सच्चा सुख

सच्चा सुख

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कल अंबर की पहली तनख्वाह आने वाली थी। इंतज़ार का एक-एक पल वो बहुत बेचैनी से काट रहा था।

अगले दिन दफ्तर में जैसे ही ये इंतज़ार खत्म हुआ, उसके सभी साथी पहली तनख्वाह मिलने की खुशी में दावत करने की योजना बनाने लगे। उन्होंने अंबर से भी पूछा लेकिन उसने मना कर दिया।

अगले हफ्ते दो दिन की छुट्टी लेकर वो अपने पुराने शहर गया, जहां एक अनाथालय में उसका बचपन गुजरा था।

उसके माता-पिता कौन थे, वो इस अनाथालय में कैसे आया उसे कुछ याद नहीं था। बस याद था तो इतना कि जब से उसने होश संभाला, अनाथालय के संचालक आलोक बाबू का स्नेह भरा हाथ अपने सर पर पाया, जो प्यार से उसे मुन्ना कहा करते थे।

अंबर पढ़ाई में बहुत होशियार था। उसकी प्रतिभा को पहचानकर आलोक बाबू उस पर विशेष ध्यान देते थे, और उनके मार्गदर्शन और सहयोग का फल था कि अंबर को छात्रवृत्ति की बदौलत दूसरे शहर के बड़े विद्यालय में पढ़ने का अवसर मिल गया, जिसके बाद वो तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते हुए आज एक जानी-मानी कंपनी में अच्छे पद पर नियुक्त हो चुका था।

यादों में खोया जब वो अनाथालय पहुँचा तो पता चला अब वहां के संचालक बदल चुके है। उनसे आलोक बाबू का पता लेकर वो उनके घर की तरफ चल दिया।

आलोक बाबू आजकल बहुत बीमार चल रहे थे। परिवार के नाम पर कोई ना था उनका इस दुनिया में।

अंबर जब उनके पास पहुँचा वो निशक्त से बिस्तर पर लेटे थे। अनाथालय का एक कर्मचारी उनके लिए खाना बना रहा था।

अंबर को देखकर वो एक पल के लिए उसे पहचान ना सके। जब उसने उन्हें पुकारा "बाबा", तब धीरे-धीरे उनकी चेतना लौटी।

उन्हें इस हालत में देखकर अंबर बेचैन हो गया।

उसकी पढ़ाई और नौकरी के बारे में सुनकर आलोक बाबू बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें खुश देखकर अंबर ने कहा- बाबा, क्या आप नहीं चाहते आपका मुन्ना हमेशा खुश रहे।

मैं ऐसा क्यों नहीं चाहूंगा भला- आलोक बाबू हैरानी से बोले।

तो फिर आप अभी अपने मुन्ना के साथ चल रहे है अपने घर हमेशा के लिए। कल फादर्स डे है बाबा। इस दिन सब बच्चे अपने पिता को उपहार देकर उनके प्रति अपनी भावनाएं जाहिर करते है, लेकिन आपके मुन्ने को आपसे उपहार चाहिए, उसे उसका पिता दे दीजिए- अंबर ने आँसू भरी आँखों के साथ अपने दिल की बात कह दी।

लड़खड़ाते हाथों से अंबर के आँसू पोंछते हुए आलोक बाबू ने उसे गले लगा लिया।

दो अकेले लोग एक-दूसरे का हाथ थामे, जीवन के सच्चे सुख की अनुभूति करते हुए अब एक खुशहाल परिवार का रूप ले चुके थे।


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