सच्ची होली
सच्ची होली
सुमित इस बार होली में अपने नाना जी के घर आया था होली मानाने गांव में, उसने गांव कि होली नहीं देखी नहीं थी कभी इसलिए बहुत उत्साहित था इस बार कि होली मानाने के लिए ! होली के एक दिन पहले सबके साथ मिलकर उसने पुरे गांव से बाग़ बगीचे साफ कर लकड़ी और पत्ते बटोरे इनको एक स्थान पर एकत्रित किया फिर बड़े - बुजुर्गो के साथ मिलकर होलिका दहन किया उसके बाद होलिका की राख़ से सबने तिलक किया !
अगले दिन सुबह बहुत धूम धाम थी होली की सबने अपनी अलग - अलग टोली बनायीं थी बच्चो की अलग टोली थी, नोजवानो की अलग टोली थी बड़े बुजुर्ग एक जगह चबूतरे पर बैठकर होली के गीतों से आनंद ले रहे थे, घर में उसकी मामी और नानी तरह तरह के पकवान बना रही थी, उसकी नानी ने बुलाया और गुजिया और मठरी खाने को दी, गुजिया अत्यंत स्वादिस्ट बनी थी जो उसने कभी नहीं खायी थी ! खाने के बाद दीपक और आकाश को साथ ले वह टोली के साथ गांव में सबको रंग और अबीर लगाने चला गया, गांव के सारे बड़े बुजुर्ग और बच्चों को टोली के साथ मिलकर सबको रंग लगाया और मिठाई बाटी, गरीबो को भोजन खिलाया और शाम को सब वापस आ गये !
सुमित को ये सब नया सा लग रहा था क्योंकि उसने ऐसे होली कही नहीं मनाई होली के दिन वह घर पर अकेला ही रहता था, आज उसको लग रहा था सही मायने में होली क्या होती है आज उसने सच में होली मनाई थी !