सेवा का सुख
सेवा का सुख
अशोक जल्दी ड्राइंग रूम में आओ आज भी वही दुर्गंध यहाँ फैली है शायद अम्मा ने आज भी..... गुस्से में सरिता चिल्ला रही थी। भागते हुए जब अशोक वहाँ आया तो माँ को एक कोने में डरी सहमी बैठे पाया।
तुम अब कुछ करो। अम्मा जी की तो अब रोज की ही आदत हो गई है। उन्हें किसी वृद्धाश्रम में क्यों नहीं रख देते। वहाँ अपने उम्र के लोगों के साथ रहेंगी तो उनका मन लगा रहेगा- कहते हुए सरिता ने अशोक की तरफ देखा। अशोक ने माँ को देखा जिनकी बोलती आँखों की भाषा को बचपन से वो सुनता, समझता आया था। आज उनमें दर्द की कई रेखाएं तैर रही थी। मानता हूँ उम्र बढ़ने के साथ माँ की याददाश्त कमजोर होती जा रही है। कभी-कभी खाँसते समय उनका अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रहता जिसकी वजह से उनके कपड़े गीले हो जाते हैं पर बचपन में उसने भी तो ऐसे ही माँ की गोद को न जाने कितनी बार गीला किया होगा। उसे अच्छी नींद आए इसके लिए कई रातें माँ ने जाग कर गुजारी होगी। नहीं-नहीं वह माँ को कभी वृद्धाश्रम में नहीं रख सकता। यह सोचना भी पाप है । वह सरिता को चुप रहने के इशारे कर बाँह पकड़ बरामदे में ले आया। "तुम ये क्या अनाप-शनाप बोल रही हो। वो मेरी माँ है उन्हें मैं जीते जी कभी भी वृद्धाश्रम में रखने की बात सोच भी नहीं सकता। हाँ मानता हूं उनकी वजह से तुम्हें परेशानी होती है पर इस उम्र में उनकी सेवा करना हम दोनों का फर्ज है।" तुम करो सेवा, मुझे नहीं करना- तुनकते हुए सरिता ने कहा और पैर पटकते हुए चली गई। अशोक माँ के पास गया जो डरी चुपचाप बैठी थी। उसने माँ को समझाया- "आप टॉयलेट में चले जाया कीजिए। देखिए आपके रूम में ही मैंने टॉयलेट बनवाया है ताकि आपको परेशानी न हो।" वो एक अबोध बालक की तरह मेरी बातें सुन रही थी और सहमति में सिर हिलाती रही। अशोक उन्हें उनके कमरे में पहुंचा कर ऑफिस के लिए निकल पड़ा। दोपहर में सरिता ने फोन पर रोते-रोते बताया की मेरे पापा को पैरालाइसिस अटैक आया है तुम जल्दी घर आ जाओ। सरिता की बात सुन अशोक घबरा गया और घर के लिए निकल पड़ा। घर पहुँचा तो देखा की सरिता का रो- रो कर बुरा हाल था। अशोक को देखते ही उसने कहा -पापा को पैरालाइसिस अटैक आया है अब वह बिस्तर से बिना किसी सहारे के उठ नहीं सकते। भाभी ने उन्हें घर पर रखने से मना कर दिया है। भैया ने तो एक नर्स को भी उनकी देखभाल के लिए बुला लिया है पर भाभी जिद पर अड़ी है कि उन्हें पापा को घर पर नहीं रखना। अब तुम बताओ पापा का मेरे सिवा कौन है? अशोक ने बड़ी सहजता से कहा- "अरे, इसमें सोचने वाली बात क्या है वह तुम्हारे साथ साथ मेरे भी तो पिता हैं। हम उन्हें यहाँ ले आते हैं यहाँ रहेंगे तो तुम्हें उनकी सेवा का सुख मिलेगा। सरिता के आँखों सामने सुबह वाली घटना तैरने लगी।उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा और सिर शर्म से झुक गया। उसने सुबह वाली घटना के लिए अशोक से माफी माँगी। अशोक ने उसे अम्मा से माफी माँगने के लिए कहा। अब सरिता को अपनी भूल का अहसास हो गया था इसलिए उसने अम्मा जी से माफी माँगी। अशोक जैसे जीवनसाथी को पाकर सरिता अपने आप को धन्य मान रही थी जिसकी वजह से आज उसे माता-पिता दोनों की सेवा करने का सुख मिला था।
