सात वचन

सात वचन

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तीर्थ व्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:।

वामांगमायामि तदा तवदीयं ब्रवीती वाक्यं प्रथमं कुमारा। ।


मान्या के शादी के सप्तपदी फेरे वैदिक रीति से सम्पन्न होने के बाद शादी की एक महत्वपूर्ण रस्म सात वचनों की शुरू हो चुकी थी। पंडित जी विधि विधान से वधु की तरफ से वर के सामने सात वचन रख रहे थे जो शादी के समय एक पति अपनी पत्नी को ताउम्र निभाने का वचन देता और कामना दूर कहीं अतीत में गुम होती जा रही थी।


 "मेरे भी माता-पिता का सम्मान आप वैसे ही करोगे, जैसे आप अपने माता पिता का करते हैं। अगर आपको यह शर्त मंजूर है , तो मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ” यह शादी की दूसरी शर्त थी और ऐसी ही और पाँच शर्तें स्वीकार करने के बाद ही वह राहुल के वामांग में आकर बैठी थी। अपनी शादी में और बाकी की रस्में पूर्ण कर, कई नए सपने सजाए ससुराल में उसने कदम रखा था बड़े चाव के साथ।


पहले दिन से ही कामना को राहुल का व्यवहार बड़ा रूखा सा प्रतीत हुआ। बस हर बात का नपा तुला जवाब और सारा दिन दफ्तर की मसरूफियत का बहाना लगाकर देर रात घर आना बहुत अटपटा लगा उसे। पहली बार जब माँ बाबूजी कानपुर से मिलने उसे दिल्ली उसके ससुराल आए, तो बेटी का बुझा बुझा चेहरा सब कुछ बयान कर गया।


"जमाई बाबू हमारी बेटी से कोई गलती हुई है क्या जो आप ऐसा बेरूखा व्यवहार करते उसके साथ?" रात को खाने के बाद दीनानाथ जी ने बड़ी हिम्मत जुटाकर राहुल से पूछ ही लिया। फिर क्या था सारे घर में ही तूफान सा आ गया।


"कमाल है बाबूजी, एक तो आपकी बेटी को अपनाया। जिसे न अकल न शऊर कि कैसे पति व ससुराल वालों को खुश रखना, ऊपर से आप ही धौंस जमा रहे हम पर। अरे इतना प्यार है बेटी से तो ले जाइए इसे और वहीं रखिए कानपुर में”


स्तब्ध रह गए माँ बाबूजी यह सुनकर कि उनकी स्नातक पास, घर के काम काज में निपुण, संसकारी बेटी में क्या कमी रह गई थी। कामना के बहुत आश्वासन देने के बाद कि वह सब सामान्य कर लेगी, अगली सुबह माँ बाबूजी अपमानित होकर बेटी के ससुराल से विदा हुए।


"युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में मैं सदैव आपके साथ रहूंगा। यह तीसरी शर्त है, क्या आपको मंजूर है?" पंडित जी निर्विघ्न रूप से मान्या के विवाह की रस्में पूरी करवाने में लगे थे, पर कामना का ध्यान ही कहीं ओर ही था।


"माँ, मेरी कम्पनी ने मुझे आस्ट्रेलिया की ब्राँच का प्रतिनिधित्व बना दिया है। बस अगले सप्ताह ही मुझे जाना है” उस दिन राहुल बड़ी खुशी खुशी घर आया था और आते ही माँ के कमरे में जाकर खबर सुनाने लगा जो कामना के लिए किसी वज्रपात से कम न थी। चौथा महीना लग चुका था उसे और राहुल ने बिना उसे बताए इतना बड़ा फैसला भी ले लिया था।


"तो क्या तुम्हारे और आने वाले बच्चे के लिए मैं अपना पूरा करियर दांव पर लगा दूँ। वैसे तुम्हें पचास बार कहा था कि ध्यान रखो, मुझे अभी बच्चे - वच्चे के पचड़े में नहीं पड़ना। अब तुम्हे ही शौक था तो भुगतो अब” एक भी न सुनी थी राहुल ने और सब दायित्वों से मुँह मोड़कर चला गया था, “परिवार का सारा दायित्व आप पर है” शादी के चौथी शर्त को हवा में उड़ाते हुए।


सास ने जैसे तैसे जचगी तक साथ दिया और पौत्री के जन्म लेते ही अपने बड़े बेटे के पास बंगलोर चली गई। माँ बाबूजी भी कब तक अपना घरबार छोड़कर उसके पास बैठे रहते? पहले पहले राहुल के फोन भी आते रहे और घर खर्च भी भेजता रहा, धीरे धीरे उससे भी हाथ खींच लिया "घर खर्च में सलाह लेने की" पाँचवीं शर्त को भी ताक पर रखते हुए।


"अरे मुझे तो पहले ही पता था कि यह राहुल भी यहाँ नहीं टिकने वाला। जब से नयना ऑस्ट्रेलिया चली गई , तब से ही लगा था कोशिश में वहाँ जाकर स्थापित होने को। अरे बचपन से चल रहे याराने इतनी आसानी से कहाँ छूटते?" सारी कालोनी में इस तरह की खुसर फुसर ने कामना को तोड़कर रख दिया। रोती बिलखती बंगलोर चली आई सास और जेठ के पास। बहुत मिन्नतें करने के बाद राहुल आया था एक सप्ताह के लिए। कामना बहुत खुश थी। मन में एक झूठी आस जो बांध ली थी कि राहुल अपनी बेटी मान्या को देखकर सब भूल जाएगा और वापस आ जाएगा उसके पास।


 "आप कभी भी मेरी सहेलियों और परिवार के सामने मेरा अपमान नहीं करोगे, कहिए आपको यह शर्त मंजूर है?" पंडितजी छठी शर्त तक पहुँच गए थे।


"तुम्हें साथ ले जाऊँ या वापस आ जाऊँ, यह कैसी बकवास है? मैं तो तुमसे पीछा छुड़ाने के लिए आखिरी बार यहाँ आया हूँ। मेरी पी आर की अर्जी मंजूर हो गई है। तुम चुपचाप मेरे लाए तलाक के कागजात पर साइन कर दो और अपनी नई जिंदगी शुरू कर लो या रोती बिलखती रहो यहाँ मेरी बला से। मैंने सिर्फ माँ की जिद्द पर तुमसे शादी की थी। मुझे तुम्हारे साथ रहने में कोई दिलचस्पी नहीं। मेरी जिंदगी का एक ही मकसद था नयना और वह अब पूरा होने से कोई नहीं रोक सकता। तुम चाहो तो शौक से अदालत का दरवाजा खटखटा सकती हो” इतना अपमान बाबूजी सहन नहीं कर सके और बीपी बढ़ जाने से वही बेहोश होकर गिर पड़े।


बाबूजी ने उसके बाद बिस्तर पकड़ लिया था। भाई भाभी ने अपने हाथ खड़े कर दिए थे किसी भी तरह के पचड़े में पड़ने से। कामना ने तलाक के कागजात पर दस्तखत कर गुजारा भत्ता लेने में ही भलाई समझी। समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता रहा। कामना ने पति दूारा मिले मकान को बेचकर कानपुर में ही छोटा सा मकान ले लिया और बाकी का धन बैंक में बेटी के भविष्य के लिए जमा करवा दिए। गुजारा भत्ता से मिली रकम और प्राइवेट स्कूल की नौकरी कर बेटी काम्या को अपने पैरों पर खड़ा किया ताकि भविष्य में उसे किसी राहुल के हाथों इतना दर्द न झेलना पड़े। आज काम्या एक सफल डॉक्टर बन चुकी थी। अपने ही सहयोगी आकाश से शादी के फैसले को दोनों परिवारों ने खुशी खुशी मंजूर भी कर लिया था


"परायी स्त्री को माँ का दर्जा दोगे और कभी कोई दूसरी औरत हमारे बीच नहीं आएगी। अगर यह सातवीं शर्त मंजूर है तो मैं तुम्हारे वामांग में आने के लिए तैयार हूँ” पंडित जी के मंत्रोच्चारण के साथ विधिवत पढ़ी गई इस सातवीं शर्त पर कामना की तंद्रा भंग हुई और उसने आँखों में आए आँसू चुपके से पोंछ लिए और अपनी लाडली को आशीर्वाद देने और विदाई की रस्म के लिए उठ खड़ी हुई।


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