी के करीयर के लिए बेहद जरूरी था। वैसे इस मजाक के लिए मैं तो घर से ही तैयार होकर आया था।"- उसने मुस्कुराते हुए अपने दृढ़ निश्चय को प्रकट किया।

अगले दिन सुबोध और माधवी कालेज के लिए बाइक पर निकले थे। कालेज से संबंधित सारी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद जब वे निकले तो आसमान में काली घटाएं घिर आई थीं।माधवी ने कहा था कि हम लोग ठहर जाते हैं और बारिश रुकने के बाद चलेंगे।

इस पर सुबोध ने कहा था- "विधाता ने शादी के बाद पहले ही सावन में एक साथ बारिश में भीगकर खुशी मनाने का संयोग हमारी कुंडली में बड़े पुण्य के प्रभाव में रचा होगा। हमें इस अवसर को जी भरके आनंद मनाते हुए बिताना चाहिए।तुम्हारी मास्टर्स डिग्री और इस आनंद का दोहरा सुख हमें दिया है।इस अवसर को हमें हमें गंवाना नहीं थी हर के मनाना है।"

वे दोनों बारिश में बाइक पर झमाझम बारिश का आनंद लेते हुए वापस लौटे थे।उस सुखद स्मृति से सुबोध के चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई। अपने पक्ष में फैसला आने से होशियार के चेहरे पर चैन भरी मुस्कुराहट उभर आई।


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