सबसे बड़ा रुपाइया
सबसे बड़ा रुपाइया
"मां कहिये आपने हम दोनों को क्यों बुलाया है? रानो दीदी का पता नहीं पर मुझे बहुत काम था मैं वो सब छोड़कर आई हूं ।आज तो मुझे अपने बेटे के स्कूल भी जाना था पर नहीं गई मां आपकी वजह से।
सानो ने अपना पर्स सोफे पर रख लापरवाही से अपनी सेंडिल उतारते हुऐ कहा।तो रानो चिढ़ते हुऐ बोली........
"क्यों सानो जी आपको ऐसा क्यों लगता है कि सिर्फ आपके पास ही काम है बिजी तो मैं भी बहुत थी। मुझे तो परिवार के संभालने के साथ ऑफिस भी जाना होता है तुम्हारी तो सरकारी नौकरी है आराम से छुट्टी ले लो पर मैं तो नहीं ले सकती न छुट्टी।पर मां ने बुलाया था और नहीं आती तो यही होता कि लो बड़ी बेटी मां की खोजखबर नहीं लेती तो चली आई इनसे मिलने। कहिये मां क्या कहना है आपको।,,
"अरे क्या तुम लोग आते ही झगड़ने लगे, मुझे पता है तुम दोनों को बहुत काम है पर अभी झगड़ा नहीं खाना खाते हैं मैने तुम दोनों की पसंद का खाना बनाया है चलो पहले कुछ खा लो वहीं खाते-खाते बात करते हैं।
सुशीला जी ने अपनी दोनों शादी शुदा बेटियों से कहा तो दोनों हाथ धोकर टेबल पर आ गईं।साथ में सुशीला जी ने अपनी भी प्लेट लगा ली।पर उनकी दोनों बेटियों का खाने से ज्यादा मां की बात सुनने पर ध्यान था। तो एक बार फिर से दोनों ने पूंछा ...
"अब बताओ न मां क्या बात है?क्या आपने प्रॉपर्टी के पेपर बनवा लिऐ ? आप ये सब हमारे नाम कर रहीं है?,,
एक साथ इतने सवाल सुनकर सुशीला जी थोड़ा चिढ़ते हुऐ बोलीं.....
" तुम दोनों को प्रॉपर्टी के अलावा और कुछ नहीं सूझता क्या?जब देखो अपने नाम करवाने की पड़ी रहती है।और कुछ याद नहीं आता क्या कभी बिना वजह अपनी मां से मिलने आ जाया करो। या कभी यूं ही बिना वजह हमारे हाल चाल पूंछ लो।पर नहीं बस दोनों को प्रॉपर्टी दे दो।,,
"हां तो क्या हुआ मां हमारा कोई भाई तो है नहीं जो ये सब लेगा। ले देकर हमीं दो बेटियां तो है।आप भी अब बूढ़ी हो गई है तो हम लोग तो आपके सर से इस सब की देखभाल का बोझ उतारना चाहते है।
सानो अपनी मां की बात हल्के में लेते हुऐ बोली। तो सुशीला जी ने मुस्कराते हुऐ कहा.......
"मेरा बोझ कम करने से पहले एक जिम्मेदारी संभाल लो वही बहुत होगा मेरे लिऐ!
जिम्मेदारी की बात सुनकर दोनों बहनें एक साथ बोलीं...."कैसी जिम्मेदारी मां?,,
"वो मेरी आंख में मोतियांबिंद आ गया है तो मुझे उसका ऑपरेशन करवाना है तो तुम दोनों सोच लो कि दस पंद्रह दिन कौन मेरी देखभाल करेगा?
"मां मुझे अपना प्रोजेक्ट पूरा करना है। मेरा बॉस मेरे सर पर तलवार लिए खड़ा रहता है। अगर मैने उनसे दस पंद्रह दिन की छुट्टी ली तो समझो मेरी नौकरी तो गई। सानो कर लेगी उनकी तो सरकारी नौकरी है वो छुट्टी लेंगीं।,,
रानो ने अपनी मां की बात पूरी होने से पहले ही कहा। तो सानो भी कहां चुप रहने वाली थी वो भी जिम्मेदारी लेने से खुद को बचाने के लिऐ बोली....
"नहीं मैं छुट्टी नहीं ले सकती मैं अभी दो महीने पहले घूमने गई थी तो पहले ही बहुत छुट्टियां ले ली है। अब अगर छुट्टी ली तो मेरी नौकरी पर बन आयेगी।
अपनी दोनों बेटियों की बात सुनकर सुशीला जी की आंखों में आंसू आ गए जिन्हे छुपाते हुऐ वो थोड़ा कड़क होकर बोलीं....
"तुम्हारे पापा कहते थे कि एक बेटा और होना चहिए बुढ़ापे में देखभाल करने के लिऐ पर मैने उनसे हमेशा यही कहा कि "बेटियां बेटों से कम नहीं होती वो भी हमारी देखभाल करेंगी" और उन्होंने मेरी बात मानकर तुम्हारी परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी।तुम्हारी हर जिद हर तमन्ना पूरी की। तुम दोनों को अपने पैरों पर खड़ा किया ताकि तुम लोग किसी के अधीन न रहो। अपने फैसले खुद ले सको। हमारी देखभाल कर सको।
पर शायद हमारी परवरिश में कोई कमी रह गई जो तुम लोगों ने अपने पापा के जाने के बाद मुझे नहीं इस प्रॉपर्टी को अपना माना है।तुम लोग अभी जब मेरी दस पंद्रह दिन देखभाल नहीं कर सकतीं तो भगवान न करे अगर मैं बिल्कुल असत हो गई तो तुमलोग तो रुपया पैसा लेकर मुझे सड़क पर छोड़ दोगे इसलिए आज मैने एक फैसला लिया है जब तक मैं जीवित रहूंगी हमारे घर की नौकरानी लक्ष्मी मेरी देखभाल करेगी बदले में मैं अपनी वसीयत में ये घर और कुछ पैसे उसके नाम कर जाऊंगी और वाकी की सारी चल अचल संपत्ति किसी अनाथ आश्रम को दान कर दूंगी पर तुम्हारी जैसी औलादों को एक फूटी कोड़ी भी नहीं दूंगी।
दुनिया में सभी लोग कहते हैं कि बेटियां बेटों से ज्यादा सेवा करती है कभी बेटी बनकर तो कभी बहू बनकर पर मैं कहती हूं कि अगर बच्चे कपूत हो तो कोई सेवा नहीं करता न बेटा न बेटी।आज मुझे सिर्फ एक कहावत ही सही लग रही है कि "बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रुपइया"और अब उन्ही रुपयों के दम पर मैं अपनी सेवा करवाऊंगी वो भी दूसरों से।
चलो खाना खत्म हो गया हो तो निकलो इस घर से और लौट कर कभी मत आना मैं अपने मरने से पहले अपनी अंतिम यात्रा की भी व्यवस्था करके मरूंगी ताकि कोई तुम दोनों को बताए भी नहीं कि मैं इस दुनिया में नहीं रही।
अपनी मां की बातें सुनकर दोनों बेटियां हक्की बक्की सी मुंह खोले रह गई उन्हे तो अंदाजा भी नहीं था कि हमेशा मां की सेवा न करने के लिऐ उनके बहाने आज उन्हे इतने भारी पड़ेगें।पर अब वो कर ही क्या सकतीं थीं।इसलिए दोनों चुपचाप हारी जुआरी सी अपनी मां के घर से निकल गईं।
दोस्तों हम हमेशा कहते है कि बेटों से बेटियां ज्यादा अच्छी होती है होती भी होगीं पर अगर किसी को सेवा नहीं करनी अपने मां बाप की इज्जत नहीं करनी तो वो नहीं करेंगें फिर चाहे वो बेटी हो बेटा। इसलिए बेटा बेटी के फेर में न पड़े दोनों को अच्छे संस्कार दें ताकि वो वक्त पड़ने पर आपकी चिंता करें आपकी प्रॉपर्टी पर नजर न रखें।
धन्यवाद ।।
मेरे और भी ब्लॉग पढ़िए......
*-चुप्पी
*- गांव की गवार लड़की मेरी क्या हेल्प करेगी
आपकी दोस्त
अनिता शर्मा।।
डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय Momspresso.com के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों .कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और मॉम्सप्रेस्सो की उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं है ।
"मां कहिये आपने हम दोनों को क्यों बुलाया है? रानो दीदी का पता नहीं पर मुझे बहुत काम था मैं वो सब छोड़कर आई हूं ।आज तो मुझे अपने बेटे के स्कूल भी जाना था पर नहीं गई मां आपकी वजह से।
सानो ने अपना पर्स सोफे पर रख लापरवाही से अपनी सेंडिल उतारते हुऐ कहा।तो रानो चिढ़ते हुऐ बोली........
"क्यों सानो जी आपको ऐसा क्यों लगता है कि सिर्फ आपके पास ही काम है बिजी तो मैं भी बहुत थी। मुझे तो परिवार के संभालने के साथ ऑफिस भी जाना होता है तुम्हारी तो सरकारी नौकरी है आराम से छुट्टी ले लो पर मैं तो नहीं ले सकती न छुट्टी।पर मां ने बुलाया था और नहीं आती तो यही होता कि लो बड़ी बेटी मां की खोजखबर नहीं लेती तो चली आई इनसे मिलने। कहिये मां क्या कहना है आपको।,,
"अरे क्या तुम लोग आते ही झगड़ने लगे, मुझे पता है तुम दोनों को बहुत काम है पर अभी झगड़ा नहीं खाना खाते हैं मैने तुम दोनों की पसंद का खाना बनाया है चलो पहले कुछ खा लो वहीं खाते-खाते बात करते हैं।
सुशीला जी ने अपनी दोनों शादी शुदा बेटियों से कहा तो दोनों हाथ धोकर टेबल पर आ गईं।साथ में सुशीला जी ने अपनी भी प्लेट लगा ली।पर उनकी दोनों बेटियों का खाने से ज्यादा मां की बात सुनने पर ध्यान था। तो एक बार फिर से दोनों ने पूंछा ...
"अब बताओ न मां क्या बात है?क्या आपने प्रॉपर्टी के पेपर बनवा लिऐ ? आप ये सब हमारे नाम कर रहीं है?,,
एक साथ इतने सवाल सुनकर सुशीला जी थोड़ा चिढ़ते हुऐ बोलीं.....
" तुम दोनों को प्रॉपर्टी के अलावा और कुछ नहीं सूझता क्या?जब देखो अपने नाम करवाने की पड़ी रहती है।और कुछ याद नहीं आता क्या कभी बिना वजह अपनी मां से मिलने आ जाया करो। या कभी यूं ही बिना वजह हमारे हाल चाल पूंछ लो।पर नहीं बस दोनों को प्रॉपर्टी दे दो।,,
"हां तो क्या हुआ मां हमारा कोई भाई तो है नहीं जो ये सब लेगा। ले देकर हमीं दो बेटियां तो है।आप भी अब बूढ़ी हो गई है तो हम लोग तो आपके सर से इस सब की देखभाल का बोझ उतारना चाहते है।
सानो अपनी मां की बात हल्के में लेते हुऐ बोली। तो सुशीला जी ने मुस्कराते हुऐ कहा.......
"मेरा बोझ कम करने से पहले एक जिम्मेदारी संभाल लो वही बहुत होगा मेरे लिऐ!
जिम्मेदारी की बात सुनकर दोनों बहनें एक साथ बोलीं...."कैसी जिम्मेदारी मां?,,
"वो मेरी आंख में मोतियांबिंद आ गया है तो मुझे उसका ऑपरेशन करवाना है तो तुम दोनों सोच लो कि दस पंद्रह दिन कौन मेरी देखभाल करेगा?
"मां मुझे अपना प्रोजेक्ट पूरा करना है। मेरा बॉस मेरे सर पर तलवार लिए खड़ा रहता है। अगर मैने उनसे दस पंद्रह दिन की छुट्टी ली तो समझो मेरी नौकरी तो गई। सानो कर लेगी उनकी तो सरकारी नौकरी है वो छुट्टी लेंगीं।,,
रानो ने अपनी मां की बात पूरी होने से पहले ही कहा। तो सानो भी कहां चुप रहने वाली थी वो भी जिम्मेदारी लेने से खुद को बचाने के लिऐ बोली....
"नहीं मैं छुट्टी नहीं ले सकती मैं अभी दो महीने पहले घूमने गई थी तो पहले ही बहुत छुट्टियां ले ली है। अब अगर छुट्टी ली तो मेरी नौकरी पर बन आयेगी।
अपनी दोनों बेटियों की बात सुनकर सुशीला जी की आंखों में आंसू आ गए जिन्हे छुपाते हुऐ वो थोड़ा कड़क होकर बोलीं....
"तुम्हारे पापा कहते थे कि एक बेटा और होना चहिए बुढ़ापे में देखभाल करने के लिऐ पर मैने उनसे हमेशा यही कहा कि "बेटियां बेटों से कम नहीं होती वो भी हमारी देखभाल करेंगी" और उन्होंने मेरी बात मानकर तुम्हारी परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी।तुम्हारी हर जिद हर तमन्ना पूरी की। तुम दोनों को अपने पैरों पर खड़ा किया ताकि तुम लोग किसी के अधीन न रहो। अपने फैसले खुद ले सको। हमारी देखभाल कर सको।
पर शायद हमारी परवरिश में कोई कमी रह गई जो तुम लोगों ने अपने पापा के जाने के बाद मुझे नहीं इस प्रॉपर्टी को अपना माना है।तुम लोग अभी जब मेरी दस पंद्रह दिन देखभाल नहीं कर सकतीं तो भगवान न करे अगर मैं बिल्कुल असत हो गई तो तुमलोग तो रुपया पैसा लेकर मुझे सड़क पर छोड़ दोगे इसलिए आज मैने एक फैसला लिया है जब तक मैं जीवित रहूंगी हमारे घर की नौकरानी लक्ष्मी मेरी देखभाल करेगी बदले में मैं अपनी वसीयत में ये घर और कुछ पैसे उसके नाम कर जाऊंगी और वाकी की सारी चल अचल संपत्ति किसी अनाथ आश्रम को दान कर दूंगी पर तुम्हारी जैसी औलादों को एक फूटी कोड़ी भी नहीं दूंगी।
दुनिया में सभी लोग कहते हैं कि बेटियां बेटों से ज्यादा सेवा करती है कभी बेटी बनकर तो कभी बहू बनकर पर मैं कहती हूं कि अगर बच्चे कपूत हो तो कोई सेवा नहीं करता न बेटा न बेटी।आज मुझे सिर्फ एक कहावत ही सही लग रही है कि "बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रुपइया"और अब उन्ही रुपयों के दम पर मैं अपनी सेवा करवाऊंगी वो भी दूसरों से।
चलो खाना खत्म हो गया हो तो निकलो इस घर से और लौट कर कभी मत आना मैं अपने मरने से पहले अपनी अंतिम यात्रा की भी व्यवस्था करके मरूंगी ताकि कोई तुम दोनों को बताए भी नहीं कि मैं इस दुनिया में नहीं रही।
अपनी मां की बातें सुनकर दोनों बेटियां हक्की बक्की सी मुंह खोले रह गई उन्हे तो अंदाजा भी नहीं था कि हमेशा मां की सेवा न करने के लिऐ उनके बहाने आज उन्हे इतने भारी पड़ेगें।पर अब वो कर ही क्या सकतीं थीं।इसलिए दोनों चुपचाप हारी जुआरी सी अपनी मां के घर से निकल गईं।
दोस्तों हम हमेशा कहते है कि बेटों से बेटियां ज्यादा अच्छी होती है होती भी होगीं पर अगर किसी को सेवा नहीं करनी अपने मां बाप की इज्जत नहीं करनी तो वो नहीं करेंगें फिर चाहे वो बेटी हो बेटा। इसलिए बेटा बेटी के फेर में न पड़े दोनों को अच्छे संस्कार दें ताकि वो वक्त पड़ने पर आपकी चिंता करें आपकी प्रॉपर्टी पर नजर न रखें।