सोच
सोच
महक आज कबीर दास के दोहे पढ़ रही थी, अचानक उसकी नजर एक दोहे पर ठहर गयी !
" बुरा जो देखन मे चला, बुरा ना मिलिया कोई !
जो मन खोजा अपना तो, मुझसा बुरा ना कोई !!
यह पक्तियां पढ़ने के बाद उसको प्रशांत का स्मरण हो आया हर बात मे सबकी कमी निकलना उसकी आदत है, उसको हमेशा यही लगता है की वह सबसे सही है, उसमे कोई कमी नहीं !
उसको यह नहीं समझ आता के इस दुनिया के सारे लोग हमको वैसे ही दिखाई देते है जैसा दृष्टिकोण हम उन लोगों के प्रति रखते हैं !
अगर हम नकारात्मक सोच रखेंगे तो हमें लोग गलत लगेंगे और सकारात्मक सोच रखने पर लोगो की अच्छाई दिखेगी !
काश ! वह प्रशांत को समझा पाती के लोगों में अच्छाई खोजने का प्रयास करें ना की किसी की कमी निकाले !