सभी एक हैं
सभी एक हैं
"मुनिया घर की सफाई अच्छे से कर दे। देखना एक भी कोना छूटने न पाए।"
"बाहर भी साफ कर दूँ ना भाभी।"
"अरे बाहर कौन साफ करता है ? कौन सा अपना है। घर साफ कर दे तू, वही बहुत है और कूड़ा वहीं कोने में ही लगा देना। कूड़े वाले आएँगे तो ले जाएँगे वर्ना वहीं पड़ा रहेगा। घर में बहुत काम है। जल्दी कर।"
"आई भाभी " आज सुमन जी के यहाँ बहुत चहल-पहल थी। उनके बेटे के पहले जन्मदिन की पार्टी थी। बहुत से लोग आने वाले थे और पार्टी की सारी जिम्मेदारी रेखा के ऊपर थी।"जल्दी जल्दी हाथ चलाओ सभी। मेहमान आते ही होंगे। मुनिया तेरी बेटी कहाँ है ? उसे कहना जल्दी से फूलों की टोकरी मुझे दे जाए।"
" जी भाभी ।"
"और हाँ, देखना सोफे पर ना बैठे। नीचे ही बैठे। समझा देना।" "जी भाभी", इस बार मुनिया की आवाज़ में वो खुशी नहीं थी। अभी तक जिस घर को अपना मान कर सब कुछ कर रही थी वहाँ उसी की बेटी को अछूत समझा जा रहा था। उसे कभी इस बात का एहसास नहीं कराया गया पर आज।
" अरे मुनिया ! क्या हुआ ?" पुष्पा जी ने पूछा। तू बुत बने क्यों खड़ी है ?"
"कुछ नहीं माँजी।"
"कोई तो बात है बता। किसी ने कुछ कहा क्या?"
" वह ...।"
"हाँ बोल "
"वह ...भाभी ...कह रही थी।"
"क्या कह रही थी?"
"बेटी को सोफे पर मत बैठा...।"
"अरे ! गलती से बोल दिया होगा। सारा काम वही सँभाल रही है ना। तुम तो परिवार हो। तुम्हें हम इतना मानते हैं। इतना कुछ करती हो तुम हमारे लिए तो हम ऐसा क्यों कहेंगे ? तुम भी ऐसा सोचती तो राहुल अभी एक साल का है और तुम्हारे पास इतना ही रहता है, तुम्हारा प्यार है तभी तो, वह तुम्हारे पास रहता है। जात पात कुछ नहीं होता। हम सभी एक हैं। और हाँ, मैंने बहु को सुना कि उसने कहा तुम्हें कूड़ा बाहर लगा देना।"
" जी माँजी ।"
"तू अभी साफ कर देना उसे। घर बाहर सब जगह सफाई रखना हमारा कर्तव्य है। अगर सभी ऐसा सोचने लगे तब तो हो चुका। यह धरती हमारी है तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि जितना हो सके इसकी रक्षा करें इसे साफ रखें।और सभी लोग अपने हैं। कोई धर्म नहीं, जात पात नहीं समझी। ज्यादा बोल दिया लगता है मैंने। रेखा की बात का बुरा मत मानना।"
" नहीं माँ जी मैं समझ रही हूँ।"
" जा बेटी को बोल दे टोकरी दे आएगी और सोफे पर बैठा कर नाश्ता कराना। देखना रेखा खुद बोलेगी तुझे यह बात।" मुनिया हँसते हुए चली गई।
