सीमा भाटिया

Tragedy

0.2  

सीमा भाटिया

Tragedy

सौदा

सौदा

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दोनों दामाद बैठक में शतरंज की बाजी में मस्त थे। ससुर की तबीयत ज्यादा खराब होने पर या यूँ कहिए कि अंतिम समय पास जानकर सास ने अपनी दोनों बेटियों को बुला भेजा था। डाक्टर भी जवाब दे चुके थे। बेटा तो कोई था नही, तो अंतिम समय कोई तो पास हो कम से कम गंगाजल मुँह में डालने के लिए।

"मुकेश भाई, यह बाबू जी तो बस एक दो दिन के ही मेहमान हैं। आगे सोचा कैसे करना ?

"मतलब क्या है राजेंद्र तुम्हारा ?"

"देखो भाई, सीधी सी बात है। इस साल भुवन को इंजीनियरिंग में दाखिला दिलाना किसी बड़े कालेज में। करीब दस लाख का खर्चा है। मैं तो रेनू से बोल बाबू जी को मदद के लिए कहने ही वाला था कि यह अनहोनी हो गई।" राजेंद्र ने मुँह लटका कर कहा।

"यार, सच बताऊँ तो मैं खुद बहुत परेशान हूँ। यह नोटबंदी के बाद तो सारा काम धंधा ही चौपट हो गया है। सविता भी यही कह रही थी कि बाबू जी से बात करेगी। पर अब..।"

"तो अब क्या मुकेश भाई, अब तो अच्छा मौका है। सासूजी कौन सा अकेले रह सकती ? और फिर अब वो कौन सा ज्यादा जीने वाली ? दमे की मरीज तो हैं ही। ले देकर साल छह महीने की मेहमान हैं। पचास लाख की आसामी तो होंगे ससुर जी। रख लेते हैं बारी बारी। पचास लाख में सौदा बुरा भी नही।" अपने प्यादे से वजीर को मात देते हुए राजेंद्र बाबू बोले और दोनों के चेहरे पर मक्कारी भरी मुस्कान आ गई।


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